Menu
blogid : 5736 postid : 3270

मौत बांटती शराब की भट्ठियां

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

Arvind jaiteelakपश्चिम बंगाल में हादसे मानो नीयत बन चुके हैं। अभी चंद रोज पहले ही कोलकाता के आमरी अस्पताल में लगी आग में 93 लोग जलकर मरे थे। दो महीने पहले राज्य के कई अस्पतालों में रहस्यमयी बीमारी से सैकड़ों बच्चों की जान चली गई थी। सरकार इन हादसों से उबरती और अपनी छवि सुधारती, उससे पहले ही जहरीली शराब के तांडव ने एक बार फिर सरकारी तंत्र को बेपर्दा कर दिया। दक्षिण चौबीस परगना जिले में जहरीली शराब पीने से 173 लोगों की दर्दनाक मौत ने एक साथ कई सवाल खड़े कर दिए हैं। मौत की इस भयावहता ने यह भी साबित कर दिया है कि देश में अवैध शराब के कारोबार को रोक पाने में सरकारें कितनी निरीह और बेबस हैं। इस धारणा की भी पुष्टि हो गई है कि अगर राजनीतिक रसूख हो तो शासन-प्रशासन के संरक्षण में उसके नाक के नीचे ही अवैध शराब के काले धंधे को खूब चमकाया जा सकता है। आज अगर मौत के कारोबारी दुस्साहसी और ताकतवर हैं व सरकार को ठेंगा दिखाकर अवैध शराब के धंधे चलाने में सक्षम हैं तो इसके लिए कोई और नहीं, बल्कि खुद शासन तंत्र और उसकी अक्षम नीतियां ही जिम्मेदार हैं। अचरज लगता है कि 2008 में इसी राज्य के गार्डनरीच और 2009 में किद्दूपुर में जहरीली शराब पीने से क्रमश: 40 और 28 लोगों की मौत हुई, इसके बावजूद सरकार ने अवैध शराब के धंधेबाजों के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई क्यों नहीं की।


शराब माफियाओं के बुलंद हौसले बताने के लिए काफी हैं कि उनके मन में न तो कानून का खौफ है और न ही सामाजिक लोकलाज का। और हो भी क्यों, जब उन्हें सत्ता का संरक्षण मिल ही रहा है। यह सर्वविदित है कि शराब की अवैध भट्ठियों का मुंह इसलिए बंद नहीं हो रहा है कि उन्हें स्थानीय सरकारी तंत्र का संरक्षण हासिल है। आज नतीजा सबके सामने है। जहरीली शराब से लोग बेमौत मरने को मजबूर हैं। एक आंकड़े के मुताबिक महज एक साल के अंदर ही तीन सौ से अधिक लोग जहरीली शराब पीने से अपनी जान गंवा चुके हैं। अभी इसी वर्ष ही जहरीली शराब से उत्तर प्रदेश के वाराणसी और गाजियाबाद-बुलंदशहर में तकरीबन 17 और 24 लोगों को मौत हो गई थी। इसी तरह बिहार के समस्तीपुर में 11, राजस्थान के जोधपुर में 22, पंजाब के होशियारपुर में 18 और केरल के मल्लपुरम में 26 लोग जहरीली शराब पीने से काल-कवलित हो गए। जहरीली शराब पीकर मरने वाले लोगों की बड़ी संख्या गाहे-बगाहे उन राज्यों में भी देखने को मिलती है, जो आर्थिक रूप से समृद्ध, विकसित, साक्षर और शासन-प्रशासन के मामले में बेहतर समझे जाते हैं। गुजरात में शराब बंदी के बावजूद अहमदाबाद में 7 जुलाई, 2010 को 157 लोग जहरीली शराब की भेंट चढ़ गए।


2008 में कनार्टक में भी 180 लोग जहरीली शराब का निवाला बने, लेकिन सवाल जस का तस है कि आखिर इस तरह की निर्मम घटनाओं पर रोक क्यों नही लग पा रही है? क्या वजह है कि राज्य सरकारें अवैध शराब से जुड़े माफियाओं के खिलाफ सख्ती में कोताही बरत रही हैं? सवाल यह भी है कि मौत के कारोबारी आखिर कब तक लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे? ऐसा भी नहीं है कि शराब की अवैध भट्ठियों की जानकारी या उससे जुड़े माफियाओं की कारस्तानी से स्थानीय प्रशासन अनजान है। फिर भी सरकारी तंत्र अवैध शराब माफियाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई से बच रहा है तो उसकी नीयत पर सवाल तो उठेगा ही। यह तथ्य है कि देश के तकरीबन सभी राज्यों में अवैध शराब का धंधा जोरों पर है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में अवैध शराब की हजारों भट्ठियां हर रोज जहर उगल रही हैं और लोग गटक रहे हैं। सच यह भी है कि शराब के नाम पर जहर बेचा जा रहा है। कम कीमत और अधिक नशा के कारण पीने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। इनमें अधिकांश गरीब, मजदूर और कम पढ़े-लिखे लोग होते हैं जो शारीरिक थकान मिटाने के नाम पर जहरीली शराब का सेवन करते हैं। नशा के नाम पर भूल जाते हैं कि शराब का सेवन कर रहे हैं या जहर का।


