Menu
blogid : 5736 postid : 270

बेलगाम जनसंख्या

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

वृद्धि दर में गिरावट के बावजूद देश में जनसंख्या नियंत्रण के अपेक्षित परिणाम नहीं आ रहे हैं। जनगणना 2011 के के अनुसार जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि दर पिछली जनगणना की 2.15 प्रतिशत की तुलना में 1.76 प्रतिशत रह गई है। परंतु चिंता का विषय है कि जनसंख्या के मामले में भारत 134 करोड़ की सर्वाधिक जनसंख्या वाले चीन के करीब पहुंच गया है। अमेरिकी एजेंसी पॉपुलेशन रेफरेंस ब्यूरो के अनुसार सन 2050 में भारत की जनसंख्या चीन को पीछे छोड़ते हुए विश्व में सर्वाधिक 162.8 करोड़ हो जाएगी। किसी भी देश का विकास जनसंख्या के उपयुक्त आकार और श्रेष्ठ गुणात्मक विशेषताओं पर ही निर्भर करता है। इस संदर्भ में भारत की स्थिति बेहद चिंताजनक है।


बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ संसाधनों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता घट रही है। 1980-81 में जहां प्रति व्यक्ति कृषि भूमि 0.27 हैक्टेयर थी, वहीं सन 2004-05 तक यह घटकर 0.17 हैक्टेयर रह गई। सन 2000 तक जहां 20 करोड़ टन अनाज का उत्पादन होता था, वहीं 2020 तक 36 करोड़ टन अनाज की आवश्कता पड़ेगी। भूख और कुपोषण से प्रभावित लोगों की संख्या विश्व में सर्वाधिक 23 करोड़ 30 लाख भारत में है। देश की आबादी प्रति वर्ष 1.5 करोड़ की दर से बढ़ रही है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के सर्वे के मुताबिक देश की दो-तिहाई शहरी आबादी को 2030 तक शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं हो सकेगा। वर्तमान में पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 1,525 घन मीटर है जो 2030 में मात्र 1,060 घन मीटर रह जाएगी। जनसंख्या और विकास आपस में एकदूसरे से जुड़े हुए हैं इसलिए विकास की गति बनाए रखने के लिए जनसंख्या का थमना आवश्यकता है।


जनसंख्या की तीव्र गति को रोकने एवं इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने के लिए 11 मई, 2000 को राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का गठन किया गया था। इसका उद्देश्य जनसंख्या स्थिरिकरण के लिए समग्र मार्गदर्शन प्रदान करना था। राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग ने राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के क्रियान्वयन के लिए कुछ कदम उठाए हैं, जिनमें उच्च प्रजनन दर वाले जिलों की पहचान, जनसंख्या स्थिरीकरण के लिए नीति प्रधानता वाले प्रासंगिक अनुसंधान को बढ़ावा देना शामिल है। जनसंख्या की वृद्धि को शून्य के स्तर पर पहुंचाने के लिए अथक प्रयासों की आवश्यकता है क्योंकि देश का एक बड़ा वर्ग आज भी परिवार के बड़े आकार को अर्थ अर्जन के तौर पर देखता है। जितने हाथ, उतना काम इन पंक्तियों के इर्द-गिर्द, निम्न मध्यमवर्ग की संरचना गढ़ी हुई है। ऐसी स्थिति में एक ऐसी नीति की आवश्यकता है, जहां अर्थ अर्जन के रूप में अधिक संतान को जन्म देने वाले अभिभावकों को उनके आर्थिक सुदृढ़ीकरण के लिए नवीन मार्ग उपलब्ध कराए जाएं।


भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रम मूलत: महिला केंद्रित है। पुरुषों की परिवार के स्थायी तरीकों को अपनाने में दिलचस्पी न होने के कारण परिवार नियोजन पूर्णत: असफल हो गया है। इन्हीं कारणों के चलते भारत को एक ऐसे नीति निर्माण की आवश्यकता है जिससे भारतीय अपने परिवार को सीमित रख सकें। जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगाने के लिए जागरूकता कार्यक्रम शुरू करने की जरूरत है। नुक्कड़ नाटकों, वृत्तचित्रों के माध्यम से बढ़ती जनसंख्या के दुष्प्रभावों को दर्शाया जाना चाहिए। निस्संदेह देश की अशिक्षित जनता पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसके साथ ही यह बेहद जरूरी है कि उपलब्ध संसाधनों को बचाया जाए जिससे आबादी का एक बड़ा हिस्सा जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं से वंचित न रह जाए। जनसंख्या नियंत्रण के विभिन्न पहलुओं पर एक नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता है। तभी देश को मानव संसाधन की दृष्टि से समृद्ध बनाना संभव होगा।


लेखिका डॉ. ऋतु सारस्वत स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh