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भारत का परमाणु त्रिशूल

जागरण मेहमान कोना
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भारतीय सेना के तीनों अंग शीघ्र ही परमाणु सक्षम हो जाएंगे। देश-निर्मित पहली परमाणु पनडुब्बी आइएनएस अरिहंत फरवरी के अंत में विशाखापत्तनम तट के निकट अपने समुद्री परीक्षण शुरू करने जा रही है। लगभग छह महीने तक चलने वाले व्यापक परीक्षणों और मिसाइल परीक्षणों के बाद अरिहंत को भारतीय नौसेना में सम्मिलित कर लिया जाएगा। अरिहंत के शामिल होने के बाद भारत दुनिया के उन गिने-चुने देशों की कतार में शामिल हो जाएगा, जो जमीन, आकाश और समुद्र से परमाणु हथियार दागने की क्षमता रखते हैं। अभी तक सिर्फ अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस ही ऐसी परमाणु क्षमता रखते हैं। इस समय भारत की परमाणु प्रहारक क्षमता अग्नि श्रृंखला की बैलेस्टिक मिसाइलों और सुखोई-30एमकेआइ तथा मिराज-2000 जैसे लड़ाकू विमानों के इर्द-गिर्द केंद्रित है। नौसेना को अरिहंत मिलने के बाद भारतीय सेना की तीनों भुजाओं को परमाणु ताकत मिल जाएगी। एक तरह से परमाणु त्रिशूल बनाने का काम पूरा हो जाएगा। अरिहंत निश्चित रूप से हमारी परमाणु प्रहारक, प्रतिरोधक और निवारक ताकत में वृद्धि करेगी। पांच परमाणु संपन्न देशों के पास इस समय करीब 140 परमाणु पनडुब्बियां हैं। इनमें से 71 पनडुब्बियां अमेरिका का पास हैं। रूस के पास करीब 40 पनडुब्बियां हंै, जबकि चीन-ब्रिटेन और फ्रांस के पास करीब 10-10 पनडुब्बियां हैं।


भारत को पिछले दिनों रूस से दस साल की लीज पर के-152 नेर्पा परमाणु पनडुब्बी मिली है, जिसे आइएनएस चक्र के नाम से भारतीय नौसेना में शामिल किया गया है। इस पनडुब्बी से समुद्र के भीतर भारत की प्रहारक क्षमता बढ़ जाएगी। हालांकि अंतरराष्ट्रीय संधियों के कारण इसे परमाणु मिसाइलों से लैस नहीं किया गया है। अरिहंत का देश में ही निर्माण होना भारत के लिए बड़े गौरव की बात है। 6000 टन की इस पनडुब्बी को 26 जुलाई, 2009 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की उपस्थिति में सांकेतिक रूप से लांच किया गया था। इसमें लगा 83 मेगावाट का लघु प्रेशराइज्ड वाटर रिएक्टर पिछले साल चालू हो चुका है। लंबे अरसे से इस पनडुब्बी के बंदरगाह-परीक्षण चल रहे हैं। फरवरी के अंत तक इसके समुद्री परीक्षण शुरू हो जाएंगे। अरिहंत का निर्माण एडवांस्ड टेक्नोलॉजी वैसल कार्यक्रम के तहत किया गया है। 30,000 करोड़ से अधिक लागत वाले इस कार्यक्रम के तहत तीन और परमाणु पनडुब्बियों एस-2, एस-3 और एस-4 के निर्माण का काम जोर-शोर से चल रहा है। इन परमाणु पनडुब्बियों को 750 किलोमीटर के रेंज वाली के-15 मिसाइलों से लैस किया जाएगा। इन पनडुब्बियों पर 3500 किलोमीटर रेंज की के-4 मिसाइलें तैनात की जाएंगी। अरिहंत पर चार के-4 मिसाइलें या 12 के-15 मिसाइलें रखी जा सकती हैं। भारतीय नौसेना अपनी ताकत का विस्तार करने के लिए दीर्घावधि में तीन परमाणु चालित और परमाणु शस्त्र सज्जित पनडुब्बियां और छह परमाणु चालित प्रहारक पनडुब्बियां चाहती है। नौसेना के मौजूदा पनडुब्बी बेड़े में सिर्फ 14 डीजल-इलेक्टि्रक पडुब्बियां है, जो काफी पुरानी पड़ चुकी हैं।


परमाणु पनडुब्बियों की एक बड़ी खूबी यह है कि वे सतह पर आए बगैर महीनों तक समुद्र के अंदर रह सकती है, जबकि सामान्य पनडुब्बियों को अपनी बैटरियां चार्ज करने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है और इसके लिए उन्हें हर कुछ दिन बाद सतह पर आना पड़ता है। अरिहंत भारत के परमाणु निवारक सिद्धांत के लिए खास महत्व रखती है। भारत परमाणु हथियारों के मामले में पहले वार न करने की नीति का अनुसरण करता है। दूसरा वार करने की क्षमता बहुत कुछ परमाणु चालित पनडुब्बियों पर निर्भर है, जो परमाणु शस्त्रों वाली बैलेस्टिक मिसाइलों से लैस हों। चीन और पाकिस्तान के परमाणु पैंतरों को देखते हुए भारत के लिए परमाणु निवारक ताकत को और ज्यादा सुदृढ़ करना जरूरी हो गया है।


लेखक मुकुल व्यास स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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