Menu
blogid : 5736 postid : 2639

बंटवारे की इस पहल के पहलू

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments


Nirankar Singhसियासत सुख के लिए शिगूफा


उत्तर प्रदेश के बंटवारे के मामले में केंद्र और राज्य सरकार बयानों के जरिए विकास का जो सब्जबाग दिखा रही हैं, वह उनकी नाकामयाबियों को ही उजागर करता है। दो वर्ष पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी वाराणसी यात्रा के दौरान अलग पूर्वाचल राज्य बनाने की संभावना जताई तो प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने तुरंत केंद्र सरकार को पत्र लिख दिया, लेकिन बाद में वह इस मुद्दे पर पीछे हट गई थीं। तब उन्होंने कहा था कि यह केंद्र का विषय है। राज्य विभाजन का मुद्दा संसद को तय करना है। संसद चाहेगी तो विधानसभा तुरंत प्रस्ताव करके भेज देगी। अब आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए उन्होंने फिर उत्तर प्रदेश को चार भागों में बांटने की बात कही है। उन्होंने इस आशय के प्रस्ताव को विधानमंडल के शीतकालीन सत्र में पारित कराने का फैसला कर विरोधी दलों को चौंका दिया है। राज्य सरकार चुनावी माहौल में यह प्रस्ताव सिर्फ इसलिए लेकर आई है ताकि आगामी चुनावों में विरोधी दलों को मात दी जा सके। इसलिए यह माना जा रहा है कि क्षेत्रीय विकास नहीं कर पाने के कारण हमारे राजनेता कोरी बयानबाजी कर रहे हैं।


कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी भी अलग बुंदेलखंड राज्य बनाने की मांग का समर्थन कर चुके हैं। पर वह तेलंगाना और विदर्भ को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं। वैसे भी किसी राज्य को सिर्फ विभाजित कर देने से ही उसका विकास नहीं हो जाएगा, जब तक वहां शासन करने वाले राजनीतिक दलों की मानसिकता नहीं बदलेगी। छोटे राज्यों का मसला कई बार उठता रहा है, लेकिन हर बार वह राजनीतिक समीकरणों में उलझ कर रह जाता है। मौजूदा राज्यों का निर्माण भाषा के आधार हुआ था, लेकिन कई प्रदेशों के भीतर क्षेत्रीय असंतुलन और एक हिस्से से दूसरे हिस्से के बीच सांस्कृतिक खाई इतनी है कि अंसतोष पैदा होना स्वाभाविक है। इस असंतोष को दूर करने के बजाए हमारे राजनीतिज्ञ अपनी सुविधानुसार अलग राज्य बनाने की मांग उठाकर हवा देते रहे हैं। दरअसल, सारी राजनीति देश को खंड-खंड बनाए रखने पर जीवित है। जाति, भाषा और संप्रदाय के नाम पर समाज को विभाजित करके अपना स्वार्थ सिद्ध करने में हमारे राजनेता माहिर हो चुके हैं। कई और राजनीतिज्ञ भी उत्तर प्रदेश को भी चार टुकड़ों में बांटना चाहते हैं। उत्तराखंड पहले ही अलग हो चुका है।


