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मनरेगा ने बदली तस्वीर

जागरण मेहमान कोना
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कौन बनेगा करोड़पति रियलिटी शो में पांच करोड़ रुपये जीतने और मनरेगा योजना का ब्रांड अंबेसडर बनने वाले सुशील कुमार की कहानी से मुझे राहुल गांधी के इस कथन की याद आती है कि मनरेगा ने ग्रामीण भारतीयों की दशा बदल दी है और उन्हें सिर उठाकर जीने का मौका दिया है। मनरेगा की खामियों की चाहे जितनी चर्चा की जाए, लेकिन फरवरी 2006 में आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले से शुरू राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना आज ग्रामीण भारत के लिए एक वरदान बन गया है। देश के 200 जिलों से शुरू हुई यह योजना आज पूरे देश में लागू है।

दुनिया में यह शायद एकमात्र ऐसा रोजगार कार्यक्रम है जो इतने बड़े पैमाने पर लोगों को रोजगार की गारंटी देता है। इससे लाखों लोगों का सशक्तिकरण हुआ है और गांवों से नौजवानों का पलायन रोकने में मदद मिल रही है। इस योजना की एक विशेषता यह भी है कि इसने न केवल रोजगार पैदा किए हैं, बल्कि हरित रोजगार को भी बल प्रदान किया है। इस योजना के तहत करीब 80 फीसदी काम जल संरक्षण, भूमि विकास, वृक्षारोपण और लघु सिंचाई से जुड़ा हुआ है। योजना के माध्यम से पिछले वर्ष तक कुल 14.15 करोड़ परिवारों को रोजगार मुहैया कराया गया। इस योजना के कारण रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी और मजदूरी की दरों ने ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस कार्यक्रम के लागू होने के बाद देखा गया है कि कई राज्यों में खेतों में काम करने वाले मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी में इजाफा हुआ है जिससे लोगों के जीवनस्तर में सुधार हो रहा है। इसके चलते अब गांव में रहने वाले लोग अनाज और आवश्यक वस्तुएं खरीदने के साथ-साथ शिक्षा और स्वास्थ की देखभाल पर भी खर्च करने लगे हैं। इस योजना के तहत जनश्री बीमा योजना और राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना को भी शामिल किया गया है।

योजना में मजदूरों के लिए बैंकों और डाकघरों में बचत खाते खोले जा रहे हैं। केंद्र सरकार ने राज्यों को निर्देश दिए हैं कि वे जॉब कार्ड जारी करने, पर्याप्त संख्या में काम देने और समय पर मजदूरी के भुगतान के बारे में जागरूकता अभियान को बढ़ावा दें। तमाम सफलताओं के बावजूद अभी भी इसमें पूरी सफलता मिलनी बाकी है। योजना का लाभ सभी को मिले इसके लिए जरूरी है कि दलगत राजनीति की बजाय विकास की राजनीति करें और भ्रष्टाचार पर नकेल कसें। कई राज्यों में इस योजना की रकम दूसरी योजनाओं पर खर्च हो रही है। फर्जी जॉब कार्ड, नकली हाजिरी रजिस्टर, मजदूरों के फर्जी नामों की सूचनाएं बड़ी समस्या हैं। इन सब पर रोक की शुरुआत ग्राम पंचायत स्तर पर की जानी चाहिए। इसके लिए ग्राम पंचायतों के स्तर पर सोशल ऑडिट सतर्कता से किए जाने की आवश्यकता है साथ ही पारदर्शी निगरानी की भी जरूरत है। वेबसाइट आधारित निगरानी को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण सूचनाओं की जानकारी जैसे जॉब कार्ड, मजदूरी भुगतान, रोजगार के दिनों की संख्या, मौजूदा कामों की सूचना आदि को वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जा सकता है। इसके अलावा हेल्पलाइन पर दर्ज शिकायतों पर जल्द और प्रभावी कार्रवाई होनी चाहिए। राज्य सरकारों का सर्वाधिक ध्यान फर्जी जॉब कार्ड और बिचौलियों से निपटने पर होना चाहिए। इसके लिए स्थानीय प्रशासन को पारदर्र्शी बनाना होगा।

योजना को वोट बैंक की राजनीति से भी दूर रखना होगा तभी इसका वास्तविक लाभ गरीबों को मिल पाएगा। मनरेगा योजना देश के उन लाखों लोगों की आंकाक्षाओं को पूरा करने का अवसर दे रही है जो बंधुआ मजदूरी जैसे अभिशापों से ग्रस्त थे और दो वक्त की रोटी की तलाश में अपनी पूरी जिंदगी गुजार देते थे। इस योजना को अभी एक लंबा रास्ता तय करना है ताकि इसका लाभ महात्मा गांधी के शब्दों में प्रत्येक अंतिम व्यक्ति तक पहुंच सके और इंदिरा गांधी का सालों पहले दिया गया गरीबी मिटाओ का सपना साकार हो।

लेखक प्रकाश सिंह स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

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