Menu
blogid : 5736 postid : 2576

कितनी उम्मीद करें शीतकालीन सत्र से

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

संसद का शीतकालीन सत्र हंगामेदार होने की पूरी संभावना है। विपक्षी दलों ने सरकार को घेरने के लिए मोर्चाबंदी तेज कर दी है। सरकार की चिंता जहां संसद को सुचारू रूप से चलाने के अलावा कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने की होगी, वहीं मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी महंगाई और भ्रष्टाचार के सवाल पर सरकार की नाक काटने के लिए तैयार बैठी है। भारतीय जनता पार्टी के अलावा वामपंथी दल एवं अन्य छोटे-छोटे राजनीतिक दल भी महंगाई और भ्रष्टाचार के सवाल पर सरकार की बांह मरोड़ने की कोशिश कर सकते हैं। संसद के शीतकालीन सत्र में जिन विधेयकों को अमलीजामा पहनाया जाना है, उनमें प्रत्यक्ष कर संहिता विधेयक, भूमि अधिग्रहण विधेयक, बैंकिंग एवं बीमा संशोधन विधेयक सहित कुल 31 विधेयक हैं। लेकिन इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण लोकपाल विधेयक है, जिस पर पूरे देश की निगाह टिकी हुई है।


सरकार वादा भी कर चुकी है कि शीतकालीन सत्र में वह लोकपाल विधेयक लाएगी। इन सबके बीच चर्चा यह भी है कि भारतीय जनता पार्टी सरकार के खिलाफ अविश्वास का प्रस्ताव ला सकती है। इस स्थिति में सरकार और उसके सहयोगी दलों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। हालांकि सरकार के पास संख्या बल है और उसे सत्ता खोने का डर नहीं है और न ही सहयोगी दल ही रिश्ते-नाते खत्म करने को तैयार दिख रहे हैं, लेकिन भ्रष्टाचार और महंगाई के मुद्दे पर वे कतई नहीं चाहेंगे कि सरकार के साथ उनका चेहरा दागदार दिखे। इन परिस्थितियों में सरकार के साथ होते हुए भी वे सरकार से दूर दिखने की पूरी कोशिश कर सकते हैं। पिछले दिनों पेट्रोल की बढ़ी कीमतों को लेकर जिस तरह सहयोगी दलों ने सरकार से अपने को अलग रखने की कोशिश की उससे स्पष्ट हो जाता है कि सरकार में तालमेल का पूर्णत: अभाव है। ऐसे में भाजपा अविश्वास का प्रस्ताव लाती है तो न केवल सरकार के लिए, बल्कि अंदर और बाहर से समर्थन दे रहे सहयोगी दलों के लिए भी असहज स्थिति होगी। सबसे विकट समस्या समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के समक्ष होगी, जो सरकार को समर्थन दे रही हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव सिर पर है। ऐसे में सरकार के साथ उनका खड़ा होना कठिनाई में डाल सकता है। वे कतई नहीं चाहेंगे कि भ्रष्टाचार और महंगाई के मसले पर सरकार के साथ युगलबंदी करें। वैसे भी फूलपुर में राहुल गांधी ने सत्तारूढ़ बसपा और समाजवादी पार्टी के खिलाफ हल्ला बोलकर उनके मन को दुविधाओं से भर दिया है। शीतकालीन सत्र में महंगाई के अलावा भ्रष्टाचार को लेकर भी विपक्षी दल सरकार की रीढ़ पर हथौड़ा चला सकते हैं।