कांग्रेस ने पिछला लोकसभा और आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव तेलंगाना राष्ट्र समिति के साथ मिलकर लड़ा था, जो केंद्र की सत्ता में आने पर अलग तेलंगाना राज्य के लिए पहल करने की शर्त पर ही गठजोड़ करने को तैयार हुई थी। कांग्रेस को केंद्र की सत्ता में आए साढ़े तीन साल हो गए हैं, लेकिन उसने तेलंगाना के मुद्दे पर अपना रुख कभी साफ नहीं किया। उसके रवैये से नाराज होकर तेलंगाना राष्ट्र समिति के मुखिया के. चंद्रशेखर राव केंद्रीय मंत्रिमंडल और संप्रग से अलग हो चुके हैं। राज्यों के बंटवारे के मामले को राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी राजनीति के हिसाब से देखती रही हैं। जब भाजपा चंद्र बाबू नायडू के साथ थी, वह तेलंगाना राज्य का नाम लेने से भी डरती रही। अब वह तेलंगाना की मांग के प्रति जब-तब समर्थन जाहिर कर देती है और चंद्रशेखर राव से गठजोड़ बनाने की इच्छा भी। इसी तरह अजित सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश को हरित प्रदेश के नाम से अलग राज्य बनाने की मांग करते रहे हैं, मगर चूंकि समाजवादी पार्टी इसके सख्त खिलाफ थी, इसलिए उससे गठबंधन और सत्ता सुख की खातिर उन्होंने चुप्पी साध ली थी। दरअसल, छोटे राज्यों की मांग क्षेत्रीय राजनीतिज्ञों की आकांक्षाओं पर जिंदा है। राज्य कई हिस्सों में टूटे तो कई मुख्यमंत्री और राज्यपाल होंगे। कई लोग मंत्री बन जाएंगे। राजनीतिज्ञों की सत्ता की आकांक्षा देश और राज्य को खंड-खंड तोड़ती जा रही है। तेलंगाना की राजनीति तेलंगाना के अलग राज्य की मांग पर जिंदा है।


उत्तराखंड की राजनीति उत्तराखंड के लिए वर्षो से संघर्ष कर रही थी। हरिद्वार उत्तर प्रदेश में रहे या उत्तराखंड में, इसे लेकर आंदोलन होता है। नर्मदा का जल गुजरात का है कि मध्य प्रदेश का, इसे लेकर संघर्ष होता है। कावेरी का कितना जल कर्नाटक का है और कितना तमिलनाडु का, इस पर रार होती है। यह राष्ट्र कहां है? कोई नहीं जानता है। हरिद्वार उत्तराखंड में रहे या उत्तर प्रदेश में, इससे क्या फर्क पड़ता है? क्योंकि जिला अपनी जगह है, अपनी जगह रहेगा। वह पूरे देश का है। लेकिन दुर्भाग्य इस बात का है कि इस देश का न तो कोई जिला है, न कोई नदी है और न तो कोई भाषा है। हर चीज किसी न किसी की है। फिर भी हम चाहते हैं कि हमारे देश की एकता और अखंडता पर आंच न आने पाए तो यह कैसे हो सकता है? राजनीतिज्ञों का हित इस बात पर निर्भर है कि देश टूटता जाए और फिर वे सत्ता की कुर्सी पर बैठकर देश की एकता की बातें करते हैं।


लेखक निरंकार सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं

……………………………………….


जनता के लिए मृगतृष्णा सरीखा

उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती द्वारा अपने राजनीतिक विरोधियों को चित करने के उद्देश्य से राज्य को चार हिस्से में बांटने के लिए एक खास कूटनीति के तहत पासा फेंका गया है। मायावती की यह रणनीति उन्हें चुनाव में कितना लाभ दिलाएगी, यह तो बाद की बात है, लेकिन इतना जरूर है कि पिछले कुछ दिनों से सामान्य रूप से बढ़ता सूबे का सियासी सेंसेक्स अचानक उछल गया है। नतीजतन, एक ओर जहां टुकड़े होने के बाद चार संभावित राज्यों के नागरिक तरह-तरह के सपने बुनने लगे हैं, वहीं दूसरी ओर मायावती और बसपा विरोधी दल इस रणनीति की काट ढूंढ़ने में जुट गए हैं। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने 15 नवंबर को घोषणा की थी कि उत्तर प्रदेश को चार राज्यों में बांटने के लिए विधानसभा के इस सत्र (21 नवंबर से) में प्रस्ताव लाया जाएगा। उन्होंने राज्य मंत्रिमंडल की बैठक के बाद कहा कि संविधान के अनुसार नए राज्यों के गठन का अधिकार केंद्र सरकार को है। इसके लिए संसद को ही कानून बनाने का अधिकार है। उन्होंने इस संबंध में केंद्र सरकार को कई पत्र लिखे हैं, लेकिन केंद्र की पूर्ववर्ती भाजपा व मौजूदा कांग्रेस सरकारों ने कोई कदम नहीं उठाए। अब केंद्र पर दबाव बढ़ाने के लिए उनके मंत्रिमंडल ने उत्तर प्रदेश को बांटकर चार राज्यों के गठन का प्रस्ताव विधानसभा से पास कराने का फैसला किया है।


मायावती का कहना है कि उत्तर प्रदेश को चार छोटे राज्यों मे बांट देने से इसका विकास और प्रबंधन सुधरेगा। जनसंख्या और क्षेत्रफल के लिहाज से उत्तर प्रदेश के विशाल होने के कारण समग्र विकास और उपयुक्त प्रबंधन नहीं हो पाता है। मायावती की इस कथित राजनीतिक चाल पर विपक्ष का कहना है कि मायावती अपनी सरकार की विफलताओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए उत्तर प्रदेश को बांटना चाह रही हैं और यह काम जल्दबाजी में नहीं होना चाहिए। राज्य पुनर्गठन का मुद्दा निश्चित रूप से राजनीतिक एजेंडा है। इसका चुनावी लाभ भले किसी दल को चुनावों के दरम्यान मिल जाए, लेकिन पब्लिक के लिए मृगतृष्णा से अधिक नहीं है। फिलहाल उत्तर प्रदेश की सियासी गर्मी चरम पर है।


इस आलेख के लेखक राजीव रंजन तिवारी हैं

……………………………………


Ashwani Mahajanविकास के लिए विभाजन जरूरी


उत्तर प्रदेश में चुनावी बिगुल बज चुका है। तलवारें खिंच चुकी हैं। नित नए मुद्दे उठाए जा रहे हैं और हर राजनीतिक दल जनता का ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश में हैं। इसी कड़ी में सूबे की मुख्यमंत्री मायवती उत्तर प्रदेश को पूर्वाचल, बुंदेलखंड, अवध प्रदेश और पश्चिमी प्रदेश नाम से चार भागों में विभाजित करना चाहती हैं। विभाजन की बात करने वालों का तर्क यह भी है कि विकास के लिए राज्यों का छोटा होना मायने रखता है। क्या हकीकत की कसौटी पर क्या यह तर्क सही है? उत्तर प्रदेश का अल्प विकास किसी से छिपा नहीं है। बीमारू कहे जाने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। जबकि देश में औसत प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2009-10 में 33,731 रुपये थी। उत्तर प्रदेश में यह मात्र 16,182 रुपये ही थी।


विकसित प्रदेशों मसलन, गुजरात में यह 49,030, हरियाणा में 55,214, महाराष्ट्र में 57,458 और दिल्ली में प्रति व्यक्ति आय 89,037 रुपये थी। स्वाभाविक तौर पर उत्तर प्रदेश के लोगों में विकास की आकांक्षा है। दुर्भाग्य का विषय है कि उत्तर प्रदेश में आमदनी तो कम है ही, आर्थिक वृद्धि दर भी बहुत कम है। जहां गुजरात में पिछले पांच वर्षो में आर्थिक वृद्धि की दर 12.4 प्रतिशत की रही, वहीं अत्यंत अल्प विकसित बिहार की भी आर्थिक वृद्धि दर 11 प्रतिशत को पार कर गई। उत्तर प्रदेश की आर्थिक संवृद्धि दर अब भी औसत 6.5 प्रतिशत ही हो पाई। ऊपर से सरकारों की विकास के प्रति उदासीनता परिस्थितियों को और अधिक भयंकर बना रही है। हालांकि मायावती के इस प्रस्ताव को चुनावी स्टंट बताया जा रहा है। फिर भी इस विषय पर सही परिप्रेक्ष्य में चिंतन जरूरी है। देश में राज्यों के विभाजन, पुनर्गठन और इस प्रकार से छोटे राज्यों के गठन का अपना एक इतिहास है। वर्ष 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत भाषाई आधार पर कई राज्यों का पुनर्गठन किया गया। पूर्व में बने पृथक राज्यों का विकास के संदर्भ में हमेशा ही अच्छा अनुभव रहा है। हम जानते हैं कि पूर्व में पंजाब को तीन हिस्सों में बांटा गया। पंजाब अन्य प्रांतों की तुलना में हमेशा ही देश का एक विकसित राज्य रहा है, लेकिन पंजाब के बंटवारे के बाद तीनों प्रांतों में अभूतपूर्व विकास देखने को मिलता है।


