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चार दशक बाद न्याय की आस

जागरण मेहमान कोना
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Rajeev Sharma14 नवंबर, 2011 को बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता सलाउद्दीन कादर चौधरी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल में युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराध का मामला दर्ज किया जाएगा। उनके खिलाफ आरोपों की जांच कर रही एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप दे दिया है। जांचकर्ताओं ने कम से कम 32 युद्ध अपराधों में चौधरी की संलिप्तता के साक्ष्य जुटाए हैं। इनमें स्वतंत्रता सेनानियों के उत्पीड़न और हत्या के आरोप भी शामिल हैं। 119 पेज की जांच रिपोर्ट के साथ करीब 8000 पेजों में गवाहों, पीड़ितों और उनके परिजनों के बयान तथा अन्य दस्तावेज नत्थी किए गए हैं। एजेंसी ने चौधरी द्वारा किए गए अपराधों के खिलाफ 146 गवाहों के बयान दर्ज किए हैं।


चौधरी के पिता फजलुल कादर चौधरी पाकिस्तान सरकार में मंत्री तथा 60 के दशक में पाकिस्तान नेशनल एसेंबली में स्पीकर रह चुके हैं। चौधरी का परिवार हमेशा मुस्लिम लीग का समर्थक रहा। फजलुल कादर चौधरी 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान बांग्लादेश में पाकिस्तान के एजेंट के तौर पर काम देख रहे थे। 1971 में चौधरी लंदन में ग्रेजुएशन कर रहे थे। चिटगांव में विद्रोह फूटते ही वह बांग्लादेश लौट आए और यहां हिंदु समुदाय के लोगों के नरसंहार के बाद उनकी संपत्ति पर कब्जा जमाने में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। मुक्ति युद्ध के दौरान चौधरी का चिटगांव स्थित गुड्स हिल निवास उत्पीड़न का अड्डा बन गया था, जहां स्वतंत्रता सेनानियों का बर्बरता से उत्पीड़न किया गया। युद्ध अपराधियों की कोई भी सूची चौधरी की अध्यक्षता के बिना पूरी नहीं होगी। पाकिस्तानी सेना के समर्पण से एक दिन पहले चौधरी लंदन के लिए उड़ गए। 18 दिसंबर, 1971 को बांग्लालेश के गठन के दो दिन पश्चात उनके पिता समेत परिवार के अन्य सदस्यों को नौका द्वारा म्यांमार भागते समय भारतीय नौसेना ने दबोच लिया था। इसके बाद उन्हें बांग्लादेश सरकार को सौंप दिया गया था। उनके पिता का ढाका केंद्रीय कारागार में 1973 को निधन हो गया था।


अगस्त 1975 को बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद चौधरी वापस बांग्लादेश लौट आए। 1977 में जनरल जियाउर रहमान द्वारा मुक्ति संग्राम का विरोध करने वाली तमाम सैन्य इस्लामिक पार्टियों से प्रतिबंध हटाने के बाद मुस्लिम लीग को पुनर्जीवित करके वह सक्रिय राजनीति में उतर गए। एक सच्चे मुस्लिम लीगी की तरह चौधरी चिटगांव और इससे लगे इलाकों में स्वतंत्रता सैनानियों, खासकर हिंदुओं की हत्या करने में सबसे आगे रहे।


मुक्ति संग्राम के कट्टर विरोधी होने के बावजूद चौधरी बांग्लादेश में भी मंत्री और प्रधानमंत्री के सलाहकार बने। इन दोनों पदों पर रहते हुए वे बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज लगी गाड़ी पर देश भर में घूमे। यह एक विडंबना है कि जिस राष्ट्रीय ध्वज के लिए हजारों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान गंवा दी, वह उस व्यक्ति के वाहन की शोभा बढ़ा रहा था जिसने स्वतंत्रता सेनानियों के नरसंहार में अहम भूमिका निभाई। 1985 से 1989 के दौरान जनरल इरशाद के कार्यकाल में चौधरी कैबिनेट मंत्री बने और 1996 के संसदीय चुनाव से पहले उन्होंने बीएनपी का गठन किया। बीएनपी के नेतृत्व में चार दलों के गठबंधन ने 2001 में सरकार बनाई। चौधरी को प्रधानमंत्री खालिदा जिया का सलाहकार नियुक्त किया गया। अपने परिवार के मुस्लिम लीग और पाकिस्तानी राजनीतिक नेताओं से करीबी संबंधों के कारण उन्होंने पाक सेना व आइएसआइ के साथ गठजोड़ स्थापित कर लिया। जांचकर्ताओं ने चिटगांव से हथियारों की तस्करी और भारत के उग्रवादी संगठन उल्फा को आपूर्ति मामले में चौधरी की संलिप्तता की पुष्टि की है। चौधरी ने 2007 में एआरवाई बांग्लादेश टीवी चैनल शुरू किया। यह दुबई के एआरवाई समूह की अनुषंगी इकाई है। 1998 में नैरोबी में अमेरिकी दूतावास पर धमाके में अलकायदा के सहयोगी के तौर पर एआरवाई समूह की संलिप्तता की पुष्टि हो चुकी है। हालांकि 6 सितंबर, 2007 को एआरवाई बांग्लादेश टीवी चैनल को बंद कर दिया गया।


चौधरी ने जेईआइ, बीएनपी तथा पाकिस्तान सैन्य खुफिया नेटवर्क के साथ मिलकर जनवरी 2009 में गठन के तुरंत बाद शेख हसीना सरकार को अस्थिर करने के लिए बीडीआर में बगावत की साजिश रची थी। बांग्लादेश का राजनीतिक और व्यापारिक तबका चौधरी के बहुआयामी आपराधिक नेटवर्क के बारे में भलीभांति परिचित है। वे उनकी शक्ति से इतना भयभीत रहते हैं कि उनके बारे में चुप रहना ही पसंद करते हैं। वह एक सुसंगठित सशस्त्र समूह के संरक्षक हैं, जो चिटगांव और रौजन इलाकों में आपराधिक गतिविधियों में लिप्त है। चौधरी उन्हें सुरक्षा प्रदान करते हैं। चिटगांव और आसपास के इलाकों के अनेक पुलिस स्टेशनों में चौधरी के खिलाफ 72 मामले लंबित हैं, किंतु इन मामलों के संदर्भ में उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई और न ही उन्हें कोर्ट के सामने पेश होने को कहा गया। सेना समर्थित कार्यवाहक सरकार द्वारा अपराध और भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोलने के बाद उन्हें पहली बार गिरफ्तार किया गया। तब इस्लामाबाद ने ढाका पर दबाव डालकर चौधरी को जेल से रिहा करा दिया। उस समय चौधरी की पत्नी ने पाकिस्तान के कई चक्कर काटे थे और अनेक उच्चाधिकारियों के सामने अपने पति की रिहाई के लिए दबाव डालने की गुहार लगाई थी। जब बांग्लादेश कार्यवाहक सरकार के पीछे की प्रमुख शक्ति बांग्लादेश के सैन्य प्रमुख जनरल मोइन अहमद ने 2008 में पाकिस्तान का दौरा किया तो उनके दूतों ने शेख हसीना या बीएनपी प्रमुख खालिदा जिया के बारे में पूछने के बजाय चौधरी के बारे में पूछना उचित समझा था।


लेखक राजीव शर्मा सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं


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