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रिटेल सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी देने के फैसले के फायदे गिना रहे हैं लॉर्ड मेघनाद देसाई
अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए रिटेल सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को दी गई अनुमति देर से उठाया गया एक सही कदम है। पिछले दस वर्षो से यह उम्मीद की जा रही थी कि सरकार खुदरा क्षेत्र में भी उदारीकरण की नीतियों को लागू करे, क्योंकि दूसरे देशों की तुलना में हमारा रिटेल सेक्टर काफी पिछड़ा हुआ और असंगठित था। अब जबकि औद्योगिक विकास दर धीमी पड़ रही है और महंगाई पर नियंत्रण पाना मुश्किल हो रहा है तो नए रोजगारों के सृजन की संभावना धीमी पड़ रही थी। ऐसे में यह आवश्यक था कि सरकार तत्काल बड़े आर्थिक सुधारों की दिशा में कदम उठाती ताकि विदेशी निवेशकों का हमारे बाजार से मोह भंग न होता और हमें अतिरिक्त पूंजी के साथ-साथ बेहतर तकनीक और दूसरे तमाम संसाधनों के आने से लाभ मिलता। खुदरा क्षेत्र के विस्तार और विकास की देश में प्रबल संभावनाएं मौजूद हैं, लेकिन पूंजी की कमी और आपूर्ति का बुनियादी ढांचा कमजोर होने के कारण हम इसका लाभ नहीं उठा पा रहे थे। इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश में हजारों टन गेहूं और दूसरे अनाज सिर्फ इसलिए सड़ जाते हैं, क्योंकि हमारे पास समुचित और उन्नत किस्म के गोदाम नहीं हैं जहां इन्हें रखा जा सके।
यह स्थिति केवल अनाज की ही नहीं है, बल्कि दूध, सब्जी, फल-फूल आदि के मामलों में भी कमोबेश स्थिति एक जैसी है। चूंकि आबादी के साथ-साथ शहरों का विकास तेजी से हो रहा है और हमारी एक बड़ी आबादी शहरों में रहने लगी है तो उसकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बाजार को संगठित करना आवश्यक है ताकि उन्हें बेहतर गुणवत्ता के साथ-साथ वाजिब दाम में चीजें समय पर मुहैया कराई जा सकें। यह तभी संभव है जब खुदरा बाजार में भी प्रतिस्पर्धा हो। इस प्रतिस्पर्धा को बनाए रखने और बड़ी कंपनियों के एकाधिकार की संभावनाओं को खत्म करने के लिए ही मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 प्रतिशत और सिंगल ब्रांड में 100 प्रतिशत की छूट दी गई है। यह निवेशकों, उपभोक्ताओं और बाजार, तीनों के हित में है कि खुदरा बाजार और अधिक संगठित बने। इस कारण विदेशी कंपनियों के हमारे देश में पैर पसारने से कुल मिलाकर लाभ की ही स्थिति होगी। मेरी समझ से इस फैसले से घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। यहां हम चीन का भी उदाहरण ले सकते हैं, जिसने अपने यहां खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को अनुमति दे रखी है। बावजूद इसके चीन का खुदरा बाजार अभी 20 फीसदी ही संगठित हो पाया है, जबकि भारतीय बाजार महज 10 फीसदी संगठित है। आने वाले समय में भारत का खुदरा बाजार तेजी से बढ़ेगा, जिससे विभिन्न स्तरों पर लोगों को रोजगार मिलेगा।
