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सदी के महानायक अमिताभ बच्चन हॉट सीट पर बैठे हैं। देश के सुदूर इलाके से आई एक महिला उनके सामने की कुर्सी पर विराजमान होती है। वह महिला अभिभूत है। कौन बनेगा करोड़पति में यह महिला अब तक छह लाख चालीस हजार रुपये जीत चुकी है। सामने बैठे महानायक अपने विशेष अंदाज में उस महिला से पूछते हैं कि बताइए ये पैसे आपके जीवन के लिए क्या मायने रखते हैं? सामने बैठी महिला की आंखों में केवल आंसू हैं। भर्राए गले से वह जवाब में कहती है-सर, ये मेरे पूरे खानदान के वेतन से ज्यादा हैं। अब मेरे बच्चे का भविष्य सुधर जाएगा। उसकी पढ़ाई- लिखाई का खर्चा निकल जाएगा और हमारा घर बन जाएगा। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच महानायक अगले सवाल की ओर बढ़ जाते हैं। यह सिर्फ किसी एक महिला की कहानी नहीं है। इस बार कौन बनेगा करोड़पति में अमिताभ बच्चन के सामने आए लगभग तमाम प्रतियोगियों की कहानी कुछ इसी तरह की थी।
पंचकोटि महामनी विजेता सुशील कुमार भी बिहार के मोतिहारी जिले के एक छोटे से कस्बे से आते हैं और मनरेगा के तहत कंप्यूटर ऑपरेटर हैं, जिनका वेतन काफी कम है। लोगों को इस बात ध्यान नहीं होगा कि किस सवाल के जवाब ने सुशील कुमार को पांच करोड़ रुपये का इनाम दिलवा दिया, लेकिन यह बात सबकी जुबान पर चढ़ गई है कि सुशील कुमार कितने कम पैसों में अपना गुजारा कर रहे थे? आज हर कोई यह बात करते नजर आ रहा है कि मुफलिसी में जिंदगी गुजार रहा एक इंसान कैसे करोड़पति बन गया है। कहने का मतलब यह है कि किसी भी व्यक्ति की निजी कहानी और उसका दर्द लोगों को याद रह जाते हैं। जब अमिताभ बच्चन अपनी सीट से उठकर राजस्थान के बांसवाड़ा से व्हीलचेयर पर आए एक प्रतियोगी युसूफ के आंखों से आंसू पोंछते हैं तो भावनाओं का एक ऐसा ज्वार उठता है जिसमें दर्शक इस कदर बह जाते हैं कि वे अपने टेलीविजन सेट के आगे से हट ही नहीं पाते हैं। इस बार प्रतियोगियों के चुनाव में कौन बनेगा करोड़पति बनाने वालों ने इस बात का खास ख्याल रखा कि जो भी प्रतियोगी हॉट सीट तक पहुंचे उसकी कहानी भावनात्मक रूप से बेहद दर्द भरी हो। व्यक्तिगत संघर्षो और उसके दर्द को ध्यान में रखते हुए बनाए गए रियलिटी शोज ने सफलता के तमाम रिकॉर्ड तोड़ दिए है। स्वाभाविक है कि कार्यक्रम बनाने वालों की यह रणनीति काम कर गई। इस रणनीति को जिस तरह से अमिताभ बच्चन ने अंजाम दिया उससे टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए।
करोड़पति का कांसेप्ट ही था-कोई भी इंसान छोटा नहीं होता और इसी कांसेप्ट के इर्द-गिर्द घूमती रही उस शो की सफलताकी कहानी भी। शायद यही कारण था कि इस बार कौन बनेगा करोड़पति का शो अपने उद्देश्य तक पहुंचने में पूरी तरह कामयाब रही। दरअसल, अगर हम पूरी टीवी इंडस्ट्री पर नजर डालें तो रियलिटी शो में इस तरह के भावनात्मक तड़का का फंडा सफलता का मंत्र है। मास्टर शेफ नाम के एक कुकरी शो में जब इस बारे में एक प्रतियोगी कहती है कि शो पर आने के बाद उसके बिछड़े बच्चे उससे मिल जाएंगे और उसी क्रम में वह अपनी पूरी कहानी बयान करती है। इस सबका नतीजा यह होता है कि प्रोग्राम की रेटिंग में जबरदस्त तरीके से उछाल आता है। हालांकि कुकरी शो में इस तरह की बातों का कोई बहुत मतलब होता नहीं है। दर्शकों को सिमी ग्रेवाल का वह शो याद होगा जिसमें युवराज सिंह से लेकर प्रियंका चोपड़ा तक रो चुकी हैं। उनके आंसुओं की वजह शो हिट होता है और वही आंसू निर्माताओं के लिए खुशी लेकर आता है। रेटिंग बढ़ती है और जाहिर सी बात है कि रेटिंग का सीधा संबंध विपणन और कमाई से जुड़ा होता है। मतलब साफ है कि आंसुओं का जितना सैलाब उमड़ेगा उतना ही धन बरसेगा। यही है आज के दौर के रियलिटी शो की सफलता का मूल मंत्र। अगर हम लोगों के दर्द के इर्द-गिर्द या फिर उनके संघर्षो की कहानी की सफलता के पीछे के मनोविज्ञान को पकड़ने की कोशिश करें तो यह पाते हैं कि हमारा जो समाज है वह मूलत: भावुक किस्म का है।