सरकार को अदब में लेने के लिए वे एक बार फिर 2जी आवंटन घोटाले मामले में पी चिदंबरम और प्रधानमंत्री कार्यालय की भूमिका पर सवाल उठा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि पीएम के पत्र पर अगर कार्रवाई हुई होती तो घोटाला न हुआ होता। देश के जाने-माने उद्योगपति भी सरकार की आर्थिक समझ और निर्णयों पर सवाल उठाने लगे हैं। सरकार पूरी तरह से दबाव में आ गई है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी एक अरसे से भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कार्रवाई की बात कर रहे हैं, लेकिन इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाया जा सका है। सरकार और उसके रणनीतिकार भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम उठाने के बजाए भ्रष्टाचारियों के पक्ष में आवाज लगा रहे हैं और न्यायालय के निर्णयों पर अनर्गल सवाल उठा रहे हैं। सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वालों को तंग भी कर रही है। कांग्रेसी महासचिव दिग्विजय सिंह ने तो टीम अन्ना के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया है। उनकी बयानबाजी और ट्विटरबाजी आग में घी का काम कर रही है। वे हर रोज एक नया वितंडा खड़ा कर रहे हैं। कभी टीम अन्ना के सदस्यों पर आरोप जड़ रहे हैं तो कभी रामदेव और श्री श्री रविशंकर पर हमले कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि दिग्विजय सिंह की कारस्तानी से सरकार वाकिफ नहीं है। फिर भी चुप है। उन्हें ऐसा करने के लिए मौन स्वीकृति दे रही है। इस मसले को भी भाजपा संसद में उठा सकती है। सरकार शीतकालीन सत्र में एक मजबूत लोकपाल बिल लाने की बात कह रही है, लेकिन उसकी बातों पर विश्वास करना कठिन है। यह भी कहना जल्दबाजी होगा कि अगर सरकारी लोकपाल बिल सत्र में रखा जाता है तो वह टीम अन्ना की भावनाओं के अनुरूप ही होगा। इसलिए कि लोकपाल बिल को लेकर सरकार शुरू से अजीब रवैया अख्तियार किए हुए है।


राहुल गांधी ने भी फूलपुर की रैली में संवैधानिक लोकपाल बनाए जाने की बात कहकर एक नई दुविधा को जन्म दे दिया है। संवैधानिक लोकपाल का स्वरूप क्या होगा, इस पर सरकार चुप है। शीतकालीन सत्र में लोकपाल बिल आ जाएगा, इस पर भी यकीन करना कठिन है। इसलिए कि खुद कानून मंत्री सलमान खुर्शीद कह चुके हैं कि लोकपाल बिल के अस्तित्व में आने में अभी वक्त लगेगा। मतलब साफ है कि सरकार लोकपाल बिल पर टाल-मटोल कर सकती है, लेकिन भाजपा चुप नहीं बैठेगी। वह सरकार पर लोकपाल बिल को लेकर दबाव बना सकती है। उत्तराखंड में खंडूड़ी सरकार ने एक मजबूत और दमदार लोकपाल बिल लागू कर भाजपा को उत्साहित कर दिया है। शीतकालीन सत्र में विपक्षी दल फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों में वृद्धि को लेकर भी सरकार पर दबाव बना सकते हैं।


भाजपा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अपने पाकिस्तानी समकक्ष यूसुफ रजा गिलानी को शांति पुरुष कहे जाने को लेकर भी सवाल खड़ा कर सकती है। वह प्रधानमंत्री से पूछ सकती है कि आखिर किस बिना पर उन्होंने गिलानी को शांतिपुरुष कहा। भाजपा के कई वरिष्ठ नेता प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के वक्तव्य को लेकर अपनी नाराजगी जता चुके हैं। उनका कहना है कि मनमोहन सिंह का बयान आतंकवाद के खिलाफ चल रही लड़ाई को कमजोर करने वाला है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चीनी सैनिकों की मौजूदगी और पूर्वी सेक्टर में उनकी दखलंदाजी को भी भाजपा मुद्दा बनाकर सरकार की घेराबंदी कर सकती है। इसके अलावा बसपा और रालोद जैसे दल उत्तर प्रदेश विभाजन के मसले को भी धधका सकते हैं। अलग तेलगांना राज्य का मसला भी तूल पकड़ सकता है। ऐसे में सरकार विरोधियों को चित करने के लिए संसद में मुस्लिम आरक्षण विधेयक प्रस्तुत कर सकती है। वह जानती है कि इस विधेयक पर महाभारत होना तय है और उसकी आड़ में वह लोकपाल विधेयक को किनारे लगाने का काम कर सकती है। बहरहाल जो भी हो, लेकिन शीतकालीन सत्र की गरमाहट अभी से महसूस की जाने लगी है।


लेखक अरविंद कुमार सिंह स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh