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अपनी टीम दुरुस्त करें अन्ना

जागरण मेहमान कोना
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A Surya Prakashकिरण बेदी के हवाई यात्रा बिल संबंधी भ्रष्टाचार पर अन्ना हजारे की सफाई को अनुचित बता रहे है ए सूर्यप्रकाश


अन्ना हजारे की टीम और उनके आंदोलन को नीचा दिखाने को तमाम तिकड़में अपनाने वाली केंद्र सरकार की ‘चौकड़ी’ के खिलाफ अन्ना हजारे का विषवमन समझ में आता है। वास्तव में हम सबको पता है कि गत अप्रैल को जबसे अन्ना ने जंतर-मंतर पर पहला अनशन किया था, तभी से ‘भद्दी तिकड़म विभाग’ दिन-रात अन्ना और उनकी टीम की अवमानना करने में जुटा है। असल में यह आम लोगों की अलौकिक क्षमता ही है जिसने इस तरह के कुत्सित प्रयास को दरकिनार कर अन्ना आंदोलन को पूरे देश में भरपूर समर्थन दिया। हालांकि अन्ना के अभियान को मिले जोरदार समर्थन की एक शर्त है-अन्ना और उनकी टीम नैतिकता और मर्यादा के उन आदर्शो का पालन करे, जो उसने राजनेताओं और सरकार के लिए तय करे है। कुछ हालिया घटनाएं सवाल उठाती है कि क्या अन्ना वास्तव में इसको लेकर सचेत है। उदाहरण के लिए, किरण बेदी पर लगे हवाई जहाज के भ्रष्टाचार के आरोप पर अन्ना की वकालत समझ से परे है।


मीडिया में आई खबरों के मुताबिक हालिया वर्षो में किरण बेदी ने अपने आयोजकों से हवाई यात्रा के वास्तविक खर्च से अधिक वसूल किया। उन्होंने इकोनोमी क्लास में यात्रा की और बिल एग्जीक्यूटिव क्लास का दिया। यह भी पता चला है कि शौर्य पुरस्कार प्राप्त होने के नाते उन्होंने एयर इंडिया के टिकटों पर 75 फीसदी छूट हासिल की, जबकि आयोजकों से पूरे टिकट का पैसा वसूला। इस संबंध में किरण बेदी की पहली प्रतिक्रिया थी कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया। भाड़े का अंतर अपनी जेब में डालने के बजाए अपने एनजीओ में जमा करा दिया गया है। उनकी दूसरी दलील यह थी कि उन्होंने अपने एनजीओ के माध्यम से जनकल्याण के काम करने के लिए कम सुविधाओं में यात्रा का कष्ट झेलकर धन जुटाया। किंतु ये दलीलें विश्वसनीय नहीं लगती खासतौर पर तब जबकि कुछ आयोजकों ने मीडिया को बताया कि उन्हे यह मालूम नहीं था कि जिस क्लास का वे भुगतान कर रहे है, उसमें किरण बेदी ने यात्रा नहीं की। किरण बेदी का दृष्टिकोण तब और अस्वीकार्य हो जाता है जब भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा और जस्टिस संतोष हेगड़े घोषणा करते है कि इन दलीलों में कोई दम नहीं है।


किरण बेदी के अड़ियल रवैये ने बहुत से अन्ना समर्थकों को सकते में डाल दिया। यह देखकर कि पानी सिर के ऊपर से उतर रहा है किरण बेदी ने घोषणा की कि उनके एनजीओ ने उन्हे निर्देशित किया है कि आगे से निमंत्रण के अनुसार ही यात्रा करे। उन्होंने शायद सोचा कि इससे उनके आलोचक शांत पड़ जाएंगे किंतु ऐसा नहीं हुआ। बल्कि इससे नए सवाल खड़े हो गए। पहला यह कि क्या यात्रा बिल के भुगतान में ईमानदार होने के लिए किसी और के फरमान की आवश्यकता पड़ेगी? दूसरे, अगर यह अपने एनजीओ के लिए धन जुटाने का वैधानिक तरीका है तो उनके ट्रस्ट ने उन्हे अपने आयोजकों से लिए गए अधिक धन को वापस लौटाने को क्यों कहा?


