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वहां हिंदू होना मानो अपराध है

जागरण मेहमान कोना
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पाकिस्तान में अल्पसंख्य समुदाय खासकर हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार कोई नई बात नहीं है। विभाजन के बाद से ही वहां के हिंदू बाशिंदों को एक साजिश के तहत खत्म किया जा रहा है। एक फीसदी से कुछ ज्यादा अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय कट्टरपंथियों की आंखों में शुरू से चुभते आए हैं। कट्टरपंथी ताकतें उन्हें खत्म करने के लिए दो रास्ते अपना रखी हैं। एक तो उनकी हत्या करना और दूसरा उनका जबरन धर्मातरण कराना। भारत सरकार चुप है। हिंदू अल्पसंख्यकों की हत्या पर कड़ी प्रतिक्रिया देने से भी कतरा रही है। इस मामले में अमेरिका की तारीफ करनी होगी। उसने तीन हिंदू डॉक्टरों की हत्या की कड़ी निंदा की है। पाकिस्तान से कार्रवाई की मांग भी की है। अमेरिकी विदेश विभाग के हवाले से कहा गया है कि अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाना अनुचित है और पाकिस्तान सरकार को हत्यारों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। लेकिन सच यह है कि यह सब खेल पाकिस्तान सरकार के इशारे पर चल रहा है। लिहाजा, हत्यारों के खिलाफ कार्रवाई संभव ही नहीं है। पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत और ब्लूचिस्तान में स्थिति और भयावह है। अल्पसंख्यक हिंदू-सिख समुदाय की जान सांसत में है। कट्टरपंथियों ने इन पर जजिया कर लगा रखा है।


जजिया न चुकाने वाले हिंदू-सिखों की सरेआम हत्या की जा रही है। उन्हें डराया-धमकाया जा रहा है। कई सौ हिंदू-सिख परिवार घर-बार छोड़कर भाग गए हैं। उनकी संपत्तियां लूट ली गई हैं। उनके आस्था केंद्रों को तबाह कर दिया गया है। मंदिरों और गुरुद्वारों को आग के हवाले किया जा रहा है। मूर्तियां तोड़ी जा रही हैं। पिछले साल सिंध प्रांत में एक हिंदू लड़के द्वारा मस्जिद के कूलर से पानी पी लेने से बवाल मचा था। कट्टरपंथियों ने उसे खूब मारा-पीटा। डर के कारण 400 हिंदू परिवारों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा। पाकिस्तान में हिंदू होना अपराध हो गया है। पिछले दिनों प्रकाशित पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) की रिपोर्ट से भी पाकिस्तान की असली तस्वीर उजागर हो जाती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में हिंदू और सिख समुदाय के लोगों की स्थिति बेहद दयनीय है। वे गरीबी-भुखमरी के दंश से पीडि़त हैं। आर्थिक रूप से बदहाल हैं। वे आतंक, आशंका और डर के साए में जी रहे हैं। उनके साथ भेदभाव हो रहा है। पाकिस्तान का अल्पसंख्यक समुदाय सरकार से एक अरसे से अपने जीवन की सुरक्षा और मान-सम्मान की रक्षा की मांग कर रहा है। कुछ सामाजिक संगठन भी अल्पसंख्यकों के पक्ष में आवाज उठा रहे हैं, लेकिन उन्हें डरा धमका कर चुप करा दिया जा रहा है।


पाकिस्तानी सीनेट की स्थायी समिति ने बहुत पहले ही इस तरह की अघोरतम घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए सरकार से ठोस उपाय करने का सुझाव दिया था, लेकिन पाकिस्तान सरकार ने कोई ठोस पहल नहीं की। जाहिर है कि सरकार की मंशा और नीयत में खोट है। वह अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देकर कट्टरपंथियों और कठमुल्लों को नाराज करना नहीं चाहती है। वह धार्मिक अल्पसंख्यकों को तुच्छ और दोयम दर्जे का नागरिक बनाए रखना चाहती है। तमाशा देखिए कि अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने के नाम पर महज एक ईसाई सांसद तय किया जाता है। कानूनी तौर पर भी धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ नाइंसाफी जारी है। एक ही अपराध के लिए अलग-अलग सजा का प्रावधान है।


अल्पसंख्यकों की उंगलियां काटना, अंग-भंग करना और हाथ-पैर तोड़ना आम बात है। जीवित अल्पसंख्यकों के साथ तो पाकिस्तानी सरकार और अवाम संवेदनहीनता दिखाती ही है, मृतकों के साथ भी उसका आचरण गैर-इंसानियत वाला ही होता है। हिंदू अल्पसंख्यकों को नीचा दिखाने के लिए उनके शवों की जलती चिता में पानी डालना, अधजले शवों को घसीटकर गंदे नाले में फेंक जाना आम बात है। पाकिस्तान ने सरकार हिंदू बस्तियों से कई सौ किलोमीटर दूर श्मशान स्थल की व्यवस्था की है। अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर हाल ही में प्रकाशित अमेरिकी आयोग की एक रिपोर्ट तो और चौंकाने वाली है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तानी स्कूलों की किताबें अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं के खिलाफ नफरत और असहिष्णुता को बढ़ावा देती है। स्कूलों की जहरीली मजहबी शिक्षा का ही नतीजा है कि पाकिस्तान में भारत को चिर प्रतिद्वंद्वी मानने वाली विचारधारा को काफी तवज्जो मिल रही है। भारत सरकार को पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदू-सिखों पर हो रहे अत्याचारों पर रोक लगाने के लिए तत्काल दबाव बनाना चाहिए।


लेखक अरविंद जयतिलक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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