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महंगाई अब भारतीय नागरिकों की ऐसी साथी बन गई है, जो अब कभी साथ नहीं छोड़ेगी। इसके सामने अब कमरतोड़ शब्द भी बौना लगने लगा है। हमारे बीच ऐसे हजारों लोग हैं, जिनके साथ यह बचपन से ही है। महंगाई भी इनके साथ-साथ बढ़ने लगी। वे तो छोटे ही रहे, पर महंगाई इतनी बढ़ी कि लोग उसकी तुलना सुरसा के मुंह से करने लगे। पेट्रोल के दाम एक बार फिर बढ़ गए हैं। इसमें कोई शक नहीं कि अब डीजल और रसोई गैस की बारी है। जब भी इन चीजों के दाम बढ़ते हैं तो महंगाई का कद और बढ़ जाता है। हमारे नेता यह कहते हैं कि महंगाई कम होगी। निश्चित रूप से महंगाई उन्हें दिखाई नहीं देती। आखिर उनका 70 प्रतिशत खर्च तो सरकार ही उठाती है। शेष 30 प्रतिशत जनता। उनके लिए क्या सस्ता और क्या महंगा? उनका मीटर तो एक-एक किलोमीटर पर डाउन होता है। सरकार की तरफ से उन्हें इतनी अधिक सुविधाएं हैं कि वे चाहकर भी इससे दूर नहीं हो सकते।
सरकार को आम आदमी से अधिक तेल कंपनियों के घाटे की चिंता है। पेट्रोल के दाम बढ़ाकर सरकार उन्हें राहत दिलाने की कोशिश करती है, वहीं वही कंपनियां सब्सिडी के नाम पर सरकार से करोड़ों रुपये ऐसे ही लेती रहती हैं। सरकार इन कंपनियों को घाटा नहीं होने देती, ये सरकार को किसी न किसी तरह से मदद पहुंचाती हैं। दोनों के बीच तालमेल बेहतर है। वैसे भी इनके नाम से ही सरकार पेट्रोलियम पदार्थो के दाम बढ़ाती है, लेकिन जो भी दाम बढ़ाती है, उसका आधा तो वह स्वयं ही विभिन्न करों के माध्यम से अपनी तिजोरी में भर लेती है। इसे सरकार की विवशता ही समझा जा सकता है, क्योंकि एक गठबंधन सरकार की कई विवशताएं होती हैं। इसे खुले रूप में हमारे प्रधानमंत्री ने भी टीवी के लाइव शो में स्वीकारा है। इन विवशताओं में क्या-क्या शामिल है, यह कहना मुश्किल है। इसमें शामिल है कि आप जितना चाहे भ्रष्टाचार कर सकते हैं, फिर चाहे उनके नाम ए राजा हो, सुरेश कलमाड़ी हो या फिर हसन अली। ये तो बहुत ही छोटे-छोटे नाम हैं। इन पर जिनका हाथ है, वे तो काफी बड़े हैं। पर इन तक हाथ पहुंचाना बहुत ही मुश्किल है, क्योंकि इससे सरकार ही सांसत में आ जाएगी। हमारे देश के खेत आज भी सोना उगलते हैं। गेहूं के रूप में धरती ने जो सोना उगला है, हम उसे देखकर खुश हो सकते हैं। ये सोना आज भी खुले में पड़ा है, क्योंकि इसे रखने के लिए हमारे पास जगह नहीं है। मौसम का मिजाज बदलता रहता है और गेहूं बर्बाद होता रहता है। हम केवल हाथ पर हाथ धरे बैठे रह सकते हैं। क्या करें, हमारे बड़े-बड़े गोदामों में अनाज भरा पड़ा है, वह भी पिछले साल का। जब वह खाली होगा, तभी तो इस साल का अनाज उसमें रखा जाएगा।
हमारी सरकार ने गेहूं खरीदने का लक्ष्य पूरा कर लिया है। इसलिए वह अब किसानों को ना कह रही है। अब किसान कहां जाएं? क्या करें? न चाहते हुए भी वह साहूकार की शरण में जाने को विवश है। यह किसान की विवशता है। उन्हें क्या पता आटे-दाल का भाव हमारे साथ ये विडंबना है कि हमारे नेता कभी राशन दुकान नहीं जाते। एक बार आम आदमी बनकर राशन दुकान जाएं तो सही। पता चल जाएगा आटे-दाल का भाव। क्या करें, सरकार जाने ही नहीं देती। वह हमारी सुख-सुविधाओं का खूब खयाल रखती है। राशन ही नहीं, बल्कि हमारे टेलीफोन और बिजली बिलों का भुगतान भी सरकार ही करती है। हमें कुछ करने ही नहीं देती। हमें कैसे पता चलेगा कि आज चावल क्या भाव बिक रहा है? गेहूं के दाम कम हुए कि नहीं? तेल किस ऊंचाई पर है। हां, सोने का दाम बढ़ गया है, यह हमने तब जाना, जब घर में बेटी की शादी के लिए गहने खरीदने की आवश्यकता पड़ी। नहीं तो हमें पता ही नहीं चलता। ट्रेन का जनरल डिब्बा तो हमारे नेताओं को याद ही नहीं। सरकार ने उन्हें चमचों के साथ एसी पर सफर करने के सुविधा दे रखी है। पता ही नहीं चलता कि कब स्टेशन आ गया। ऐसे में जनता की परेशानी को किस तरह से समझा जाए, यह नेताओं की विवशता है। सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो। गरीबों का शोषण यह सबका आम नारा है। इसलिए इस देश में गरीब और गरीब, अमीर और अमीर होता जा रहा है। सरकार की चालाकी को सब समझते हैं। पर क्या करें, आम जनता के पास सांपनाथ और नागनाथ के सिवा कोई विकल्प नहीं है। दोनों में से किसी एक को चुनना उसकी विवशता है। वोट डालते ही उसके सारे अधिकार पांच साल के लिए खत्म हो जाते हैं। यह एक आम भारतीय की विडंबना है। उनके बीच का ही एक आदमी उनके ही वोट लेकर चुपके से वीआइपी बन जाता है। फिर उससे मिलने के लिए लाइन में लगना पड़ता है।
