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जनता खड़ी होने लगी है, रास्ते निकलेंगे

जागरण मेहमान कोना
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जनलोकपाल कानून के लिए आंदोलन कर रहे महाराष्ट्र के समाजसेवी अन्ना हजारे से देश के लोगों की अपेक्षाएं काफी बढ़ गई हैं। अन्ना के इस आंदोलन में तरह-तरह के लोग भी जुड़ रहे हैं। इससे आंदोलन के भटकाव का खतरा भी अन्ना महसूस करते हैं और वह इससे सचेत भी हैं। अन्ना के आदर्श गांव रालेगण सिद्धि में उनसे उनके आंदोलन सहित कई अन्य मुद्दों पर दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता ओमप्रकाश तिवारी ने लंबी चर्चा की। प्रस्तुत हैं इसके प्रमुख अंश


जनलोकपाल के लिए आपका आंदोलन शुरू होने के बाद से इसमें तमाम लोग जुड़ते जा रहे हैं। कुछ ऐसे लोग भी होंगे जो इस आंदोलन का फायदा उठाना चाहेंगे। उनकी पहचान आप कैसे करेंगे?

आंदोलन में ये खतरे तो होते हैं। भीड़ में आने वाले लोगों में सामाजिक-राष्ट्रीय दृष्टिकोण वाले लोग भी आते हैं, कुछ स्वार्थी लोग भी इसमें आते हैं। इसलिए देश में ये आंदोलन तो चलाना है, लेकिन कहीं भी संगठन नहीं खड़ा करना है। संगठन में कई अवांछित बातें भी होने लगती हैं। मैं महाराष्ट्र में पिछले कई वर्षो से आंदोलन चला रहा हूं। 250 ब्लॉक में हमारा भ्रष्टाचार विरोधी जनांदोलन का संगठन है। लेकिन दो बार हमें पूरे राज्य में अपने इस संगठन की सभी इकाइयां भंग करनी पड़ी हैं। तब जाकर अच्छे लोग हाथ में आ सके हैं। इसलिए देश में आंदोलन चलाना तो और भी मुश्किल काम है।


फिर क्या रास्ता है इन खतरों से बचकर चलने का?

हम नहीं चाहते कि कोई संगठन बनाकर जनलोकपाल की लड़ाई का आंदोलन चलाया जाए। स्वयंसेवक के रूप में जो लोग जुड़ना चाहते हैं वे जुड़ें। कोई संगठन बनाकर अध्यक्ष, सचिव, महासचिव जैसे पदों का सृजन हम नहीं करना चाहते। पिछले दिनों हुआ आंदोलन भी स्वत:स्फूर्त जुड़े लोगों के कारण सफल हो सका। कोई संगठन नहीं था हमारे पास। लोग स्वयं जुड़ते गए, आंदोलन बड़ा होता गया। इसी तरह का आंदोलन हमेशा चलते रहना चाहिए। हम किसी पर अपनी मुहर नहीं लगाना चाहते।


भ्रष्टाचार के साथ-साथ एक बड़ी समस्या देश में आतंकवाद की भी है। इसे समाप्त करने के संदर्भ में क्या सोचते हैं आप?

आखिर आतंकवाद क्यों बढ़ा? इसकी जड़ में भी जाना चाहिए। सरकार जिस तरह का बर्ताव करती है लोगों के साथ, उसके कारण आतंकवाद बढ़ता है। आज किसानों की जमीन लाठी-गोली चलाकर ली जाती है। क्या इसे लोकतंत्र कहेंगे? ऐसी घटनाओं के कारण आतंकवाद पैदा होता है। जब लोगों की समस्याओं पर सरकार ध्यान नहीं देगी, उनके समाज की समस्याओं पर ध्यान नहीं देगी तो आतंकवाद पैदा होगा ही। सरकार कभी इस पर विचार नहीं करती। आज सरकार को लगता है कि हम मालिक हैं देश के। इसीलिए समस्याएं पैदा हो रही हैं। सेवक बनकर सरकार काम करती तो ऐसी समस्याएं कभी पैदा नहीं होतीं। अच्छी बात है कि जनता अब खड़ी होने लगी है। इसमें से कई रास्ते निकलकर आएंगे। ये आंदोलन कहां तक जाएगा, यह आज नहीं कहा जा सकता, लेकिन आशा की किरण तो दिखाई दे रही है।


एक तरफ आडवाणी यात्रा निकाल रहे हैं, एक तरफ अन्ना की यात्रा निकलेगी। दोनों में क्या फर्क होगा?

हम कोई रथयात्रा नहीं निकाल रहे हैं। एक तरफ गरीब लोगों के पास खाने को नहीं है, दूसरी तरफ रथयात्रा निकालना हम सही नहीं मानते। कोई पैदल यात्रा करे तो हम मान सकते हैं। गांधीजी की यही नीति थी कि पदयात्रा से बहुत शक्ति मिलती है। उसे हम भी मानते हैं।


आपकी यात्रा किस तरह की होगी?

वह यात्रा तो हम लोगों को जगाने के लिए करेंगे। ट्रेन से जाएंगे देश के कोने-कोने में। बहुत जरूरी हुआ तो हवाई जहाज से जा सकते हैं। यह यात्रा हम उन राज्यों में करेंगे जहां चुनाव होने वाले हैं।


जनलोकपाल विधेयक के लिए राजनेताओं की तरफ से विपरीत बातें की जा रही हैं। इसका क्या कारण हैं?

नेताओं की तरफ से विपरीत बातें तब की जाती हैं जब उनमें दंभ की भावना आ जाती है। सेवाभाव कम हो जाता है। राष्ट्र के प्रति प्रेम कम हो जाता है। तब अहं निर्माण होता है और ऐसे शब्द निकलते हैं। यह बात ठीक नहीं है। समाज को लेकर चलने वालों को ये सोचना चाहिए कि मेरे पीछे पूरा समाज आ रहा है। मैं क्या खाता हूं, मैं क्या पीता हूं, मैं कहां रहता हूं, कहां घूमता हूं, इस पर लोगों का ध्यान रहता है। यदि मुझमें कोई कमी रह जाएगी तो उसका बुरा असर समाज पर होगा। कुछ दिनों पहले जब मैं दिल्ली में अनशन कर रहा था तो भी यहां रालेगणसिद्धि में 30-40 हजार लोग रोज आते थे। ये माहौल इसलिए बना, क्योंकि लोग मेरी तरफ देखते हैं कि मैं क्या कर रहा हूं। यह बात हमारे राजनेताओं के दिल में भी आनी जरूरी है।


आपके प्रति लोगों की अपेक्षाएं बढ़ गई हैं। रालेगणसिद्धि डाकघर में रोज 500-700 पत्र रोज आते हैं आपके नाम। आप कैसे उनकी अपेक्षाएं पूरी कर पाएंगे?

ये समस्या तो मेरे सामने भी है। देश की जनता की अपेक्षा मुझसे बहुत बढ़ गई है। जनता की यह अपेक्षा मैं कैसे पूरी कर सकूंगा, मेरे सामने ये बड़ा प्रश्न है। एक फकीर अपने मंदिर में सोता है। न धन है, न दौलत है। कोई बैंक बैलेंस नहीं है मेरा। एक दिन 500 पत्र आते हैं तो उनका जवाब देना भी मेरे लिए मुश्किल है। एक पत्र का जवाब देने के लिए पांच रुपए का भी टिकट लगाइए तो कितना पैसा खर्च होगा? ये पैसा कहां से लाऊंगा मैं। पैसा देने वाले भी हैं, लेकिन दो नंबर का पैसा हमें जमता नहीं है। ये पैसा लेकर मैं कुछ अच्छा काम करने जाऊं तो उसका बुरा असर पड़ेगा। इसलिए अपने जीवन में मैंने कभी किसी से कोई आर्थिक मदद या दान नहीं लिया। अभी दिल्ली में किसी ने मुझे एक करोड़ रुपये का अवार्ड देने की घोषणा की थी, लेकिन देने वाले लोगों के हाथ ठीक नहीं थे, इसलिए मैंने इंकार कर दिया।


तो कैसे पूरी होंगी लोगों की अपेक्षाएं?

एक मंदिर में रहने वाले एक फकीर के पीछे पूरे देश की जनता कैसे खड़ी हो गई, मेरे लिए भी यह एक रहस्य है। उनका मेरा कोई परिचय नहीं। उन्होंने मुझे देखा नहीं। फिर भी लोग मेरे पीछे खड़े हो गए, इससे मुझे भगवद्गीता का वह श्लोक याद आता है-यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत..। अर्थात, भगवान को कहीं परिवर्तन लाना है तो वह किसी न किसी को निमित्त बनाकर उसके पीछे खुद ही खड़ा हो जाता है। लोगों को सद्बुद्धि दे देता है। आज भी जनता की जो अपेक्षा बढ़ी है, उसमें कुछ न कुछ रास्ता वह निकालेगा, ऐसा मुझे विश्वास है।


अन्ना हजारे के साथ बातचीत


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