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श्वान पालने का सुख

जागरण मेहमान कोना
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एक पक्का श्वान प्रेमी होने के नाते मुझे लगता है कि मैं डॉग हाउस में हूं। मेरा मतलब कुत्ता घर से नहीं, बल्कि ऐसे व्यक्ति से है जो जनता की नजरों से उतर गया है। एक पत्रिका में बाबा उमर द्वारा लिखे गए लेख ने मुझे उकसाया। इस लेख का शीर्षक था-हू लेट द डॉग आउट। इसमें पाठकों का ध्यान कश्मीर में कुत्तों के काटने की घटनाओं के तेजी से बढ़ने की तरफ दिलाया गया है। लेख के साथ एक तस्वीर थी जिसमें दो दर्जन से ज्यादा कुत्ते बर्फ में पर्यटकों का इंतजार कर रहे थे ताकि उनके खाने का कुछ इंतजाम हो जाए। पहले तो मैंने इसे हल्के ढंग से लिया। फिर मैंने इसकी एक प्रति बेगम दिलशाद शेख को दी जो पास के ब्लाक में दिल्ली की सर्दियां बिताती हैं। मैंने सोचा था कि इसे पढ़ने के बाद वह कश्मीर जाने का इरादा बदल देंगी। मुझे अभी भी उम्मीद है कि वह ऐसा ही करेंगी। मैं हमेशा से कुत्ता प्रेमी रहा हूं। बचपन से हमेशा मेरे साथ एक कुत्ता रहा है। इंग्लैंड में रहते हुए भी मेरे पास एक काकर स्पेनियल था, लेकिन उसका कोई सबूत नहीं था। 14 साल तक मेरा साथ निभाने वाला मेरा जर्मन शैफर्ड सिंबा था।


हम दोनों एक-दूसरे के इतना करीब थे जितना कोई भी मनुष्य या पशु हो सकते हैं। वह न केवल दूसरे कुत्तों की तरह अपना नाम लिए जाने पर जवाब देता था, बल्कि अपनी भाषा में मुझसे बात भी करता था, जो मैं समझ जाता था। जब वह मेरी छड़ी लाकर मेरी गोदी में रखता था तो उसका मतलब होता था कि मुझे सैर कराने ले चलो। सभी कुत्ते कसरत के शौकीन होते हैं। मैं उसके हुक्म का पालन करता था और उसे लोदी गार्डेन ले जाता था। जब वह यही बात खाने के बाद करता था तो उसका मतलब होता था मुझे खान मार्केट ले चलो और मुझे आईसक्रीम लेकर दो। वह रविवार की सुबह का इंतजार करता था जब परिवार पिकनिक पर जाता था। हम अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचने से पहले उसे कार से उतार देते थे। वह कार के साथ रेस लगाता था। गायों या किसी खरगोश के पीछे पड़ जाता था और उसे भगाकर ही दम लेता था। वह स्नेह दिखाने के लिए लोगों को चाटता था। केवल गिलहरी का शिकार करते समय वह अपने दांतों का इस्तेमाल करता था। मैं कभी उसकी यह गंदी आदत नहीं छुड़ा सका।


सिंबा अपनी नस्ल के कुत्तों में सबसे सुंदर था, लेकिन मेरे पास इस बात का कोई प्रमाण नहीं था। कुत्ते बहुत से आकार के होते हैं। छोटे से चीहुआहुआ से लेकर डेन या रॉटवैलर तक। दरमियाने दर्जे के कुत्ते भेडि़ये की तरह दिखाई देते हैं जो छेड़ने या भूखा होने पर हमला कर सकते हैं। यही वह नस्ल है जिसने इंसानी मांस का स्वाद लिया हुआ है और श्रीनगर में पाई जाती है। मेरे ज्यादातर दोस्त कुत्ता प्रेमी हैं। मेरी भतीजी वीना बलवंत सिंह दफ्तर से लौटने के बाद रोजाना लोदी गार्डेन में आवारा कुत्तों के लिए खाना ले जाती है। वह बीमार कुत्तों का इलाज भी करवाती है। हमें कुत्तों की आबादी पर नियंत्रण रखने के लिए उन्हें मारना नहीं चाहिए। अच्छा तो यह है कि उनकी नसबंदी करा दी जाए। इसमें लगभग 800 रुपये लगते हैं। आत्मा का वास : मृत्यु के बाद हम कहां जाते हैं? यमदूत कौन है? वह हमसे जिंदगी छीनकर कहां चला जाता है? आत्मा क्या है और वह कहां रहती है? उसका रूप क्या है? शरीर के मर जाने पर वह कैसे चली जाती है? शरीर छोड़कर आत्मा कहां बसती है? उसकी अवधि क्या है? क्या वह भटकती है या कोई खेल करती है? जो जन्मा है वह किसी न किसी न दिन अवश्य मृत्यु को प्राप्त होगा और जो मरता है वह एक दिन जन्म अवश्य लेगा। यम मृत्यु के देवता हैं जो आत्मा को शरीर से अलग कर लेते हैं। आत्मा केवल अपना चोला बदलती है। व्यक्तिगत आत्मा संपूर्णता का एक भाग है। अदृश्य, अविनाशी, अजन्मा, जो न कभी मरता है वह आत्मा है। एक शरीर छोड़कर आत्मा दूसरे शरीर में चली जाती है।


लेखक खुशवंत सिंह वरिष्ठ स्तंभकार हैं

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