सीआइआइ की रिपोर्ट मानें तो रोजगार सृजन की यह संख्या तकरीबन 80 लाख होगी, लेकिन मेरे विचार से यह आंकड़ा कहीं अधिक होगा, क्योंकि इसका प्रभाव दूसरे कई क्षेत्रों पर सकारात्मक होने से अप्रत्यक्ष रोजगारों का सृजन बढ़ेगा। इसलिए यह कहना ठीक नहीं होगा कि खुदरा बाजार में विदेशी निवेश को अनुमति मिलने से करोड़ों की संख्या में लोग बेरोजगार हो जाएंगे और छोटी दुकानें बंद हो जाएंगी। दूसरे, हमें नहीं भूलना चाहिए कि 10 लाख या उससे अधिक की आबादी वाले शहरों में ही यह नीति लागू होगी। इस संदर्भ में हमें दूसरे देशों के उदाहरण को भी ध्यान में रखना होगा। हमें आज के हालात के मुताबिक ही अपनी नीतियों को अपनाना होगा। जहां तक छोटे दुकानदारों के संरक्षण और विकास की बात है तो उन्हें अपनी क्षमता और साख का विकास खुद ही करना होगा। इसके लिए सरकार को सरल नीतियों के माध्यम से उनकी मदद करनी चाहिए। नई रिटेल नीति में बड़ी कंपनियों को यह साफ निर्देश दिया गया है कि वे अपनी जरूरत का 30 प्रतिशत हिस्सा देश के उत्पादकों से ही खरीदेंगे। इस तरह के कई और प्रावधान हैं जो हमारे अनुकूल हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि नई नीति की घोषणा के अमल में आने से उपभोक्ताओं, किसानों और उत्पादकों को अधिक लाभ होगा। सप्लाई चेन विकसित होने से बिचौलियों की भूमिका समाप्त होगी और किसानों को उनके उत्पादों की बेहतर कीमत मिल सकेगी। इस तरह खेती-किसानी में नुकसान की वजह से किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्या को पूरी तरह रोका भले ही न जा सके, लेकिन उसे कम अवश्य किया जा सकता है, क्योंकि आवश्यकता पड़ने पर किसानों को ये कंपनियां खुद ही मदद करेंगी और खेतों में फसल या सब्जी पकने से पहले ही अनुबंध करके उसे खरीद सकती हैं। वहीं उपभोक्ताओं को भी कंपनियों की प्रतिस्पर्धा का लाभ मिलेगा और उनके पास पहले से ज्यादा विकल्प होंगे। इसके अलावा देश के बुनियादी ढांचे का विकास तेज होगा, क्योंकि सप्लाई चेन विकसित करने के क्रम में गोदामों, कोल्ड स्टोरेज आदि का विकास होगा। यह जरूर कहा जा सकता है कि विदेशी अपनी पूंजी लाभ के मकसद से लगाएंगे, न कि देश और यहां के लोगों के विकास के लिए। इस संदर्भ में हमें इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है कि एक ऐसे समय जब हमारी आबादी तेजी से बढ़ रही है और हमारे पास समुचित पूंजी का अभाव है तो दूसरे विकल्प और बचते ही क्या हैं और विदेशी पूंजी में बुराई क्या है? देश का बाजार जितना ज्यादा विकसित और संगठित होगा उतना ही ज्यादा सरकार के खजाने में कर के माध्यम से पैसा पहुंचेगा।
इससे देश की अर्थव्यवस्था को अधिक मजबूती मिलने से सामाजिक कल्याण की योजनाओं समेत दूसरी नीतियों के क्रियान्वयन में मदद मिलेगी, लेकिन यह सब सरकार और उसकी भविष्य की नीतियों पर निर्भर करेगा कि वह इसका फायदा किस तरह उठाती है। जहां तक रिटेल क्षेत्र में विदेशी पूंजी के निवेश से महंगाई पर नियंत्रण पाने की बात है तो अभी यह दूर की कौड़ी है। यह सही है कि महंगाई की बड़ी वजह खाद्यान्न वस्तुओं की उपलब्धता में कमी है और जब तक इसमें सुधार नहीं होता तब तक महंगाई कम होने के आसार नहीं हैं। इसके अलावा हमारा देश काफी बड़ा है, यहां तमाम तरह की भिन्नताएं व समस्याएं हैं इसलिए रिटेल चेन विकसित होने में अभी कुछ वर्षो का समय लगेगा और जब तक ऐसा नहीं होता तब तक सरकार की चिंता भी कम नहीं होने वाली। इसलिए बेहतर यही होगा कि सरकार दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधारों पर भी अमल का काम शीघ्र शुरू करे ताकि ऐसे सुधारों का फायदा समय रहते देश और देशवासियों को मिल सके।
लेखक लॉर्ड मेघनाद देसाई प्रख्यात अर्थशास्त्री हैं
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