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केरल हाईकोर्ट की नाराजगी, अन्ना की हुंकार, सहयोगी दलों के सांसदों की बेरुखी और मौके की ताक पर बैठे विपक्ष की बेकरारी यह संकेत करती है कि 21 नवंबर से शुरू होने वाला संसद का शीतकालीन सत्र सरकार की ठंड को उड़ा देगा। इस सत्र के दौरान अन्ना हजारे की भी अग्निपरीक्षा हो जाएगी। अभी तो सरकार चारों तरफ से घिरी हुई है। एक तरफ वह अपने ही साथियों की नाराजगी झेल रही है, दूसरी तरफ उसका पूरा प्रयास है कि अन्ना के साथियों में बिखराब आ जाए। सरकार जितना अधिक प्रयास करती है उलझनों से बाहर निकलने की, वह उसमें उतनी ही उलझती जा रही है। इसके बाद भी प्रणब मुखर्जी जैसे बड़े नेता यह कहने लगे कि महंगाई अभी और बढ़ेगी तो आम आदमी का हौसला पस्त होने लगता है। यह अवश्य है कि उनके बयानों से व्यापारियों के पौ-बारह हो जाते हैं। वे जमाखोरी और कालाबाजारी में लिप्त हो जाते हैं। इधर अन्ना हजारे की हुंकार के बाद उनके समर्थकों पर प्रहार तेज हो गए हैं।
किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल ने धन वापस करके एक मिसाल तो पेश की ही है। फिर भी उन पर भ्रष्टाचार के आरोपों की झड़ी लगी ही है। पूरे देश की नजरें इस समय शीतकालीन सत्र पर है। इसमें संप्रग सरकार के अलावा टीम अन्ना की भी अग्निपरीक्षा होनी है। यह सच है कि कोई साल भर लगातार बोलता ही रहे तो लोग उससे आजिज आ जाते हैं। पर लंबी खामोशी के बाद अगर कुछ कहा जाता है तो उसका महत्व होता है।
अन्ना हजारे ने 19 दिनों का मौन रखकर जब कुछ कहा तो वह कांग्रेस के खिलाफ ही गया। इसका भी महत्व है। अब उन्होंने कहा है कि यदि जन लोकपाल बिल संसद के शीतकालीन सत्र में पारित नहीं किया गया, तो वे तीसरी बार अनशन करेंगे। उधर सरकार की पूरी कोशिश है कि सत्र के पहले अन्ना की टीम को किसी भी तरह से कमजोर कर दिया जाए। दिग्विजय सिंह की तीखी जुबान अब भी चल ही रही है। अभी तक उस पर कोई अंकुश नहीं है। वे कांग्रेस प्रवक्ता से अधिक बोल रहे हैं। उन्होंने संघ परिवार पर हमला करते हुए यह भी कह दिया है कि संघ अपने तीसरे प्लान के अनुसार श्रीश्री रविशंकर को भी मैदान में उतारना चाहता है। उधर संसद में सरकार जो बिल लाने वाली है, वह अन्ना के मुताबिक न होने के कारण अन्ना ने अभी से ही अपनी भाषा को मुखर बना दिया है। इस बार उन्होंने जो धमकी दी है, उसमें कहा गया है कि यदि शीतकालीन सत्र में जन लोकपाल बिल पास नहीं किया गया तो वे पहले तीन दिनों तक प्रतीक उसवास रखेंगे, उसके बाद जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, वहां जाकर कांग्रेस के खिलाफ चुनाव प्रचार करेंगे। यदि अन्ना अपनी पूरी ताकत से उक्त पांच राज्यों में कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करते हैं तो यह रामलीला मैदान से भी अधिक हानिकारक साबित होगा। भ्रष्टाचार के विरोध में टीम अन्ना की लड़ाई में जो पागलपन दिखाई दे रहा है, उसमें भी एक तथ्य है। इस तथ्य के अनुसार भाजपा और संघ परिवार का टीम अन्ना से क्या रिश्ता है, यह रहस्य के आवरण में है।
टीम अन्ना के समर्थक यह मानते हैं कि अन्ना हजारे और उनके साथी संघ परिवार और भाजपा के नेटवर्क का चालाकी पूर्वक उपयोग करके अपना मिशन चला रहे हैं। दूसरी ओर संघ परिवार के समर्थक यह मानते हैं कि भाजपा और संघ परिवार ने टीम अन्ना का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है और वे संघ परिवार के एजेंडा के अनुसार ही चल रहे हैं। राजघाट में अन्ना हजारे ने अपने भाषण में कहा कि भ्रष्टाचार के मामले में भाजपा यदि ग्रेजुएट है तो कांग्रेस पीएचडी है। टीम अन्ना, कांग्रेस और भाजपा के बीच कितना प्यार और कितनी नफरत है, यह तो शीतकालीन सत्र में सामने आ ही जाएगा। बहरहाल, देखना यह है कि कांग्रेस अन्ना के खिलाफ क्या कर सकती है? वैसे सरकार तो खुद ही उलझी हुई है। ममता का अडि़यलपन एक बार फिर सामने आ चुका है। सहयोगी दल भी अपने तेवर दिखा रहे हैं। चुनाव आते ही समीकरण बदलने लगे हैं, सभी को जनता के सामने जवाब देने जाना है। कांग्रेस ने उन्हें कहीं का नहीं रखा। ममता ने तो अपनी ताकत दिखा दी, अन्य दल भी अपना पूरा जोर लगाएंगे ही। इन हालात में संसद का शीतकालीन सत्र देश को एक नए मोड़ पर ला देगा, इसकी पूरी संभावना है।
लेखक महेश परिमल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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