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ईद पर इस तोहफे के मायने

जागरण मेहमान कोना
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Alka Aryaजम्मू-कश्मीर सरकार ने घाटी में पिछले साल गर्मियों के दौरान हुई पथराव की घटनाओं में शामिल युवाओं को माफ कर देने का ऐलान किया है। राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, सरकार इन युवाओं को मुख्यधारा से जुड़ने और आम लोगों की तरह जीने का एक और मौका देना चाहती है। इसके तहत पथराव में आरोपी सभी युवाओं के खिलाफ मामले वापस ले लिए जाएंगे। यह इन बच्चों के लिए सरकार की तरफ से ईद का तोहफा है। हालांकि आगजनी की घटनाओं व संगीन अपराधों में शमिल लोगों को माफ नहीं किया जाएगा। बेशक मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की इस माफी योजना के पीछे कट्टरपंथियों के दबाव वाली रणनीति ने भी अपना असर दिखाया होगा, क्योंकि हुर्रियत के ऐसे धड़े ने सरकार से यह मांग की थी कि पथराव की घटनाओं के दौरान गिरफ्तार लोगों को ईद-उल-फितर तक रिहा किया जाए। इसे दबाव की रणनीति, सामाजिक दबाव और सरकार द्वारा जनता के बीच अपनी छवि सुधारने वाले कार्यक्रमों के आईने में देखा जा सकता है। उमर अब्दुल्ला एक युवा मुख्यमंत्री हैं।


संभवत: इस कारण से भी उन्हें युवाओं के भविष्य की चिंता ने ईद का यह नायाब तोहफा देने के लिए प्रेरित किया होगा। उनकी इस फिक्र का इजहार इन शब्दों में होता है, युवा देश का भविष्य होते हैं और उनके माता-पिता को भी उनसे कई उम्मीदें होती हैं। ऐसे में युवाओं को किसी भी तरह के बहकावे में आकर गुमराह होने से बचना चाहिए। पथराव में आरोपी युवाओं का आपराधिक रिकॉर्ड मिटाकर उन्हें बेहतर भविष्य बनाने का एक और मौका दिया जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने युवाओं को आगाह भी किया कि सरकार की ओर से ऐसी कोशिशें बार-बार नहीं की जाएंगी। इसलिए यह लोग शांतिपूर्वक जिंदगी जिएं और दोबारा ऐसी गतिविधियों से दूर रहें। जम्मू-सरकार की इस माफी योजना से करीब 1200 युवाओं को फायदा होगा, जिनके खिलाफ पथराव की घटनाओं में शमिल होने के मुकदमे दर्ज हैं। इन्हें सरकार अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी करेगी ताकि उनका इस जुर्म में जेल में जाना सरकारी नौकरी आदि में बाधा न बन सके। बीते साल गर्मियों में जम्मू-कश्मीर घाटी तप रही थी। अलगाववादी नेताओं के आह्वान पर वहां जो उत्पात मचा, उसका मंजर आज भी याद है। लगातार तीन महीने से जारी हड़ताल अब तक की सबसे बड़ी हड़ताल थी।


रोजाना की हिंसा व विरोध प्रदर्शनों के चलते स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय बंद हो गए। श्रीनगर की सड़कों पर प्रदर्शनों की संख्या जैसे-जैसे बढ़ती गई वैसे-वैसे स्कूल-कॉलेज बंद होते गए। कश्मीर के इस्लामी चरमपंथी समूह दुख्तरान-ए-मिल्लत की नेता आसिया अंदराबी ने ऐसे अशांत माहौल में अपने एक बयान में कहा- आजादी की लड़ाई में जान-माल की क्षति व बच्चों की पढ़ाई का नुकसान होना अपरिहार्य है, लेकिन इस कारण से हम समझौता नहीं कर सकते। दरअसल हकीकत यह है कि आजादी की लड़ाई के नाम पर कुछ संगठनों ने घाटी में पढ़ाई का माहौल बनने ही नहीं दिया। युवाओं को गुमराह किया और युवा पीढ़ी पत्थरबाजी में व्यस्त कर दी गई। यह युवा पीढ़ी राजनीतिक वर्ग से ताल्लुक रखने वाली नहीं थी, बल्कि अधिकांश गरीब वर्ग से थे। अमीर वर्ग ने तो अपने बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के बंदोबस्त पैसे के बल पर कर लिए थे, लेकिन सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चे व बेरोजगार युवक पथराव जैसी घटनाओं में शमिल हो गए। सरकार अशांत माहौल पर काबू पाने में विफल रही और पिछले साल नौ सितंबर को ईद के मौके पर अलगाववादियों के इशारे पर राज्य की राजधानी श्रीनगर व राज्य के अति संवेदनशील शहर सोपोर में उत्पातियों ने पुलिस चौकी व सरकारी दफ्तर तक फूंक डाले। कहते हैं कि ऐसी ईद श्रीनगर में कभी नहीं हुई। इसमें कोई दो राय नहीं कि दिल्ली व कश्मीर की सियासत और अलगाववादियों के बीच गहरे मतभेदों की भारी कीमत इस घाटी के युवा चुका रहे हैं।


सूबे के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बिना किसी अलगाववादी नेता का नाम लिए युवाओं को आगाह किया कि वे ऐसे नेताओं से दूरी बनाए रखें जिन्होंने पिछली गर्मी में उन्हें इस्तेमाल किया और अब उन्हें ऐसे बच्चों की परवाह न होकर जेल में बंद अपने नेताओं के रिहा होने की फिक्र ज्यादा सता रही है। जिन युवाओं के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए हैं, वे थानों व अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं। उनका भविष्य चौपट हो सकता है, मगर यह सरकार इस ईद पर उन्हें माफी का तोहफा देकर जिंदगी में आगे बढ़ने का मौका दे रही है। जम्मू-कश्मीर में जब उग्रवाद का दौर था तब भी नवयुवक निशाने पर थे। उग्रवादी संगठनों ने उन्हें आजाद कश्मीर का सपना बेचा और अपने संगठनों में बंदूक की नोक पर शमिल किया। हथियार चलाने सिखाए और खिलाफत करने वालों की हत्या तक की गई। ऐसे हजारों नवयुवक मारे गए जिनकी उम्र बीस वर्ष से भी कम थी। कई लापता युवकों का आज तक पता नहीं चला है। उनके अभिभावक, रिश्तेदारों की पीड़ा कोई दूसरा नहीं महसूस कर सकता। हाल ही में जम्मू-कश्मीर के राज्य मानवाधिकार आयोग ने उत्तरी कश्मीर के कुपवारा, बारामुला व बांदिपोरा जिलों में 38 ऐसी कब्रगाहों का पता लगाया है जिनमें करीब दो हजार से अधिक लाशें बिना किसी शिनाख्त के दफनाई गई थीं।


राज्य मानवाधिकार आयोग ने आठ अप्रैल 2008 को ऐसी कब्रगाहों की जांच का काम शुरू किया और इस वर्ष दो अगस्त को यह काम पूरा किया है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2,156 लाशों में से अधिकांश जबरन लापता लोगों की हो सकती हैं। आयोग ने अनुशंसा की है कि इन बिना शिनाख्त लाशों के डीएनए प्रोफाइल लिए जाएं ताकि लापता लोगों के रिश्तेदारों के डीएनए प्रोफाइल से उनका मिलान किया जा सके। 17 वर्षीय जावेद अहमद जहांगीर नामक छात्र को 18 अगस्त 1990 की रात को श्रीनगर के बटमालू इलाके से उठा लिया गया और उसकी मां परवीणा जहांगीर ने उसकी तलाश में 21 साल गुजार दिए हैं। बेटे का पता नहीं चला और उसने लापता लोगों के रिश्तेदारों के साथ मिलकर एसोसिएशन ऑफ पेरेटंस ऑफ डिसपरेड परसंस का गठन किया। आयोग ने तो डीएनए जांच कराने की अनुशंसा राज्य सरकार से कर दी है, लेकिन ऐसे मामलों का क्या होगा जहां डीएनए जांच के लिए कोई जीवित बचा ही नहीं है। यह एक अहम और बड़ा सवाल है, जिस पर विचार किया जाना चाहिए। बहरहाल, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने युवाओं के प्रति जो चिंता जाहिर की है, उसका अपना महत्व है और वाकई यह उन युवाओं के लिए काफी महत्पूर्ण अवसर है। यह राज्य लगातार तीन साल संघर्ष करता रहा और इस साल शांतिपूर्वक पंचायत चुनाव संपन्न हुए। राजनीतिक दल चाहे वह सत्ताधारी दल हों या विपक्षी दल उन्हें युवाओं का भविष्य संवारने में रचनात्मक भूमिका निभानी चाहिए। यह उनका दायित्व है और उन्हें ऐसी अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए खुद को तैयार भी करना होगा।


लेखिका अलका आर्य स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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