- 1877 Posts
- 341 Comments
पाकिस्तान के जिहादी संगठन हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी यानी हूजी की कथित धमकी से डरकर यदि अफजल की फांसी की सजा रद कर दी जाए तो आश्चर्य नहीं। जब भारत की जनता द्वारा चुनी गई सरकारें जब सहजता से आतंकवादियों को जेल से रिहा कर सकती हैं तो फिर किसी एक आतंकी को सजा-ए-मौत से मुक्ति देना भला क्यों मुश्किल होगा? संसद पर आतंकी हमले के बावजदू इस पर गंभीरता से विचार न किया जाना वाकई हमारे लिए चिंता की बात है। आतंकवादियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने की शुरुआत 1989 में हुई जब विश्वनाथ प्रताप सिंह की नेशनल फ्रंट सरकार के गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद को जेकेएलएफ के आतंकियों के कब्जे से छुड़ाने की एवज में पांच आतंकवादियों को रिहा किया गया। इस घटना ने न केवल आतंकियों के हौसले बुलंद कर दिए, बल्कि कश्मीर को अलगाववाद की आग में झोंक दिया। सार्वजनिक जीवन में शुचिता, सादगी और सत्यनिष्ठा की गांधीजी की सीख को हवा में उड़ाने वाली सरकारें एक थप्पड़ खाने पर दूसरा गाल आगे कर सोचती हैं कि गांधीजी के बताए अहिंसा के मार्ग का वह अनुसरण कर रही हैं। तभी तो बेगुनाहों को मौत की नींद सुलाने वाले आतंकी या तो पकड़े नहीं जाते और यदि सुरक्षा एजेंसियों की मुस्तैदी से पकड़ भी लिए जाते हैं तो कुछ साल जेल में बिताने के बाद खुली हवा में विचरण करते नजर आते हैं। जो लोग भारत को सॉफ्ट स्टेट कहते हैं सोच-समझकर ही कहते हैं।
1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार के वरिष्ठ मंत्री जसवंत सिंह खुद जहाज से तीन आतंकवादियों को काबुल छोडने गए थे। सरकार की नजर में यह कोई आत्मसमर्पण नहीं था, बल्कि उन भारतीय बंधकों को छुड़ाने की मामूली सी कीमत थी जिन्हें पांच पाकिस्तानी अपहरणकर्ताओं ने हाइजैक कर लिया था। यह कदम उस पार्टी की सरकार ने उठाया था जिसके नेता आतंकवाद के प्रति शून्य सहनशीलता का ढोल बजाते नहीं थकते। रिहा किए गए तीन आतंकवादियों के नामों का यहां उल्लेख प्रासंगिक है, क्योंकि अपनी रिहाई के बाद उन्होंने ऐसे कारनामे किए जिससे पूरी दुनिया में उनकी पहचान है। मौलाना मसूद अजहर का नाम कौन नहीं जानता जो आए दिन भारत के खिलाफ आग उगलता है। वर्ष 2000 में अजहर ने जैश-ए-मुहम्मद नाम का एक आतंकी संगठन बनाया जिससे प्रशिक्षण और प्रेरणा लेकर अनेक जिहादी भारत पर कई हमले कर चुके हैं। दिसंबर 2001 में संसद पर हुए आतंकी हमले में अजहर की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। रिहा होने वाला दूसरा आतंकी उमर सईद शेख था जो प्रख्यात अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल के अपहरण और हत्या का जिम्मेदार है।
तीसरा आतंकी मुश्ताक अहमद जरगर था। अपनी रिहाई के बाद से जरगार पाक अधिकृत कश्मीर में जिहादियों को प्रशिक्षण दे रहा है। विकिलीक्स के खुलासों से आज सबको पता है कि 26/11 के मुंबई हमलों का मुख्य साजिशकर्ता डेविड हेडली को भारत वापस लाने के लिए यूपीए सरकार कभी गंभीर नहीं थी और प्रत्यर्पण के नाम पर महज दिखावा कर रही थी। दरअसल सरकार ने सोचा कि हेडली को भारत लाने से उसे भी कसाब की तरह जेल में कड़ी सुरक्षा में रखना पड़ेगा। पूछताछ के लिए जांच दल बनाना पड़ेगा और मुकदमे के लिए विशेष अदालत गठित करनी होगी तथा फांसी देना भी मुमकिन नहीं होगा। इसलिए इतने झंझटों में पड़ने की बजाय उसने बचना ही उचित समझा। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। हूजी ने चेतावनी दी है कि अगर अफजल की फांसी माफ नहीं की गई तो और न्यायालयों को भी निशाना बनाया जाएगा।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा फांसी की सजा सुनाने के बाद भी अफजल के गले से फांसी का फंदा अभी दूर है। क्या यह इस बात का संकेत नहीं देता कि उसकी सजा माफी का कोई रास्ता तलाश किया जा रहा है। कहा जा रहा है अगर उसे रिहा नहीं किया गया तो कश्मीर जल उठेगा। तमिलनाडु विधानसभा द्वारा राजीव गांधी के हत्यारों को माफ करने की अपील के प्रस्ताव का जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने जिक्र कर अफजल की माफी का मार्ग प्रशस्त करने का काम किया है। अगर आने वाले समय में केंद्र सरकार मानवीय आधार पर और कश्मीर को जलने से बचाने के लिए अफजल को माफ करती है उसका अगला कदम रिहाई ही होगा।
इस आलेख के लेखक डॉ. विनय कौड़ा हैं
Read Comments