हरियाणा का क्षेत्र जो पहले बहुत अधिक विकसित नहीं था, उसमें तेजी से विकास हुआ और आज हरियाणा किसी भी दृष्टि से पंजाब से पीछे नहीं है। आज हरियाणा की प्रति व्यक्ति आय पंजाब से भी 30 प्रतिशत अधिक है। पंजाब से कटकर बने हिमाचल प्रदेश में भी पहले से कहीं ज्यादा तेजी से विकास हुआ। हिमाचल प्रदेश में आज लगभग शत्-प्रतिशत साक्षरता है। पुरानी बातें छोड़ भी दें तो नव गठित राज्य जैसे छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड आदि ने अपने पुनर्गठन के बाद तेजी से विकास किया है। ये सभी राज्य पहले से ही पिछड़े प्रांतों में से उनके अधिक पिछड़े इलाकों को अलग करके बनाए गए थे, लेकिन फिर भी उन्होंने विकास के नए कीर्तिमान स्थापित किए। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश से कटकर बने छत्तीसगढ़ के पृथक राज्य गठन से पूर्व 1993-94 से 1999-2000 के बीच उस क्षेत्र की प्रति व्यक्ति आय बढ़ने की वार्षिक दर 1 प्रतिशत से भी कम थी। गठन के बाद वर्ष 1999- 2000 से 2009-10 के बीच उसकी विकास दर 6.23 प्रतिशत तक पहुंच गई। जबकि शेष मध्य प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय की विकास दर 1 प्रतिशत से कम ही रह गई। लगभग यही स्थिति उत्तराखंड में देखने को मिलती है। जहां की प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर गठन से पूर्व 1 प्रतिशत से कम थी। नए राज्य के गठन के बाद यह वर्ष 1999-2000 से 2008-09 के बीच बढ़कर 7.14 प्रतिशत तक पहुंच गई। जबकि शेष बचे उत्तर प्रदेश की विकास दर में पहले से थोड़ी बेहतरी तो हुई, लेकिन उत्तराखंड से यह काफी कम मात्र 3.0 प्रतिशत ही रही। हां, झारखंड की स्थिति थोड़ी अलग दिखाई देती है, जहां गठन के बाद की विकास दर बढ़ी तो जरूर, लेकिन अन्य नए राज्यों से यह काफी कम दर्ज की गई। जबकि शेष बचे बिहार में नीतीश कुमार की सरकार के गठन के बाद प्रति व्यक्ति आय बढ़ने की दर में तेजी आई, जबकि उतनी तेजी झारखंड में महसूस नहीं की गई।


मोटे तौर पर छोटे राज्यों का गठन मंगलकारी रहा है। वहां के नागरिकों का जीवन स्तर विकास के मापदंडों के आधार पर बेहतर हुआ है। ऐसा इसलिए, क्योंकि जब भी नया राज्य गठित होता है तो हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोगों की अपेक्षाएं और इस कारण से नई सरकारों की स्पंदनशील सोच उस राज्य के विकास की वाहक बनती है, जबकि उन्हीं राज्यों के शेष हिस्से में ठहरी सोच उन्हें अल्पविकसित रखने में भूमिका निभाती है। चुनावी स्टंट ही सही, मुख्यमंत्री मायावती द्वारा उत्तर प्रदेश के चार भागों में विभाजन का प्रस्ताव सही दिशा में एक कदम है।


लेखक अश्विनी महाजन आर्थिक मामलों के जानकार हैं



Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh