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काले धन को संरक्षण

जागरण मेहमान कोना
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सरकार पर दोहरा कराधान संधि के माध्यम से विदेशों में काला धन जमा करने वालों को बचाने का आरोप लगा रहे हैं ए. सूर्यप्रकाश


पांच साल की हीलाहवाली के बाद आखिरकार संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन [संप्रग] सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र संधि को मंजूरी दे ही दी। साथ ही 80 देशों के साथ दोहरा कराधान संधि और पांच देशों के साथ कर सूचना विनिमय समझौते पर हस्ताक्षर भी कर दिए है। किंतु सवाल उठता है कि इन पहल के बाद क्या हम भारत से विश्व के टैक्स हैवंस देशों में जाने वाले धन का प्रवाह रोक सकते है?


इन कदमों की प्रभावोत्पादकता यानी भारत से विदेशी बैंकों में जाने वाले काले धन के प्रवाह को रोकने के प्रयासों की विवेचना जरूरी है। भ्रष्टाचार की समस्या से निपटने के लिए संप्रग सरकार की प्रतिबद्धता इस तथ्य से ही साफ हो जाती है कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र समझौता के अंगीकार होने के दो साल बाद इस पर अंतिम निर्धारित तिथि 9 दिसंबर 2005 को हस्ताक्षर किए। इसके पश्चात, देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ बढ़ते प्रदर्शनों और आंदोलन के बावजूद सरकार इस समझौते की संपुष्टि को मई 2011 तक टालती रही। जाहिर है, इस देरी के लिए सरकार कुछ दलीलें पेश करेगी, जैसाकि पहले भी अपनी तमाम चूकों के लिए वह करती रही है, किंतु इससे मामला खत्म नहीं हो जाता। इस समझौते में तमाम देशों को एक दूसरे के साथ हर सूरत में भ्रष्टाचार के खिलाफ सहयोग करना है। इनमें भ्रष्टाचार की रोकथाम, जांच-पड़ताल और दोषियों को सजा देना शामिल है। तमाम देश साक्ष्य जमा करने और इन्हे दूसरे देशों के साथ साझा करने तथा दोषियों का प्रत्यर्पण करने के लिए बाध्य है। इसके अलावा देशों पर भ्रष्टाचार का पता लगाने और इस पर अंकुश लगाने की भी जिम्मेदारी है। चूंकि यह समझौता हमारी सरकार को विदेशों में गैरकानूनी ढंग से धन जमा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई में अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्रदान करता है, इसलिए समझौते को मंजूरी देने और काले धन की समस्या से निपटने में ढिलाई समझ से परे है।


जहां तक दोहरे कराधान संधियों का संबंध है, अभी तक ऐसी कोई जानकारी नहीं है कि सरकार ने इस प्रकार के समझौतों से कोई लाभ उठाया है और विदेशों में जमा भारी-भरकम रकम को भारत लाने की पहल की है। यही नहीं, इस संधि के तहत अगर कोई सूचना मिलती भी है तो यह सार्वजनिक नहीं की जा सकती। इसके अलावा न दोषियों के नाम का खुलासा किया जा सकता है और न ही उनके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। राज्यसभा में 2 अगस्त को वित्तामंत्री प्रणब मुखर्जी ने बयान दिया, ‘जब भी विदेशी बैंकों में जमा धनराशि के बारे में सूचना मिलेगी, उसकी पुष्टि की जाएगी और कर की अघोषित राशि को वापस लाने की कार्रवाई की जाएगी।’ प्रणब मुखर्जी के इस बयान पर हंसा ही जा सकता है। बहरहाल, सरकार इससे अधिक कुछ कर भी नहीं सकती।


सरकार ने 80 देशों के साथ दोहरे कराधान की जो संधियां की है, उनसे और बड़ी बाधा खड़ी हो गई है। मंत्री का कहना है कि ये समझौते सरकार को दोषियों का नाम घोषित करने की अनुमति नहीं देते। सरकार दोषियों के नाम गुप्त रखने के कर्तव्य से बंधी है। दूसरे शब्दों में, हम दोषियों की पहचान करने के बाद उनसे विदेशी बैंकों में जमा धन राशि का स्वामित्व स्वीकारने की चिरौरी करेंगे और अगर वे ऐसा कर लेते है तो फिर उनसे आय कर जमा करने को कहेगे। इससे अधिक कुछ संभव नहीं है। कानूननिर्माओं ने राजनेताओं, उद्योगपतियों, नौकरशाहों और उन तमाम लोगों के हितों को सुरक्षित रखने का क्या नायाब उपाय निकाला है, जिन्होंने काले धन को विदेशी बैंकों में जमा कर रखा है। दोषियों की ढाल बने इन प्रावधानों के आधार पर सरकार ने यूजीटी बैंक में धन जमा करने वालों की पहचान गोपनीय रखी। सरकार ने संसद को बताया कि उसने विदेशों में काला धन जमा करने वाले 18 लोगों से 24.26 करोड़ रुपये कर जमा करने को कहा है। जैसे ही ये लोग कर और जुर्माना अदा कर देते है, इसी तर्ज पर ऐसे अन्य सभी लोगों से कर वसूल कर लिया जाएगा। इसी प्रकार की शरारत स्विटजरलैंड के एचएसबीसी बैंक के सात सौ खाताधारियों के संबंध में भी की गई है। जबसे फ्रांस से यह सूची मिली है, केंद्र सरकार चिंता में डूब गई है। उसे समझ नहीं आ रहा कि इस सूचना का क्या करे। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार आयकर विभाग ने इन सभी खातेधारकों को तलब करके अपनी विदेशी जमापूंजी की घोषणा करने को कहा है। चूंकि कानून संशोधित आयकर जमा करने की अनुमति प्रदान करता है, इसलिए यहां इसका इस्तेमाल हो सकता है। इस प्रकार की स्वत: घोषणाओं के कारण वे कानूनी कार्रवाई से बच जाएंगे।


पिछले कुछ वर्षो में अनेक व्यक्तियों और संस्थानों ने सरकार को काले धन पर चेताया है। भारतीय जनता पार्टी द्वारा गठित एक कार्यदल ने इस संबंध में कुछ मूल्यवान सुझाव दिए थे। उच्चतम न्यायालय सरकार को कार्रवाई के लिए हांक रहा है। बाबा रामदेव और अन्ना हजारे ने काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाए है। डॉ. सुब्रहमण्यम स्वामी और राम जेठमलानी जैसे प्रमुख नागरिकों ने काले धन पर सरकार को घेरा है। किंतु सरकार के कानों पर जूं नहीं रेगी। सरकार का रवैया गंभीर सवाल खड़े करता है। अगर दोहरा कराधान संधि दोषियों को बचाती है तो सरकार अधिकाधिक देशों के साथ यह संधि क्यों कर रही है। अगर वर्तमान कानून देश को लूट कर विदेशों में धन जमा करने वाले अपराधियों से निपटने में सक्षम नहीं है तो सरकार इन कानूनों में संशोधन क्यों नहीं करती। ऐसे कानून क्यों नहीं बनाती जो इन अपराधियों को जेल में भेजें और उनके खाते जब्त करे।


लेखक ए. सूर्यप्रकाश वरिष्ठ स्तंभकार हैं


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