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एनसीटीसी का औचित्य

जागरण मेहमान कोना
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एनसीटीसी को मिले पुलिसिया अधिकारों में कटौती के साथ इसे आतंक के खिलाफ जंग में कारगर हथियार बता रहे हैं प्रकाश सिंह


26/11 आतंकी हमले से आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था की कमजोरियां उजागर हो गई थीं। राष्ट्रीय स्तर पर यह समझा गया कि आतंकवाद से लड़ने के लिए हमें अपनी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को और सुदृढ़ व सशक्त बनाना होगा। भारत सरकार तबसे इस दिशा में बराबर प्रयत्नशील है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी का गठन किया गया। राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड की इकाइयों का अन्य महानगरों में विकेंद्रीकरण हुआ। तटीय सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए योजना लागू की गई। आतंकवाद से लड़ने के लिए पुलिस और अ‌र्द्धसैनिक बलों के प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए गए। केंद्र सरकार ने प्रदेश सरकारों को पुलिस बल के आधुनिकीकरण और रिक्तियों को भरने के निर्देश दिए, इत्यादि। इसी कड़ी में केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने दिसंबर, 2009 को इंटेलिजेंस ब्यूरो के वार्षिक सम्मेलन में एनसीटीसी के गठन की योजना की घोषणा की। यह संस्था न केवल आतंकवाद के विरुद्ध निरोधात्मक कार्रवाई करेगी, बल्कि घटना होने के बाद उसकी गुत्थी सुलझाने और जवाबी हमले की कार्रवाई भी करेगी।


गृहमंत्री की योजना कुछ ज्यादा ही महत्वाकांक्षी थी। अन्य संबंधित विभागों ने उसका विरोध किया। पिछले दो वर्षो से पत्राचार और बहस के बाद भारत सरकार ने एनसीटीसी के गठन की मध्य जनवरी में घोषणा की। कहा गया कि आतंकवाद से संबंधित अभिसूचनाओं के लिए यह सर्वोच्च संस्था होगी जो इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधीन काम करेगी। इसे न केवल अभिसूचनाओं के एकत्रीकरण, उनमें सामंजस्य स्थापित करना और उन्हें कार्रवाई के लिए राज्य सरकारों और संबंधित अधिकारियों को भेजना होगा वरन इसे आतंकवाद में लिप्त लोगों की तलाशी और उनकी गिरफ्तारी का भी अधिकार होगा। संगठन को यह अधिकार प्रचलित गैरकाूननी गतिविधि [निवारक] कानून के अंतर्गत प्रदत्त किया जाएगा। इसमें संदेह नहीं कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई को बल और दिशा देने के लिए एनसीटीसी की तत्काल आवश्यकता है। परंतु दुर्भाग्य से भारत सरकार ने इसके गठन में दो ऐसी गलतियां की हैं जिनसे सारी योजना खटाई में पड़ गई है। पहली बात यह है कि अन्य देशों में यह संस्था एक स्वतंत्र इकाई के रूप में काम करती है। इससे लाभ यह होता है कि सरकार को एक निष्पक्ष दृष्टिकोण मिलता रहता है। इंटेलिजेंस ब्यूरो का हिस्सा बनाने में खतरा यह है कि अगर इंटेलिजेंस विभाग से कोई गलती हुई तो वह गलती एनसीटीसी के स्तर पर भी दोहरा दी जाएगी। दूसरी बड़ी गलती यह हुई कि इंटेलिजेंस ब्यूरो को गिरफ्तारी का अधिकार दिया गया। ऐसा किसी प्रगतिशील पश्चिमी देश में नहीं है। रूस में अवश्य स्तालिन के नेतृत्व में केजीबी को यह अधिकार दिया गया था।


गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने एनसीटीसी का तीखा विरोध किया है। अगर मुख्यमंत्रियों की आपत्ति केवल यहीं तक सीमित रहती कि इंटेलिजेंस ब्यूरो को गिरफ्तारी का अधिकार देने का औचित्य नहीं है, तब तो उनकी आपत्ति को सही कहा जाता, परंतु अधिकांश मुख्यमंत्री बार-बार संघीय ढांचे की दुहाई देते हैं और कहते हैं कि प्रस्तावित योजना उनके अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण है। यह बात गले नहीं उतरती। आज सच्चाई यह है कि शांति व्यवस्था से संबंधित छोटी से छोटी घटना से निबटने के लिए राज्य सरकारें केंद्रीय मदद और अ‌र्द्धसैनिक बलों की मांग करती हैं। अंतर्जातीय संघर्ष हो, सांप्रदायिक दंगा हो, त्योहारों की व्यवस्था करनी हो, कोई रास्ता रोको या रेल रोको आंदोलन हो, प्रदेश सरकारें तुरंत सीआरपीएफ और बीएसएफ की मांग करती हैं। तब तो वह भूल जाते हैं कि संघीय ढांचे में ऐसी परिस्थितियों से निपटना उनकी जिम्मेदारी है। परंतु जब आतंकवाद जैसी गंभीर और व्यापक समस्या से निपटने के लिए भारत सरकार कोई पहल करती है तब मुख्यमंत्री अपनी जागीर बचाने लगते हैं। सभी राजनीतिक वर्गो को यह समझना होगा कि आज देश के लिए अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद सबसे बड़ा खतरा है। यह हमारे राजनीतिक अस्तित्व को खत्म करना चाहता है, अर्थव्यवस्था को छिन्न-भिन्न करना चाहता है और समुदायों के बीच दुर्भावना का जहर घोलकर सांप्रदायिक आग लगाना चाहता है। इस खतरे से निपटने के लिए केंद्रीय योजना के अंतर्गत सभी प्रदेशों को काम करने के लिए तैयार रहना चाहिए।


जैसा भी हो, भारत सरकार की एनसीटीसी बनाने की योजना में खामी तो है ही। अमेरिका में 2004 में एनसीटीसी का गठन हुआ, परंतु उसकी जिम्मेदारी केवल अभिसूचनाओं के एकत्रीकरण और सामंजस्य तक ही सीमित रखी गई। वहां यह संगठन डायरेक्टर नेशनल इंटेलिजेंस के अधीन काम करता है, परंतु उसे कोई कार्यकारी अधिकार नहीं दिए गए हैं। जमीनी कार्रवाई की जिम्मेदारी होमलैंड सिक्योरिटी विभाग के पास है। इसी प्रकार इंग्लैंड में ज्वाइंट टेररिज्म एनालिसिस सेंटर बनाया गया था। इंग्लैंड की खुफिया एजेंसी एमआइ-5 को भी कार्यकारी अधिकार नहीं दिए गए हैं। जमीनी कार्रवाई काउंटर टेररिज्म कमांड और स्थानीय पुलिस की जिम्मेदारी है।


गृहमंत्री ने एनसीटीसी की प्रेरणा तो अमेरिका से ली, परंतु उसे व्यावहारिक स्वरूप देने में चूक गए। मुख्यमंत्रियों को उन्होंने अब पत्र लिखा है कि निकट भविष्य में सभी राज्यों के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशकों का सम्मेलन बुलाया जाएगा। उसमें भारत सरकार अपना दृष्टिकोण सामने रखेगी। चिदंबरम का कहना है कि एनसीटीसी को तलाशी और गिरफ्तारी के न्यूनतम अधिकार होने चाहिए, परंतु यह आवश्यकता प्रगतिशील पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों ने नहीं महसूस की। उनका यह कहना सही है कि आतंकवाद से लड़ना केंद्र और राज्यों की मिली-जुली जिम्मेदारी है, परंतु इस जिम्मेदारी को सबको साथ लेकर ही निभाया जा सकता है। इंटेलिजेंस ब्यूरो को पुलिस अधिकार देने का प्रस्ताव वांछनीय नहीं है। इंटेलिजेंस ब्यूरो एक गोपनीय संस्था है। यह पर्दे के पीछे ही काम करती रहे तो उचित होगा। अगर इसे गिरफ्तारी के अधिकार दिए गए तो यह संगठन आरटीआइ के अंतर्गत भी आ जाएगा और इसके कार्यकलाप पर संसद में चर्चा हो सकती है। दूरगामी दृष्टिकोण से यह इंटेलिजेंस ब्यूरो के लिए भी लाभप्रद नहीं होगा।


भारत में एनसीटीसी का शीघ्रातिशीघ्र गठन होना चाहिए। इस संगठन के पास आतंकवाद विरोधी अभिसूचनाओं के एकत्रीकरण और प्रसारण का अधिकार होना चाहिए। इस संगठन की यह भी जिम्मेदारी होनी चाहिए कि आतंकवाद से निपटने और उसके विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई करने के लिए समय-समय पर योजनाएं बनाए, परंतु जमीनी स्तर पर कार्रवाई पुलिस, सीबीआइ, राष्ट्रीय जांच एजेंसी व प्रवर्तन निदेशालय द्वारा ही होनी चाहिए।


लेखक प्रकाश सिंह पूर्व पुलिस महानिदेशक हैं


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