भैया कल तक तो वह हमसे खुद ही मिलने आता था, अब हमें उससे मिलने के लिए लाइन में लगना होगा? इसमें दोनों की विवशता को कौन जानता है? सरकार से भूल होती रहती है। कभी प्रधानमंत्री से, कभी गृहमंत्री से तो कभी किसी अन्य मंत्री से। उसका खामियाजा सरकार नहीं आम जनता भुगतती है। आम आदमी से पांच साल में एक बार गलती होती है, उसका लाभ हमारे ये नेता उठाते हैं। खामियाजा तो बिचारी जनता को ही उठाना पड़ता है। जनता तो इन नेताओं से यह भी नहीं पूछना चाहती कि क्या देश के लिए उनके परिवार से एक सदस्य भी सेना में शामिल हुआ? उनके बच्चे किस सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं? उनकी आय में साल दर साल इतनी अधिक वृद्धि कैसे हो रही है? देश सेवा के नाम पर क्या वे केवल देश की ही सेवा कर रहे हैं या अपनी सेवा करवा रहे हैं? आखिर उनके रिश्तेदार इतने अमीर कैसे हो गए? है कोई पूछने वाला? यही आम भारतीय की विवशता है? इन नेताओं ने महंगाई को हमारी मां बना दिया है। इसका साथ हमें नहीं छोड़ना है। इस तरह से अपनी मां की जिम्मेदारी भी उन्होंने हम जनता को ही सौंप दी है। अत्याचार का सलीब ईसा मसीह ने ढोया था, हमें इस महंगाई के सलीब को जिंदगी भर ढोना है, यही हमारी विवशता है। सरकारी दावे की हकीकत सरकार का दावा है कि वह महंगाई को थामने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है, लेकिन इसके विपरीत यह थमने का नाम नहीं ले रही है। अगस्त 2011 के मंहगाई के आज जारी आंकड़ों में यह जुलाई के 9.22 प्रतिशत के मुकाबले 0.56 प्रतिशत बढ़कर 13 माह के उच्चस्तर 9.78 प्रतिशत पर पहुंच गई।
सरकार की तरफ से जारी महंगाई के मासिक आंकड़ों में खाद्य और विनिíमत उत्पादों की कीमतों में उछाल उसकी बढ़ोतरी की मुख्य वजह रही। पिछले साल अगस्त में महंगाई दर 8.87 प्रतिशत थी। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने महंगाई के आंकड़ों पर नजर डालते हुए धैर्य रखने को कहा है। उन्होंने कहा कि सरकार और रिजर्व बैक अपनी तरफ से महंगाई को रोकने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। महंगाई के आंकड़े जारी होने के बाद रिजर्व बैंक की अल्पकालिक ब्याज दरों में बढ़ोतरी की प्रबल आशंका व्यक्त की जा रही है। और अंतत: यही हुआ। मार्च- 2010 से ब्याज दरों में 11 बार बढ़ोतरी कर चुके रिजर्व बैंक ने 16 सितंबर को ऋण एवं मौद्रिक नीति की तिमाही समीक्षा पेश करते हुए रेपो और रिवर्स रेपो रेट में .25 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी। आंकड़ों के मुताबिक जून 11 में महंगाई दर पहले के अनुमानित 9.44 प्रतिशत की तुलना में 9.51 प्रतिशत पर टिक गई। वाíषक आधार पर खाद्य वस्तुओं के दामों में पिछले साल की तुलना में 9.62 प्रतिशत की तेजी आई। वर्ष के दौरान प्याज की कीमतों में 45.29 प्रतिशत का जोरदार उछाल आया। फल 22.82 प्रतिशत, दूध 9.48 प्रतिशत, अंडे, मांस और मछली के दाम 10.78 प्रतिशत बढ़ गए। वर्ष के दौरान आलू 12.53 प्रतिशत, सब्जियां 11.80 प्रतिशत अनाज 5.39 प्रतिशत, गेहूं 5.17 प्रतिशत महंगे हुए। दालों में इस अवधि में 4.26 प्रतिशत की मंदी भी आई। थोक मूल्य सूचकांक में 64.79 प्रतिशत का भारी भरकम योगदान रखने वाला विनिíमत उत्पादों की महंगाई अगस्त 11 में 7.79 प्रतिशत पर पहुंच गई। पिछले साल अगस्त में यह 5.16 प्रतिशत थी। ईधन और ऊर्जा समूह की मुद्रास्फीति 12.84 प्रतिशत हो गई।
लेखक महेश परिमल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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