Menu
blogid : 5736 postid : 1145

पूंजीवाद और भ्रष्टाचार

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

Raj Kishoreअन्ना हजारे की आलोचना में एक प्रमुख बात यह कही जाती है कि वह पूंजीवादी व्यवस्था के समर्थक हैं और जब तक पूंजीवाद कायम है तब तक भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो सकता। अन्ना के आंदोलन को पूंजीवाद का समर्थन है यह साबित करने के लिए मीडिया में उनकी लोकप्रियता का तर्क पेश किया जाता है। माना जाता है कि मीडिया पूंजीवाद का एक सशक्त औजार है और इसलिए वह जनहितों का समर्थक हो ही नहीं सकता। जब किसानों और मजदूरों के संघर्ष को अपने विशाल दर्शक वर्ग में पहुंचाने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है तब वह अचानक भ्रष्टाचार का विरोध क्यों करने लगा? क्या यह एक संयोग है या इसके पीछे सोची-समझी रणनीति है। संदेहवादियों को कोई संतुष्ट नहीं कर सकता खासकर ऐसे संदेहवादियों को जिन्होंने अपने सिवा अन्य सभी पर संदेह करने को अपना सिद्धांत बना रखा है। इस श्रेणी में मा‌र्क्सवादी सबसे ऊपर दिखाई देते हैं। वे अपने को छोड़कर सभी की आलोचना करते हैं। यही कारण है कि सीपीएम के बहुत निकट एक सिद्धांतवादी अंग्रेजी दैनिक ने अन्ना के आंदोलन को कोई तवज्जो नहीं दिया।


वामपंथी खयाल के अन्य लोगों ने जगह-जगह अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की जम कर आलोचना की जो अब भी जारी है। इस सिलसिले में एक दिलचस्प बात यह है कि वामपंथियों का ही नहीं, बल्कि माओवादियों का भी समर्थन करने वाली अरुंधति राय ने जब अन्ना के विरोध में एक लंबा लेख लिखा तब उनके प्रशंसकों के एक वर्ग ने भी उनसे किनारा कस लिया। एक ब्लॉग पर अरुंधति राय के एक प्रशंसक ने लिखा जाओ अरुंधति, अब हम तुम्हें प्यार नहीं करते। मीडिया के चरित्र के बारे में एक भ्रम है। उसके आलोचक समझते हैं कि उसकी मुद्रा हमेशा एक जैसी होती है। यह सत्य नहीं है। यह मीडिया के व्यावसायिक हित में है कि वह जन समूह के साथ जुड़ा रहे। आमतौर पर हाशिए के लोगों के साथ उसकी सहानुभूति नहीं होती पर जब कोई मुद्दा समाज में प्रबल हो उठता है और लाखों लोग उससे जुड़े नजर आते हैं तब यह मीडिया के अपने हित में होता है कि वह उनसे अपनी नजदीकी स्थापित करे। मीडिया और चाहे जो करे पर समाज को प्रभावित करने वाले किसी बड़े अभियान या आंदोलन से निरपेक्ष नहीं रह सकता। जब वह ऐसा करता है तो जवाब में समाज भी उससे निरपेक्ष हो जाता है। अन्ना हजारे के आंदोलन के प्रति मीडिया के प्रेम को इसी परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए।


मीडिया भ्रष्टाचार का विरोधी है अथवा नहीं, यह एक अलग प्रश्न है। यहां मामला यह था कि अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के पक्ष में उमड़कर मीडिया ने अपनी लोकप्रियता बढ़ाई और उसके द्वारा लगातार प्रक्षेपित किए जाने से इस आंदोलन की लोकप्रियता बढ़ी। इस तरह दोनों ने एक-दूसरे को मजबूत किया। अपने मूल व्यावसायिक ढांचे में रहते हुए ही मीडिया ने यह सकारात्मक भूमिका निबाही। इसका एक निष्कर्ष यह है कि यदि समाज में अच्छाई की मजबूत धाराएं चलने लगें तो मीडिया इसमें सहयोग ही करेगा, क्योंकि यह उसके अपने व्यावसायिक हित में है। जहां तक भ्रष्टाचार की संस्कृति से पूंजीवाद के रिश्ते का सवाल है इस बारे में भी काफी भ्रम है। उन्नत और सफल पूंजीवाद सामान्य दैनिक जीवन में भ्रष्टाचार को प्रश्रय नहीं देता। उसका असली भ्रष्टाचार उच्चतम स्तर पर होता है। स्वीडन के प्रशासन और नागरिक जीवन में कोई भ्रष्टाचार नहीं है। सब कुछ पारदर्शी है, लेकिन वहां की तोप बनाने वाली बोफोर्स कंपनी अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए सरकारों के राजनीतिक तथा अन्य प्रतिनिधियों को रिश्वत या कमीशन देती है। दुनिया की सभी हथियार कंपनियां यही करती हैं।


संयुक्त राज्य अमेरिका के सामान्य जीवन में भी कोई भ्रष्टाचार नहीं है पर वहां की सरकार दुनिया भर में सबसे ज्यादा गंदगी फैलाती है। अपनी आर्थिक ताकत से अमेरिका जहां भी चाहता है भ्रष्टाचार का केंद्र स्थापित कर देता है। एक समय में सीआइए का प्रमुख काम था विश्व स्तर पर लेखकों, बुद्धिजीवियों, संस्कृतिकर्मियों और पत्रकारों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से फायदा पहुंचाकर उनका ईमान बदलना। पूंजीवाद का जन्म बेईमानी और भ्रष्टाचार से ही हुआ है। जब वह शिशु था उसने अपने समाज को क्रूर और नृशंस बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सरकार और प्रशासन दोनों को खरीदा। उस समय के उभरते हुए पूंजीपति किसी भी अधिकारी से अनुचित और गैर कानूनी काम कराने के लिए उसकी मुट्ठी गरम कर सकते थे। एक जमाने में इंग्लैंड में संसद की सीटों की खुलेआम नीलामी होती थी। जो ज्यादा पैसा दे सकता था वह सांसद हो जाता था, लेकिन जैसे-जैसे वैज्ञानिक आविष्कारों और औपनिवेशिक शोषण से यूरोप में समृद्धि आने लगी दैनिक जीवन में भ्रष्टाचार कम होने लगा। दरअसल पूंजीवाद को अपना उद्योग-व्यापार चलाने के लिए कुशल और अनुशासित समाज चाहिए। यही कारण है कि दैनिक जीवन में भ्रष्टाचार उन्हीं पूंजीवादी देशों में है जहां की व्यवस्था आम लोगों में खुशहाली नहीं ला सकी है। ऐसे देशों में उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है। हमारा भारत इसी श्रेणी में आता है। भ्रष्टाचार से हमारे पूंजीपति और छोटे कारोबारी तथा दुकानदार परेशान हैं। जो काम सहज ही हो जाने चाहिए उनके लिए भी पैसा खिलाना पड़ता है।


राजकिशोर हैं


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh