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एक भिक्षु से घबराती सैन्य शक्ति

जागरण मेहमान कोना
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तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा के प्रति चीन सरकार की बौखलाहट के कारणों की तह में जा रहे हैं विजय क्रांति


पिछले दो दशक से विश्व मच पर लगातार बढ़ रहे चीनी दबदबे के आदी हो चुके लोग इस बात से बहुत हैरान हैं कि दलाई लामा को लेकर चीन सरकार बार-बार अपनी बौखलाहट और हताशा का प्रदर्शन क्यों करती है? दलाई लामा कहीं भी जाएं, चीन सरकार उनके वहा पहुंचने से पहले ही यह माग उठाकर हायतौबा मचा देती है कि वहा के प्रधानमत्री या दूसरे सरकारी नेता दलाई लामा से मत मिलें। हर बार दुनिया के लोग यह सोचने पर मजबूर होते हैं कि आखिर ऐसी क्या बात है कि लगभग हर मामले में दुनिया को ठेंगा दिखाने की हिम्मत रखने वाले चीनी नेता दलाई लामा जैसे एक बौद्ध भिक्षु और सत्ताहीन पूर्व शासक से इस कदर घबराते हैं?


पिछले दिनों बीजिंग ने ऐसी ही हायतौबा नई दिल्ली में होने वाले विश्व बौद्ध सम्मेलन को लेकर भारत सरकार के खिलाफ मचाई। पहले तो उसने भारत सरकार से माग की कि इस सम्मेलन को इसलिए स्थगित कर दिया जाए, क्योंकि उन्हीं दिनों भारत और चीन के बीच सीमा वार्ता का एक चरण बीजिंग में होगा, लेकिन जब खुद भारतीय विदेश मत्रालय की पहल पर आयोजित इस विश्व सम्मेलन को स्थगित करने से नई दिल्ली ने इनकार कर दिया तो चीन ने माग उठाई कि दलाई लामा को इसमें भाग लेने से रोक दिया जाए, लेकिन भारत सरकार चीन को शात रखने के लिए सिर्फ इतने पर राजी हुई कि भारतीय प्रधानमत्री और राष्ट्रपति इसमें नहीं आएंगे। मगर इतने से भी नाखुश चीन सरकार ने गुस्से में आकर बीजिंग में होने वाली प्रस्तावित सीमा वार्ता को ही स्थगित कर दिया। विश्व सम्मेलन के एक दिन बाद ही चीन सरकार के कोलकाता वाणिज्य दूत ने पश्चिम बगाल की राज्य सरकार को सीधे धमकी भरी एक चिज्ञ्‍ी लिख मारी। इस पत्र में चीनी राजदूत ने माग उठाई कि राज्य के राज्यपाल और मुख्यमत्री उस सभा में भाग मत लें जो मदर टेरेसा की स्मृति में कोलकाता में होने वाली थी और जिसमें दलाई लामा मुख्य अतिथि के रूप में भाग लेने कोलकाता आ रहे थे। एक विदेशी राजदूत की इस बेजा हरकत पर केंद्र सरकार ने तो चीन सरकार से विरोध व्यक्त किया ही, लेकिन राज्यपाल ने खुद सम्मेलन में भाग लेकर और अपनी गभीर रूप से बीमार मा की तीमारदारी में लगी मुख्यमत्री ममता बनर्जी ने अपने एक वरिष्ठ प्रतिनिधि को सभा में भेजकर चीनी राजदूत को उसकी हैसियत दिखा दी। चीनी बौखलाहट के इस सार्वजनिक प्रदर्शन की वजह से उपरोक्त दोनों सभाओं को दुनिया भर के मीडिया में जैसा प्रचार मिला, आयोजकों को उतना प्रचार कई करोड़ डालर के विज्ञापन जारी करने पर भी नहीं मिल पाता। चीन सरकार की न केवल कूटनीतिक भद पिटी, बल्कि दुनिया को एक बार फिर सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि आखिर ऐसा क्या कारण है कि चीन जैसी एक विशालकाय सैनिक आर्थिक शक्ति दलाई लामा से इतना घबराती है?


