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युगों-युगों से राम भारतीय जनमानस के आराध्य रहे हैं। हिंदू उन्हें परब्रह्म विष्णु का अवतार मानते हैं। मनुष्य के जीवन में जो भी श्रेष्ठ और सुंदर है उसकी उत्पत्ति तो रामचरित्र से ही बताई जाती है। दुनिया में कई प्राचीन सभ्यताओं का जन्म हुआ जो समय के साथ इतिहास के गर्त में खो गई, किंतु युगों-युगों से इस देश में राम का गौरव आज भी कायम है। राम की कथा और उनका चरित्र अमर है, क्योंकि वह कालजयी हैं। यदि भारत में आज कोई ईमानदारी, अतिथि सत्कार, सतीत्व, परोपकार, मूक पशुओं के प्रति दयाभाव, पाप से घृणा तथा भलाई की भावना है तो वह जनमानस में रामचरित्र के प्रति आस्था के ही कारण है। पुरानी आस्था तथा संस्कृति केवल हिंदुओं या भारतीयों के लिए नहीं, बल्कि समूचे संसार के लिए सार्थक है। भारत में धार्मिक स्वतंत्रता तथा सहनशीलता की परंपरा अद्वितीय है। इस परंपरा का जन्म उस चेतना के फलस्वरूप हुआ था जिसमें सत्य पर किसी जाति या संप्रदायविशेष का अधिकार नहीं होता। ऋग्वेद का यह वाक्य विश्वप्रसिद्ध है कि-आदर्श विचारों को हर दिशा से आने दो। पर वर्तमान युग आध्यात्मिक अज्ञान एवं आत्मा की निर्धनता का है। भौतिक उन्नति को आत्मा की उन्नति नहीं समझना चाहिए।
ऋषियों ने किसी राज्य की महानता उसके आकार तथा धन-संपत्ति से नहीं, बल्कि उस राज्य में नागरिकों की भलाई तथा न्यायसंगत कार्यो के आधार पर आंका था। किसी नागरिक का समाज में मान-सम्मान धन संपत्ति या सत्ता के आधार पर नहीं, बल्कि ज्ञान, गुण तथा चरित्र के आधार पर होता था। हमारे ऋषियों ने राम के जीवन को आदर्श चरित्र के रूप में निरूपित किया है। भगवान राम की ऐतिहासिकता के बारे में पश्चिमी विचारक समय-समय पर सवाल उठाते रहे हैं और उनकी इस जिज्ञासा को समझा जा सकता है। पर राम और उनसे संबंधित स्थानों तक वर्तमान इतिहास की कोई पहुंच नहीं हो सकती है, क्योंकि उसका इतिहास सिर्फ पांच-छह हजार वर्ष का ही है। इस धरती पर मानव का अवतरण लगभग 40 लाख वर्ष पहले हुआ था। इस दौरान कितनी सभ्यताओं का उत्थान-पतन हुआ इसका विवरण इतिहासकारों के पास नहीं है। इसलिए राम के बारे में संपूर्ण जानकारी वाल्मीकि रामायण से ही मिल सकती है। वेद, उपनिषद महाभारत तथा पुराणों और आगमों से ही राम-रावण की जानकारी मिल सकती है। रामायण एवं पुराणों के अनुसार राम का प्रादुर्भाव लाखों वर्ष पूर्व चौबीसवें त्रेता युग में हुआ था।
पुराणों के अनुसार राम का जन्म 28वें मन्वंतर के 24वें त्रेता में हुआ है फिर भी पाश्चात्यों ने अपनी अटकल से उनका जन्म ईसा पूर्व कुछ सदी पूर्व या सहस्त्राब्दियों में ही माना है। जोंस नामक अंग्रेज इतिहासकार ने राम का जन्मकाल ई. पूर्व 2029 माना है। टॉड ने ई.पूर्व 1100 को राम का जन्म समय माना है। वैंथली ने ई.पूर्व 950 स्वीकार किया है तो विल्फर्ड ने ई.पूर्व 1360 को राम का जन्मकाल माना है। भौतिक विज्ञानी डा. पुष्कर भटनागर ने वाल्मीकि रामायण में राम के जन्म के समय वर्णित नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर नासा द्वारा विकसित साफ्टवेयर प्लेनेटोरियम के जरिये गणना करके यह पता लगाया है कि राम का जन्म 10 जनवरी, 5114 ईसा पूर्व में हुआ। महर्षि वाल्मीकि के अनुसार दशरथ के पुत्रेष्टियज्ञ की समाप्ति के 12 मास बीतने पर चैत्र शुक्ल नवमी पुनर्वसु नक्षत्र कर्क लग्न में तथा जब पांच ग्रह अपनी उच्च राशि में स्थित थे और गुरू चंद्र के साथ थे तब राम का अवतार हुआ। ज्योतिषियों के अनुसार रवि, भीम, गुरु, शुक्र और शनि ये पंच ग्रह उच्च के थे। अर्थात रवि मेष के, मंगल मकर