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सोशल मीडिया पर अंकुश

जागरण मेहमान कोना
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फेसबुक और गूगल ने अदालत का आदेश मानते हुए भारतीय डोमेन नाम वाली अपनी साइट्स से कथित आपत्तिजनक कंटेंट हटा लिए हैं। गूगल इंडिया ने अदालत को बताया कि उसने इंटरनेट से अपने कुछ वेबपेज हटा दिए हैं जिन पर याचिकाकर्ताओं ने आपत्ति जताई थी। आने वाले दिनों में फेसबुक और गूगल पर कुछ भी लिख देना आसान नहीं होगा। इससे पहले ट्विटर और गूगल अपने ब्लॉगर प्लेटफॉर्म पर कंटेंट यानी ब्लॉग पर पोस्ट की जाने वाली सामग्री को लेकर कुछ कड़े नियम लागू करने का ऐलान कर चुकी हैं। इसके तहत अलग-अलग देश अपने नियमों के हिसाब कंटेंट पर रोक लगा सकते हैं। ऑनलाइन कंटेंट पर पाबंदी लगाने को लेकर भारत समेत दुनिया के कई देशों में चल रही बहस के बीच गूगल और ट्विटर ने यह योजना तैयार की है। गूगल ने 1999 में ब्लॉगिंग सर्विस की शुरुआत की थी। कंपनी के मुताबिक नए नियम भारत, ब्राजील और जर्मनी जैसे कई देशों में लागू होंगे। माना जा रहा है कि गूगल इन नियमों को पूरी दुनिया में जल्द लागू करेगी। नए नियम लागू होने के बाद गूगल अलग-अलग देशों में वहां की कानूनी संस्था के आग्रह के बाद किसी भी कंटेंट पर पाबंदी लगा सकेगी। कंपनी ने कहा है कि वह विभिन्न देशों के हिसाब से अलग-अलग सामग्री पर रोक लगा सकेगी। इसका मतलब यह है कि अगर कोई ब्लॉग अमेरिकी कानून का उल्लंघन करता है तो गूगल उसे अमेरिका में ब्लॉक कर सकती है, जबकि बाकी देशों में वह चालू रह सकता है।


सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बहस के बीच इंटरनेट कंपनियों के ताजा कदम अच्छे संकेत नहीं लग रहे। दरअसल, आपत्तिजनक कंटेंट को लेकर शुरू हुई बहस कंपनियों के बैकफुट पर जाने से खत्म होती दिख रही है। यहां दो बातों पर गौर करना जरूरी है। पहली, पूरी दुनिया में इन दिनों सोशल मीडिया पर नकेल कसने की कवायद चल रही है। अभी 40 से ज्यादा देशों में इंटरनेट पर किसी न किसी तरह की पाबंदी है और वहां सूचनाओं को फिल्टर किया जाता है। क्यूबा, थाइलैंड, ईरान, उत्तर कोरिया जैसे देशों में इंटरनेट सेंसरशिप का हाल यह है कि सामान्य जन लिखने से पहल कई बार सोचता है कि कहीं उसका लिखा उसे जेल न पहुंचा दे। चीन में तो यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर जैसी साइटों पर पूर्ण पाबंदी है ही और चीन की अपनी एक अलग इंटरनेट दुनिया है। फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी ने समूह आठ की मुख्य बैठक से पहले आयोजित अंतरराष्ट्रीय वेब सम्मेलन में इंटरनेट पर सरकारी नियंत्रण का मुद्दा छेड़ा। सरकोजी के मुताबिक इंटरनेट को निरंकुश नहीं छोड़ा जा सकता। सरकोजी ने विश्व के कई प्रमुख नेताओं और तकनीकी दुनिया के महारथियों के सामने कहा कि सरकारों की जिम्मेदारी है कि वह इंटरनेट के दुरुपयोग को रोकने के लिए कानून बनाएं।


भारत में भी नेट पर पाबंदी की कोशिश अपनी तरह से शुरू हो रही है, लेकिन दूसरा महत्वपूर्ण सवाल सोशल मीडिया कंपनियों का है। क्या वे वास्तव में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पक्षधर हैं। फेसबुक को लें तो अब इस साइट की नजर भारत के बाजार पर है। फेसबुक अमेरिका के इतिहास के सबसे बड़े आइपीओ के जरिए निवेशकों से दस करोड़ डॉलर यानी करीब 50 हजार करोड़ रुपये उगाहने की कोशिश में है। यह आईपीओ मई में आने की संभावना है। निवेशकों का भरोसा फेसबुक में तभी बना रह सकता है जब उसके बाजार का विस्तार हो। फेसबुक के लिए भारत कितना बड़ा बाजार है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले एक साल में भारत में फेसबुक के सदस्यों की बढ़ोतरी दर 132 फीसदी रही और अब यहां 4 करोड़ चालीस लाख से अधिक उपयोक्ता हैं। इसलिए सरकार से बैर लेना फेसबुक के लिए व्यावहारिक रूप में संभव नहीं। वैसे, यही हाल बाकी कंपनियों का भी है। अमेरिकी सरकार बनाम विकीलीक्स की लड़ाई में विकीलीक्स की दुर्गति सभी कंपनियां देख चुकी हैं।


इस आलेख के लेखक पीयूष पांडे हैं


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