संभवत: किरण बेदी ने उम्मीद की थी कि उनके ट्रस्ट का यह फैसला उन्हे फजीहत से बचा लेगा किंतु ऐसा नहीं हुआ क्योंकि यह हालात सुधारने का आधा-अधूरा प्रयास था। अंतत: इन प्रयासों में विफल होने के बाद किरण बेदी ने एक बड़ी घोषणा की कि अब तक उन्होंने यात्रा व्यय के मद में जितनी भी अतिरिक्त राशि वसूली है, वह वापस कर दी जाएगी और इसके लिए ट्रेवलिंग एजेंसी को निर्देश दे दिया गया है। इन बयानों से फिर से सवाल खड़े हो गए। जैसा कि बेदी ने कहा था कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया तो फिर उन्होंने आयोजकों से ली गई अतिरिक्त राशि वापस लौटाने का फैसला क्यों लिया? यही नहीं, उनके यह कहने में कि ट्रेवल एजेंट उन संगठनों को पैसा वापस लौटाएगा, यह निहित है कि उनके बजाय उनका ट्रेवल एजेंट आयोजकों से अधिक राशि वसूल रहा था।


ट्रेवल एजेंसी ने तुरंत ही किरण बेदी के दावे को चुनौती देते हुए कहा कि उसका काम तो केवल किरण बेदी की तरफ से टिकट खरीदकर एनजीओ के लिए बिल काटना भर है। देखें अब किरण बेदी क्या स्पष्टीकरण देती है! इस सबके बाद हम अन्ना हजारे को वहां पाते हैं जहां कदम बढ़ाने से फरिश्ते भी डरते है। अपने ब्लॉग पर अन्ना किरण बेदी का बचाव करते हुए बड़ी लचर दलील पेश करते है। वह कहते है किरण बेदी पर हवाई यात्रा भ्रष्टाचार का आरोप है। बेदी ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि अगर उन्होंने ऐसा कुछ किया है और पैसे को अपने या अपने परिवार पर खर्च किया है तो सरकार अपनी किसी एजेंसी से जांच करा ले और दोषी पाए जाने पर उनके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करे। अन्ना का कहना है कि सरकार ऐसा कदम उठाने को तैयार नहीं है। वह तो बस दोष लगाना और शर्मिदा करना चाहती है। सरकार में एक चौकड़ी जनलोकपाल बिल के खिलाफ है और वही उनकी टीम के सदस्यों की फजीहत करने पर आमादा है।


सवाल यह नहीं है कि किरण बेदी ने इस राशि का इस्तेमाल अपने या अपने परिवार के लिए किया है। सवाल शुचिता का है। अगर कोई व्यक्ति जो सरकार या निजी कंपनी में कार्यरत हो इस प्रकार के फर्जी यात्रा बिल बनाता है और वास्तविक यात्रा व्यय और बिल की राशि के अंतर की रकम हासिल करता है तो उसे तत्काल सेवा से बर्खास्त कर दिया जाएगा। उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता के तहत धोखाधड़ी का मामला भी दर्ज किया जा सकता है। यहां तक कि सांसदों और मंत्रियों को भी टीए-डीए बिल में गोलमाल करने पर पद से हाथ धोना पड़ सकता है। इंग्लैंड में अनेक सांसदों को संसद में फर्जी रसीदें पेश करने की कीमत चुकानी पड़ी है। अमेरिकी संसद ने करमुक्त फंड के दुरुपयोग पर अपने स्पीकर न्यूट गिंगरिच को फटकारते हुए उन पर जुर्माना लगा दिया था। इस आलोक में अन्ना हजारे को किरण बेदी के बचाव में उतरते देखना बहुत दयनीय है।


भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए लाखों-करोड़ों लोगों ने ब्रांड अन्ना में विभिन्न स्तरों पर निवेश किया है। अन्ना के किरण बेदी के बचाव में उतरने से ब्रांड अन्ना में निवेश करने वाले आम लोगों को अपने साथ छल का एहसास हो रहा है। जिस महान कार्य का उन्होंने बीड़ा उठाया है उसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए उन्हे अपने सहयोगियों के आचरण पर सावधान हो जाना चाहिए। चूंकि वह व्यवस्था की सफाई चाहते है, इसलिए उन्हे अपने आसपास के लोगों से ईमानदारी के उच्चतम आदर्शो के पालन की मांग करनी चाहिए। संक्षेप में व्यवस्था को बदलने से पहले उन्हे अपने घर को दुरुस्त करना चाहिए।


लेखक ए सूर्यप्रकाश वरिष्ठ स्तंभकार हैं


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