भावनाओं का ज्वार उभारकर या पैदा कर आप इस देश में कुछ भी कर सकते हैं। भावुक देश के भावुक लोगों ने कई बार इस बात को साबित भी किया है कि जब-जब भावनाएं उफान पर होती हैं तो उनके व्यक्तिगत हित पीछे चले जाते हैं। भावनाओं को भुनाकर या फिर यों कहें कि भावनाओं को उभार कर लक्ष्य हासिल करने के फॉर्मूले को हम आजादी की लड़ाई में भी देख सकते हैं। आजादी की लड़ाई के दौरान गांधी ने इस फॉर्मूले को देशहित में जबरदस्त तरीके से इस्तेमाल किया था। उस दौर में गांधी ने जिस तरह से भावनात्मक अपील कर देश की जनता को एकजुट किया उसके सैकड़ों उदाहरण है जिसे सभी जानते हैं और उसे गिनाने की कोई आवश्यकता भी नहीं है। आजादी के बाद कुछ इसी तरह की घटनाएं हम भारत चीन युद्ध के समय में देख सकते हैं। जब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने देश की जनता से दान देने की अपील की थी शादी के जोड़े में ससुराल पंहुची महिलाओं तक ने अपने गहने देश के लिए दान कर दिए थे। इस कहानी को यदि हम आगे बढ़ाएं और आगे आगे आएं तो पाते हैं कि जब पूरे देश में अयोध्या का राम मंदिर आंदोलन चला तो लोगों में भावनाओं का ऐसा ज्वार उठा जिस पर सवार होकर भारतीय जनता पार्टी दिल्ली की गद्दी तक पहुंच गई।
राम के नाम का ऐसा भावनात्मक ज्वार देश भर में उठा कि उसे संभालना मुश्किल हो गया था। इंदिरा गांधी की मौत के बाद के बाद भी भावनात्मक उफान ने राजीव गांधी जैसे नौसिखिए व्यक्ति को दो तिहाई से भी ज्यादा बहुमत दिलवाकर भारत के प्रधानमंत्री की गद्दी सौंप दी थी। कहने का मतलब यह है कि भावना प्रधान देश में अगर लोगों की भावनाएं उभारने में आप कामयाब रहे तो अपने लक्ष्य को हासिल करने में कोई मुश्किल आएगी नहीं, बल्कि यह काम बहुत आसान हो जाएगा। इसी भावना, संवेदना और दर्द की कहानियों को लेकर अब रियलिटी शो बनाने वाले निर्माता भी आगे बढ़ रहे हैं।
देश की गरीब जनता को उनकी कहानियों में पैसे की खनक सुनाई देने लगी है। संवेदना और दर्द भरी कहानियों के दम पर टीवी इंडस्ट्री सफलता के नए झंडे गाड़ रहे हैं। जब किसी रियलिटी शो में धर्मेद्र की आंखों से आंसू निकलते हैं और वह रो पड़ते हैं तो उस चैनल पर धर्मेद्र का वही प्रोमो दिखाया जाता है। इसके पीछे का मनोविज्ञान यह है कि दर्शकों को इस बात के लिए आकर्षित किया जाए कि एक जमाने का सुपर स्टार किस बात पर रो रहा है। कुछ दिनों पहले तक टेलीविजन पर सास-बहू सीरियल की सफलता के लिए रोना और आंसुओं के समंदर को सफलता की गारंटी माना जाता था, लेकिन अब बात और आगे निकल चुकी है। काल्पनिक किरदार के रोने से बेहतर है कि जीता जागता इंसान स्क्रीन पर रोए और उसके आंसुओं को देखकर दर्शक जुड़ते चले जाएं। इस फॉर्मूले के तहत ही अब रियलिटी शो को न केवल स्वीकार किया जा रहा है, बल्कि उसको कार्यान्वित भी किया जा रहा है। आंसुओं में सफलता तलाशते सीरियल्स और रियलिटी शो की इन दिनों बाढ़ सी आ गई है और तकरीबन हर टीवी निर्माता इन आंसुओं को भुनाने में लगा हुआ है ।
लेखक अनंत विजय स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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