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मजबूती की कमजोर दलील

जागरण मेहमान कोना
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Rajnath suryaमनमोहन सिंह ने दावा किया है कि वह अक्षम प्रधानमंत्री नहीं हैं। मनमोहन सिंह सात वर्ष से भारत के प्रधानमंत्री हैं। अभी लोकसभा चुनाव के लिए तीन वर्ष शेष हैं। उनके मंत्रिमंडल के सभी सदस्य किसी न किसी सदन के सदस्य हैं। इस संदर्भ में उनका यह दावा ठीक है कि वह अंतरिम या कामचलाऊ प्रधानमंत्री नहीं हैं, लेकिन जहां तक नीति संबंधी निर्णय का सवाल है तो उस मामले में हमारी व्यवस्था अमेरिका के अनुरूप है। सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद सुपर कैबिनेट के रूप में सरकार को नीति संबंधी दिशा-निर्देश के लिए बनाई गई है। यही कारण है कि चाहे खाद्य नीति हो या सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम कानून, सलाहकार परिषद के सुझाव के अनुसार सरकार कानून बना रही है। इन सात वर्षो में मनमोहन सिंह ने कोई उल्लेखनीय नीति संबंधी निर्णय नहीं लिया है। विपक्षी दलों ने मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री की संज्ञा दी, जिसका उत्तर वह कई बार दे चुके हैं कि गठबंधन धर्म की मजबूरियों के कारण वह कमजोर हैं।


फिर अचानक पिछले दिनों उन्होंने कुछ चुनिंदा पत्रकारों से बातचीत में ऐसा क्यों कहा कि वह लाचार प्रधानमंत्री नहीं है। संभवत: इसका कारण यह है कि जून के मध्य में कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने सार्वजनिक रूप से यह कहा था कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने का अनुभव हासिल कर चुके हैं। दिग्विजय सिंह ने जब कथित हिंदू आतंकवादियों के खिलाफ अभियान चलाया था तब यह दावा किया था कि वे जो कुछ बोलते या करते हैं उसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी की मर्जी है। उनके इस कथन के बाद दिल्ली में आयोजित कांग्रेस प्रतिनिधि सभा के सम्मेलन में इसी आशय का प्रस्ताव पारित हुआ जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर सीधा हमला बोला गया। इसलिए जब कोई अवसर न होने के बावजूद उन्होंने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के लिए योग्य घोषित किया तो यह मान लेना अस्वाभाविक नहीं है कि उसके पीछे सोनिया गांधी या फिर उनकी निकट मंडली की यह मंशा है कि अब राहुल गांधी को प्रधानमंत्री का दायित्व संभाल लेना चाहिए और यदि 2012 में चार राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए अनुकूल रहे तो राष्ट्रपति के रूप में प्रतिभा पाटिल के समाप्त हो रहे कार्यकाल के बाद मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति भवन में बैठाया जा सकता है और राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है। यदि चुनाव परिणाम अनुकूल नहीं हुए तो प्रणब मुखर्जी या एके एंटनी बनेंगे प्रधानमंत्री, लेकिन मनमोहन का राष्ट्रपति भवन जाना तय है, ऐसा कांग्रेसी हल्कों में चर्चा चल पड़ी है। संभवत: इसी विचार से जयललिता, जिन्होंने प्रधानमंत्री से पहली ही मुलाकात में गृहमंत्री चिदंबरम को बनाए रखने के औचित्य पर भी सवाल उठाये, के प्रति कांग्रेस तटस्थ भाव बनाए हुए है और दिग्विजय सिंह ने 2012 के चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाए जाने की संभावना व्यक्त की है।


मनमोहन सिंह तकनीकी तौर पर भले ही लाचार प्रधानमंत्री न हों, लेकिन व्यावहारिक तौर पर वह बस पद पर बने भर हैं। उनके मंत्रिमंडल के सदस्य तक उनकी चिंता नहीं करते। पार्टी पदाधिकारी और मंत्री जिस प्रकार से परस्पर विरोधी बयान देते हैं उससे ऐसा लगता है कि कांग्रेस सत्ता में रहते हुए भी विपक्षी दलों की भी भूमिका निभा रही है। मनमोहन सिंह का यह कहना कि विरोधी दल सहयोग नहीं कर रहे हैं, वस्तुत: अपने मंत्रियों और पार्टी पदाधिकारियों के संदर्भ में हो सकता है, क्योंकि स्मरण नहीं आता कि इन सात वषरें में उन्होंने विरोधी दलों से कभी सहयेाग मांगा हो। सहयोग मांगने का एक तरीका होता है। अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रपति चुनाव के समय कांग्रेस का सहयोग पाने के लिए उनके सामने तीन नाम रखे थे उसमें से एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर सहमति बनी और उन्हें संयुक्त रूप से उम्मीदवार बनाया गया। मनमोहन सिंह क्या कर रहे हैं? मुख्य सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति के लिए गठित तीन सदस्यीय समिति में पूर्व सहमति का प्रावधान है। नेता विरोधी दल सुषमा स्वराज की आपत्ति को नजरअंदाज कर थामस को सीवीसी नियुक्त कर दिया गया।


यदि मनमोहन सिंह की सरकार को प्रतिहिंसक सरकार कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होना चाहिए। अन्ना हजारे से लोकपाल पर वार्ता के लिए गठित समिति को गजट में प्रकाशित करने के बाद उसने शांतिभूषण और प्रशांतभूषण की संपत्तियों की जांच शुरू कर दी और बाबा रामदेव की अगवानी के लिए प्रणब मुखर्जी सहित चार मंत्रियों को हवाई अड्डे पर भेजने के बाद उन पर और उनके समर्थकों पर आधी रात को डंडे बरसाए गए। यह भी चर्चा है कि जैसा व्यवहार रामलीला मैदान में हुआ उसकी जानकारी तक प्रधानमंत्री को नहीं थी। ऐसी स्थिति में जब वह अपने को लाचार प्रधानमंत्री नहीं मानते तो इस पर कोई आश्चर्य नहीं, क्योंकि वह प्रधानमंत्री हैं ही नहीं, बल्कि वह नेपथ्य से आ रहे संवाद को बोलने वाले नाटक के एक पात्र की तरह अभिनय कर रहे हैं।


लेखक राजनाथ सिंह सूर्य राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं.


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