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विवेकानंद की प्रासंगिकता

जागरण मेहमान कोना
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स्वामी विवेकानंद के विचारों के आलोक में युवाओं की वर्तमान दशा-दिशा का मूल्यांकन कर रहे हैं विशेष गुप्ता


12 जनवरी, 1863 को स्वामी विवेकानंद के जन्म के बाद लगभग डेढ़ सदी बीत रही है, परंतु उनके संदेश आज भी युवाओं के लिए सजीव प्रेरणा बने हुए हैं। वास्तव में यह दिवस भारत के युवा स्वप्नों का साकार दिवस है। यह दिवस संपूर्ण राष्ट्र को संचालित करने वाले तंत्र में युवाओं की भूमिका के साथ ही राष्ट्र के भविष्य की दिशा को प्रतिबिंबित करने का दिवस भी है। स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आह्वान करते हुए कहा था कि निराशा, कमजोरी, भय तथा ईष्र्या युवाओं के सबसे बड़े शत्रु हैं। युवाओं का उससे भी बड़ा शत्रु स्वयं को कमजोर समझना है। विवेकानंद ने युवाओं को जीवन में लक्ष्य निर्धारण करने के लिए स्पष्ट संकेत दिया कि तुम सदैव सत्य का पालन करो, विजय तुम्हारी होगी। आने वाली शताब्दियां तुम्हारी बाट जोह रही हैं। आने वाले भारत का भविष्य तुम्हारी कार्यशैली पर ही निर्भर करेगा। इसलिए स्वामी विवेकानंद के जन्म के 150 वर्ष बाद भी उनकी भविष्यदृष्टि आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। संभवत: यह उनकी राष्ट्रगत दूरदर्शिता ही थी कि 150 वषरें की लंबी यात्रा के बाद आज भी 21वीं शताब्दी युवा भारत की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं के प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में हमारे सामने है।


युवाओं के विषय में स्वामी विवेकानंद की वैचारिकी बिल्कुल स्पष्ट थी। उन्होंने कहा था कि हमें कुछ ऐसे युवा चाहिए जो देश की खातिर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार हों। फिर देश में आजादी आपके कदमों में होगी। स्वामी विवेकानंद के विचार आज भी हिंदू संस्कृति, समाजसेवा, चरित्र निर्माण, देशभक्ति, शिक्षा, व्यक्तित्व तथा नेतृत्व इत्यादि के विषय में स्पष्ट सोच एवं दिशानिर्देश देने का कार्य कर रहे हैं। स्वामी विवेकानंद के विचारों को केंद्र में रखकर युवाओं की वर्तमान दशा-दिशा का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन करना आवश्यक हो जाता है।


आज भारत में 13 से 35 आयु वर्ग की कुल जनसंख्या 51 करोड़ है। भारत अपने इन युवाओं की शक्ति के आधार पर ही अपनी परंपरागत छवि का आवरण उतारकर नूतन वैश्विक स्तर की अस्मिता बनाने में सफल रहा है। इन युवाओं की ताकत के आधार पर ही भारत के सतत विकास की धाक अमेरिका जैसा विकसित देश भी स्वीकार कर रहा है। इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि देश की आजादी के बाद भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने का स्वप्न स्वामी विवेकानंद के अलावा हमारे अन्य युवा नायकों ने भी देखा था। परंतु देशवासियों को आज जो बात अखर रही है, वह इन युवाओं के मन-मस्तिष्क में ‘शाइनिंग इंडिया’ और ‘असल भारत’ के बीच फासले का लगातार बढ़ते जाना है। निस्संदेह आज का युवा जब सामाजिक संरचना और सामाजिक व्यवस्था में पनपते विरोधाभास तथा राजनेताओं की कथनी और करनी में अंतर देखता है, तो उसका व्यवस्था से मोहभंग हो जाता है। इसलिए आज उसमें देश के तंत्र के खिलाफ आक्रोश दिखाई दे रहा है।


दरअसल, युवाओं में यह आक्रोश उनमें जन्मित सामूहिक कुंठा की अभिव्यक्ति के कारण है। युवाओं में यह कुंठा तब पनपती है जब इस समाज में विद्यमान मानक युवाओं की दृष्टि में इतने अप्रभावी और हानिकारक हो जाते हैं जो उन पर आघात पहुंचाने लगते हैं। उनसे युवाओं का इतना अधिक अलगाव हो जाता है जो उन्हें इन मानदंडों को बदल डालने को मजबूर करता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के आंदोलन में युवाओं की जबरदस्त भागीदारी के पीछे भी इसी मनोविज्ञान को देखना समीचीन होगा। राष्ट्र की विकास यात्रा में राष्ट्रवाद से जुड़ी भावनात्मक संवेदनशीलता युवाओं के जीवन से गायब हो रही है। देश के पांच राज्यों में चुनावी होने हैं। लगभग तीन-चौथाई वोटर युवा वर्ग से ही आते हैं। विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने अपने विभिन्न अभियानों में इस युवा शक्ति का प्रयोग तो किया, परंतु किसी भी राजनीतिक दल ने युवाओं के अंदर पनप रहे आक्रोश और अंतद्र्वंद्व को समझने का प्रयास नहीं किया। युवाओं में राष्ट्र निर्माण करने व उसके लिए त्याग करने की तीव्र आकांक्षा है। दूसरी ओर परिवारवाद की राजनीति में संलग्न कुछ युवा राजकुमारों को छोड़कर वर्तमान का युवा वर्ग नेतृत्वविहीन है। एक ओर सुनहरे भविष्य वाले साधन संपन्न युवा हैं तो दूसरी ओर समाज के आखिरी छोर पर रहने वाले बेरोजगार युवा भी हैं। बेरोजगार शिक्षित युवा माओवादी, उग्रवादी व आतंकवादी संगठनों के लिए उपजाऊ भूमि साबित हो रहे हैं। उदारीकरण के इस दौर में समाज का यह वंचित वर्ग सर्वाधिक प्रभावित हुआ है। युवाओं के इस वर्ग के मनोविज्ञान को न तो वर्तमान शिक्षा व्यवस्था और न ही कोई राजनीतिक पार्टी समझने का प्रयास कर रही है।


सच्चाई यह है कि युवाओं की सक्रिय भागीदारी समकालीन समाज में सामाजिक हलचल और राजनीतिक दिशाबोध का आवेगमय सूचकांक होती है। संपूर्ण विश्व नूतन दौर की यौवन बेला से गुजर रहा है। देश की आबादी में युवाओं की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ लोगों की विचार शैली में भी परिवर्तन आ रहा है। गहराई से विचार करें तो देश के युवा ढांचे में यह परिवर्तन स्वामी विवेकानंद की भविष्य दृष्टि का ही प्रक्षेपण है। आज युवाओं में बेचैनी की तीव्रता है और राष्ट्रीय सरोकारों की कमजोरी। इस पर देश की राजनीति गंभीर नहीं है। आतंकवाद मुंह बाए खड़ा है। देश की सीमाओं पर खतरा मंडरा रहा है। युवा आक्रोशित हैं, मगर चुप हैं। इसलिए वर्तमान में युवाओं से जुड़ी इन परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए देश की राजनीति को समय रहते राष्ट्रहित में निर्णय लेना होगा। तभी राष्ट्रीय युवा दिवस तथा स्वामी विवेकानंद के संदेशों की सार्थकता सिद्ध होगी।


लेखक विशेष गुप्ता समाजशास्त्री हैं


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