के, गुरू कर्क के, शुक्र मीन के एवं शनि तुला के थे। स्थूल रीति से सप्तर्षिगण लगभग सहस्त्र वर्ष, वरूण 14 वर्ष एवं शनि लगभग 211 वर्ष एक राशि में रहते हैं। सूर्य एक राशि पर एक मास और गुरु एक राशि पर एक वर्ष रहते हैं। सूर्य, गुरू और शनि के विचार से पांचों उच्चस्थ ग्रहों की गणना करने से रामचंद्र का जन्म काल 1,85,071 वर्ष पूर्व हुआ। इन्हीं ग्रहों के अनुसार राम राज्य की महनीयता तथा राम के लोकोत्तर बल, वैभव, प्रताप आदि अतुलनीय थे। परंतु पुराण प्रमाण के अनुसार जब चौबीसवां त्रेता राम का काल है तब तो उसी के आधार पर विचार करना उचित है। रामायण में वर्णित रामेश्वर की स्थापना वर्तमान इतिहास से भी प्रमाणित होती है।
सहस्त्राब्दियों से भारत के कोने-कोने से लोग रामेश्वर का दर्शन करने जाते हैं। पुराणों में इन बातों का विशद वर्णन है। कूर्मपुराण पूर्वभाग के 21वें अध्याय में 49 से 51वें श्लोकों से रामेश्वर की महत्ता तथा प्राचीनता स्पष्ट होती है। महर्षि वाल्मीकि ने भगवान राम के समुद्र तक पहुंचने के विभिन्न मार्गो का विशद वर्णन किया है। आज भी उन्हीं मार्गो से दक्षिण भारत की तीर्थयात्रा होती है। किष्किन्धा में बाली को मारकर राम ने चौमासा किया था। वह किष्किन्धा दक्षिण भारत में आज भी प्रसिद्ध है। नासिक का संबंध रामायण की महत्वपूर्ण घटना शूर्पणखा के नासिका छेदन से है। पंचवटी भी वहीं है। रामायण से भी दोनों स्थानों का पास-पास होना प्रमाणित होता है। आधुनिक काल में भी पंचवटी और नासिक एक ही स्थान पर हैं। इन स्थानों का वाल्मीकि रामायण के वर्णन से साहचर्य संबंध प्रतीत होता है। महाकवि ने रामायण में लगभग दो सौ साठ स्थानों का वर्णन किया है। इनमें से अधिकांश स्थान आज भी दक्षिण भारत में ही हैं। गोदावरी, कृष्णा, वरदा आदि नदियां आंध्र, चोल, पाण्डय, केरल आदि स्थान दक्षिण भारत में ज्यों के त्यों विद्यमान हैं। हिंदू जाति के धार्मिक, सांस्कृतिक एवं पारिवारिक जीवन पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अमिट प्रभाव है। हिंदू परिवार में जन्म एवं विवाह के अवसरों पर रामजन्म एवं राम विवाह संबंधी गीत गाए जाते हैं। शरीर की अंतिम यात्रा रामनाम सत्य है की धुन से होती है।
भारत के कोने-कोने में राम और उनके भक्त हनुमान के मंदिर हैं। लाखों व्यक्ति प्रतिदिन रामायण का पाठ करते हैं तथा अयोध्या, रामेश्वर, पंचवटी, चित्रकूट आदि तीर्थो की यात्रा करते हैं। करोड़ों हिंदुओं के नहीं श्याम, थाईलैंड आदि देशों के निवासियों के नाम भी रामायण से संबंधित होते हैं। राम प्रत्येक हिंदू के जीवन में रम रहे हैं। ईश्वर के नामों में सर्वप्रसिद्ध नाम राम ही है। भारत के बच्चे-बच्चे की जुबान पर राम-नाम रहता है। काशी में जीवों की मुक्ति के लिए शिवजी राम-नाम का उपदेश करते हैं। फिर भी राम की ऐतिहासिकता पर शंका करना केवल मतिविभ्रम ही है। महर्षि मार्कण्डेय ने वनवास के समय युधिष्ठिर से कहा था आपकी विपत्ति से मुझे रामचंद्र का स्मरण हो आया। पिता की आज्ञा से धनुष हाथ में लेकर घूमते हुए उन्हें ऋष्यमूक पर्वत पर मैंने देखा था। उन्होंने यह नहीं कहा कि मैंने केवल सुना है। गीता में कृष्ण कहते हैं कि शस्त्रधारियों में मैं राम हूं। अध्यात्म रामायण, आनंद रामायण, अगस्त्य संहिता आदि में राम की चर्चा है। ऐसे में राम को अनैतिहासिक कहना अनभिज्ञता का ही परिचय देना है। रामसेतु एवं रामेश्वर की स्थापना भी राम के ऐतिहासिक होने का ज्वलंत प्रमाण है।
लेखक निरंकार सिंह स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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