दलाई लामा को लेकर चीनी नेताओं की इस बौखलाहट के कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण तो यह है कि चीन द्वारा पिछले छह-सात दशक में जबरन कब्जाए गए तीन देशों-पूर्वी तुर्किस्तान [चीनी नाम ‘शिजियाग’], भीतरी मगोलिया और तिब्बत में से अकेला तिब्बत ऐसा है जिसके स्वतत्रता आदोलन को दलाई लामा जैसा कोई अंतरराष्ट्रीय प्रभाव वाला नेता उपलब्ध है। 1949 में पूर्वी तुर्किस्तान के लगभग सभी नेता तब मारे गए थे जब चेयरमैन माओ के निमत्रण पर चीन की हवाई यात्रा के दौरान उनका चीनी विमान हवा में ही एक विस्फोट का शिकार हो गया था। भीतरी मगोलिया में भी कड़े चीनी नियत्रण के कारण आज तक कोई प्रभावी नेता नहीं उभर पाया, लेकिन 1959 में तिब्बत से भाग कर स्वतत्र दुनिया में आने के बाद से दलाई लामा का प्रभाव लगातार बढ़ता आया है। दलाई लामा के प्रति चीन सरकार के मन में बसे खौफ का एक और बड़ा कारण यह है कि 1951 में तिब्बत पर चीनी कब्जे के बाद वाले 60 वर्ष में अपने सारे प्रयासों के बावजूद वह तिब्बती जनता का दिल जीतने में बुरी तरह नाकामयाब रहा है। तिब्बत पर नियत्रण पक्का करने के इरादे से वहा लाखों चीनी नागरिकों को बसाने के कारण तिब्बती नागरिकों के मन में असुरक्षा की भावना पहले से और ज्यादा हुई है। 1989 में राजधानी ल्हासा और दूसरे कुछ बड़े शहरों मे उठ खड़े हुए विशाल तिब्बती मुक्ति आदोलन ने चीनी नेताओं को हैरान कर दिया।


तिब्बत की आजादी और दलाई लामा के समर्थन वाले लोकप्रिय नारों पर चले इस आदोलन को तत्कालीन तिब्बती गवर्नर हू जिंताओ ने टैंकों और बख्तरबद गाड़ियों की मदद से कुचल तो दिया, लेकिन इस जनउभार ने कम्युनिस्ट नेतृत्व को नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया। 1991 में कम्युनिस्ट नेतृत्व ने तय किया कि तिब्बती धर्म का दमन करने की नीति छोड़कर इसका उपयोग तिब्बती जनता का दिल जीतने के लिए किया जाए। इसी के तहत चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में गठित एक ‘अवतार खोजी कमेटी’ ने धार्मिक नेता करमापा के नए अवतार को खोज निकाला। उसे दलाई लामा ने भी अपनी स्वीकृति दी। 1995 में तिब्बत में दूसरे नबर के धार्मिक धर्मगुरू पचेन लामा की खोज की गई, लेकिन उसमें खोजे गए 6 वर्षीय बालक गेदुन नीमा को दलाई लामा की स्वीकृति मिलने से भड़के चीनी नेताओं ने उस बच्चे और उसके माता-पिता को हिरासत में लेकर अपनी पसद के एक लड़के ग्यालसेन नोरबू को असली ‘पचेन लामा’ घोषित कर दिया। इस सारी कवायद का असली लक्ष्य वर्तमान दलाई लामा के बाद अपनी सुविधा के किसी बच्चे को ‘असली दलाई लामा’ के रूप में तिब्बत पर थोपना है ताकि तिब्बत समस्या को हमेशा के लिए हल कर लिया जाए।


लेखक विजय क्रांति स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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