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यदि खाद्य सुरक्षा बिल संसद में पास हो जाता है तो यह एक ऐतिहासिक कदम होगा। इस कानून से गरीब के आंसू पोंछने में बहुत बड़ी मदद मिलेगी। उम्मीद है कि जब यह विधेयक अगले सत्र में सरकार संसद में लाएगी तो उसे सभी दलों का समर्थन प्राप्त होगा। मैं इस विधेयक को नरेगा से भी दो कदम आगे मानता हूं। इसमें इस बात की गारंटी होगी कि भारत में अब कोई भूख से नहीं मरेगा। नरेगा और खाद्य सुरक्षा बिल दो ऐसे कानून हैं जिन्होंने भारत के गांवों की तरफ ध्यान दिया है। देश की सबसे बड़ी समस्या यह है कि शहरों में सुविधाएं बढ़ती जाती हैं, लेकिन गांवों में लोग उसी मुसीबत में रहते हैं। इसीलिए गांव से लाखों लोग हर साल शहरों की ओर बसने के लिए भाग रहे हैं। नरेगा ने लोगों को वापस गांव की ओर मोड़ा है। पंजाब के तमाम बड़े व्यापारियों, उद्योगपतियों और धनी किसानों को इस बात की शिकायत है कि उन्हें बिहार से मजदूर नहीं मिल रहे हैं। पिछले दिनों ग्रामीण विकास मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति की बैठक में पंजाब के सांसदों ने नरेगा पर अपना गुस्सा उतारा। उनका कहना था कि पंजाब में विकास की रफ्तार धीमी पड़ रही है, क्योंकि नरेगा की वजह से बिहार व पूर्वी उत्तरी प्रदेश से मजदूर नहीं मिल रहे हैं, इसलिए इस योजना को खत्म करना चाहिए। मुझे यह बात सुनकर हंसी आ गई। मैंने उनसे कहा कि आपको तो खुश होना चाहिए कि लोगों को अपने गांव में रोजगार मिल रहा है और वे आपके यहां नहीं आ रहे हैं। आप के राज्य केलोग अपना काम खुद क्यों नहीं करते हैं? एक बड़े रियल इस्टेट ग्रुप के एक डायरेक्टर ने पिछले दिनों मुझे बताया कि नरेगा की वजह से उनकी तमाम योजनाएं धीमी पड़ी हैं, क्योंकि गांवों से मजदूर नहीं आ रहे हैं। मुझे याद है कि जब सोनिया गांधी नरेगा योजना तैयार करवा रही थीं तो तमाम लोगों ने तरह-तरह की आलोचना की थी। अफसरों का कहना था कि इसमें बहुत पैसा बर्बाद हो जाएगा और अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ेगा। मगर उन्होंने कुछ न सुनी और इसे लागू करवाया। हो सकता है तमाम जगह इसे लागू करने में कुछ गड़बडि़यां हो रही हों, लेकिन यदि ज्यादातर जगह इसका फायदा गांव के लोगों को रोजगार के जरिए मिल रहा है तो मैं इसे योजना की सफलता ही मानता हूं।
अब सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने खाद्य सुरक्षा बिल का प्रस्ताव सरकार को भेजा है, जिसमें देश की 75 प्रतिशत जनता को सस्ता अनाज देने की योजना है। इसका सबसे ज्यादा फायदा गांव के लोगों को होगा और 28 प्रतिशत शहरों में रहने वाले गरीब परिवारों को लाभ मिलेगा। इस प्रस्ताव का सरकारी अफसर विरोध कर रहे हैं। कुछ अर्थशास्त्री भी इसके पक्ष में नहीं हैं। उनका कहना है कि इतने कम दामों पर अनाज देने से देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी, मगर सोनिया गांधी अड़ी हुई हैं। प्रस्ताव के मुताबिक गांव और शहरों के गरीब परिवारों को 2 रुपये प्रति किलो गेहूं, 3 रुपये प्रति किलो चावल और एक रुपये प्रति किलो बाजरा देने का प्रस्ताव है। बेसहारा और बेघर लोगों को भी भूखे पेट सोने से बचाने के लिए साथ में एक योजना बनाई गई है। सस्ते अनाज का खर्च सरकार को अपनी जेब से देना पड़ेगा। सरकार जो अनाज ज्यादा दामों पर किसानों से खरीदती है उसे कम दामों पर इन परिवारों को राशन व अन्य सरकारी दुकानों के जरिए देना होगा। हर परिवार को 25 से 35 किलो अनाज हर महीने दिया जाएगा। राशन व सरकारी दुकान वाले घपला न करें, इसका प्रवाधान भी कानून में डाला जा रहा है और ऐसे लोगों को कड़ी सजा देने का इंतजाम किया जा रहा है।
इसमें कोई शक नहीं है कि यह एक क्रांतिकारी योजना है और एक बार लागू होने के बाद केंद्र में किसी भी पार्टी की सरकार आए, उसे इस पर अमल करना होगा। लागू होने के बाद इसे वापस लेने का साहस कोई सरकार नहीं कर सकती है। इसके साथ ही एक जरूरी काम यह होगा कि खाने-पीने की चीजों की बर्बादी रोकी जाए। एक सर्वे के मुताबिक लाखों टन खाना हर साल इस देश में बर्बाद कर दिया जाता है। देश के हर नागरिक को अब खाना बचाना होगा। उसे अपनी थाली या प्लेट में उतना ही खाना लेना होगा जितना वह खा सके और बरबाद न करे। पार्टियों और दावतों में लोगों को उतना ही खाना बनाना चाहिए जो खत्म हो सके। मैंने तो सरकार से मांग की है कि पार्टियों में अनाप-शनाप चीजें परोसने के बजाय सिर्फ 5 या 6 किस्म के व्यंजन परोसने की इजाजत दी जाए और इसके लिए कानून बनाया जाए। पाकिस्तान में सरकार ने सिर्फ एक व्यंजन परोसने की इजाजत पार्टियों में दे रखी है। शादी-विवाह ही नहीं, होटलों और रेस्टोरेंट में भी बहुत खाना बरबाद हो रहा है। यदि हम इस बर्बादी पर काबू पा लें तो इस देश में न तो खाने का सामान विदेश से मंगाना पड़ेगा और न ही खाने-पीने की चीजें महंगी होंगी और खाद्य सुरक्षा कानून सफलता से लागू हो जाएगा।
लेखक राजीव शुक्ला राज्यसभा सदस्य हैं.
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