शराब के जहरीले होने का मुख्य कारण घातक मिथाइल एल्कोहल है, जो ऊंचे तापमान पर उबालने पर ही हानिरहित इथाइल एल्कोहल में बदलता है। लेकिन शराब बनाने की प्रक्रिया की अधूरी जानकारी, लापरवाही और इसमें घातक रसायनों का प्रयोग जहर का काम कर जाता है। पीते ही लोग उल्टियां करने लगते हैं। आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है। यकृत क्षतिग्रस्त हो जाता है और पीने वाले मौत के मुंह में समाने लगते हैं। फिर भी अवैध शराब माफियाओं की संवेदना जाग्रत नहीं होती है। वे मुनाफा कमाने के लिए संवेदनहीनता की सारी हदें तोड़ डालते हैं। अपने काले कारोबार को चलाने के लिए स्थानीय पुलिस-प्रशासन को मददगार बनाते हैं। बदले में उन्हें मोटी रिश्वत देते हैं। इस नापाक खेल में आबकारी विभाग के कर्मचारियों और स्थानीय पुलिस-प्रशासन की अहम भूमिका होती है। शराब के नाम पर जहर बेचने का यह घिनौना खेल तब तक चलता रहता है, जब तक कि कई लोग मौत के मुंह में नहीं चले जाते हैं। दरअसल, जहर उगलने वाली भट्ठियों के सौदागरों की पहुंच सत्ता के गलियारों तक होती है और उनका बाल-बांका तक नहीं होता है। बानगी के तौर पर दक्षिण चौबीस परगना जिले में जहरीली शराब के लिए जिम्मेदार जिस शराब माफिया नूर आलम फकीर उर्फ खोड़ा बादशाह का नाम सामने आ रहा है, उसे सत्तारूढ़ दल का समर्थक बताया जा रहा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि इससे पहले वह वाम सरकार का समर्थक था। यह कोई नई बात नहीं है। काले धंधे से जुड़े लोग सत्ता का संरक्षण पाने के लिए अपनी निष्ठा बदलते ही रहते हैं।


आज अगर दक्षिण चौबीस परगना जिले के संग्रामपुर गांव में मौत का खौफनाक मंजर देखने को मिल रहा है तो इसके लिए स्थानीय प्रशासन ही जिम्मेदार है। बताया जा रहा है कि संग्रामपुर बाजार के आसपास आधा दर्जन से अधिक शराब की भट्ठियां स्थानीय तंत्र की निगरानी में एक जमाने से जहर उगल रही हैं। विरोध के तौर पर जब भी गांव के लोगों द्वारा भट्ठियों को मटियामेट करने की कोशिश की जाती है, उन्हें पुलिस-प्रशासन का कोपभाजन बनना पड़ता है। सच तो यह है कि अगर स्थानीय प्रशासन खोड़ा बादशाह जैसे लोगों को संरक्षण नहीं देता तो सैकड़ों लोगों की जिंदगी बच सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। ऐसा भी नहीं है कि पश्चिम बंगाल की सरकार इस तथ्य से अवगत नहीं है। संग्रामपुर की खौफनाक घटना के बाद सरकारी प्रशासन का हरकत में आना और छापेमारी करते हुए सैकड़ों भट्ठियों को नेस्तनाबूद करना साबित करता है कि इस गंदे खेल से सरकारी तंत्र पूरी तरह अवगत है। खुद राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कह चुकी हैं कि नकली शराब का धंधा राज्य में काफी अरसे से चल रहा है। कहीं न कहीं उनका इशारा पूर्ववर्ती वाम सरकार की ओर है, लेकिन इस इल्जाम से क्या फर्क पड़ता है? अच्छा यह होता कि वर्तमान सरकार ठोस कदम उठाते हुए अवैध शराब माफिया की रीढ़ तोड़ने का काम करती। अभियान चलाकर राज्य के ग्रामीण क्षेत्र में चोरी-चुपके चलाई जा रही अवैध भट्ठियों को नेस्तनाबूद करती।


सरकारी तंत्र के उन अधिकारियों और कर्मचारियों को दंडित करती, जो मौत के कारोबारियों को संरक्षण देने का काम कर रहे हैं। लेकिन राजनीति का विचित्र चलन बन गया है कि किसी भी दुर्भाग्यपूर्ण घटना के लिए दूसरे को जिम्मेदार ठहराओ और हादसे में मारे गए लोगों को मुआवजे की रकम थमाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लो। सत्ता का यह अमानवीय चरित्र कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को नष्ट करने वाला है। वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि केंद्र और राज्य सरकारें संविधान के 47वें अनुच्छेद पर अमल करें यानी शराब की खपत घटाएं। लेकिन सरकारें शराब की खपत बढ़ाने पर ही तुली हुई हैं। ऐसे में स्वाभाविक है कि जहरीली शराब का कारोबार फलेगा-फूलेगा।


लेखक अरविंद जयतिलक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh