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सचिन का जादू

जागरण मेहमान कोना
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अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 100 शतक। वर्ष 1844 से अब तक 168 साल गुजर गए। इस लम्हे से पहले किसी को ऐसे सपने भी नहीं आ सकते थे। जो न कभी हुआ और शायद न कभी होगा, लेकिन बांग्लादेश में मीरपुर के मैदान पर 16 मार्च 2012 को वह घड़ी आ ही गई। क्रिकेट धन्य हुआ। ऐसे दौर में, जब अच्छी से अच्छी चीजें थोड़े वक्त में अपना असर और प्रभाव खो देती हैं, आखिर ऐसा क्या है कि एक सिलसिला 22 साल से भी ज्यादा समय से चलता ही जा रहा है और जो पहले से ज्यादा निखरकर सामने आया है। आखिर सचिन में ऐसे कौन से गुण हैं जो उन्हें शिखर पर होते हुए भी शांत व शालीन रखती है। 16 साल 6 महीने 22 दिन की उम्र ही क्या होती है! पाकिस्तान के साथ पहले मैच में इतनी कच्ची उमर में ही तूफान का सामना करने का जो जादू सचिन ने दिखाया, वह आज तक कायम है। तभी तो एक साल से भी कम समय में विजडन ने लिखा यह महान बल्लेबाज सुनील गावस्कर जैसा नजर आता है, उसके पास सभी तरह के स्ट्रोक हैं। हालांकि वह महज 5 फुट, 5 इंच ही लंबा है, लेकिन उसे शॉर्ट पिच गेंदे खेलने में महारत हासिल है। वक्त के साथ सचिन खुद के बनाए शिखर को नई ऊंचाई देते रहे और सब कुछ बदलता गया। नहीं बदला तो बस उनका शांत और सौम्य चित्त। शायद यही गुण है जिससे सचिन बने। वह पूरे साल महाशतक का इंतजार कराने पर हुई तीखी टिप्पणियों से विचलित दिखे और न ही मीरपुर से पहले बने 99 शतक कभी उनके सिर चढ़कर बोलते नजर आए। समय बदला तो खिलाडि़यों के कपड़े ही नहीं रंगीन हुए, उनके मिजाज में भी रंगीनी का असर दिखा। क्रिकेटरों का बड़ा वर्ग वह रहा, जिन्होंने खेल के साथ-साथ ग्लैमर को अपनी जिंदगी में शामिल किया। जबकि कुछ ऐसे भी रहे जो इस चकाचौंध में अपने करियर पर ही ग्रहण लगा बैठे। सचिन इन सबमें भी सामान्य रहकर असामान्य बने।


आइपीएल मैचों में भी रंगीन नाइट पार्टियों से सचिन ने दूरी बनाकर रखी। शायद ही किसी कप्तान को कभी सचिन से परेशानी हुई। सचिन ने दो दौर में कप्तानी भी की। खुद को अनफिट महसूस किया या खेल पर इसका असर देखा तो इसे छोड़ भी दिया और खुशी-खुशी कबूल किया। टीम के साथ नियमित प्रोफेशनल कोच जुड़ने लगे तो सवाल उठा कि सचिन को सीख देने वाला भला कौन? सचिन ने सीनियर जॉन राइट और खुद के साथ खेले गैरी क‌र्स्टन का समर्पित शिष्य बनना भी कबूल किया और उन डंकन फ्लैचर का भी जिन्होंने कभी टेस्ट क्रिकेट नहीं खेला। ग्रेट ग्रेग चैपल से सचिन को अगर कोई परेशानी रही तो शायद इस वजह से कि तब कई चीजें टीम हित के खिलाफ जा रही थी और सचिन ही नहीं, कई दूसरे खिलाड़ी भी तब एक खास किस्म की सनक से सशंकित हो उठे थे। इन सालों में क्रिकेट हर मोर्चे पर बदल गया। सचिन के दौर में 50 ओवर का क्रिकेट शीर्ष पर पहुंचा और इसी काल में ट्वेंटी-ट्वेंटी क्रिकेट ने उसके वजूद पर सवाल भी उठा दिए। ऊपर से तामझाम अलग से आ गया। एक खिलाड़ी जिसने टेस्ट क्रिकेट की खूबसूरती के दौर में बल्ला थामा था, वह पचास ओवर के क्रिकेट को शिखर पर ले जाने का बड़ा वाहक बना और फिर लेटेस्ट क्रिकेट में भी अपनी दमदार मौजूदगी का अहसास कराया। यह संभव था तो केवल और केवल लगातार सीखने और खुद को बेहतर करने की क्षमता व इच्छाशक्ति से।


सचिन ने ऐसा ही किया। 39 साल की उम्र में भी सचिन बाकी तमाम टीम साथियों से कहीं ज्यादा पसीना नेट पर अभ्यास में बहाते हैं। साफ-सुथरा दृष्टिकोण सचिन के लिए क्रिकेट की सांस की तरह रहा तो बाकी चीजें बस भौतिक जरूरतें पूरी करने का जरिया। सचिन जितना एंडोर्समेंट शायद ही किसी क्रिकेटर ने किया हो, लेकिन किसी ने कभी नहीं कहा कि उनके खेल पर इसका रत्ती भर भी असर हुआ है। दोनों के बीच क्या खूब तालमेल रखा। यह सब सचिन उसी दौर में करते रहे जब टीम के कई दूसरे साथी भरपूर टैलेंट के बावजूद अपने कॅरियर को किन्हीं न किन्हीं वजहों से बेपटरी करते रहे। 22 साल के कॅरियर में सचिन को ऐसी चीजें छू भी नहीं पाई। फोकस साफ रहने का ही फायदा रहा कि अजहर के वक्त फिक्सिंग का बवंडर और फिर गांगुली व द्रविड़ के समय उठा चैपल का तूफान भी सचिन पर असर न डाल सका। सचिन आज किसी भी चीज पर बोलें तो सुर्खियां बनेंगी, लेकिन वह ऐसा नहीं करते, क्योंकि उन्हें पता है कि यहीं से विवाद शुरू होते हैं और फोकस डायवर्ट होता है। ऐसा नहीं है कि सचिन की देश में बदले राजनीतिक हालात पर, महंगाई और भ्रष्टाचार पर या फिर अन्ना के आंदोलन पर कोई राय नहीं होगी, लेकिन वह नहीं बोलते। ऐसा नहीं है कि सचिन ने कोलकाता में निकले कांबली के आंसुओं का 15 साल बाद दोहराव नहीं देखा होगा, लेकिन वह कुछ नहीं बोले। ऐसे कई मुद्दे होंगे जिन पर सचिन नहीं बोलते, क्योंकि उन्हें पता है कि क्रिकेट की साधना में विघ्न डालने वाली चीजें उनके लक्ष्य में सेंध लगा सकती हैं।


मैदान से बाहर भी सचिन एक संस्था के 200 बच्चों की हर साल जिम्मेदारी उठाते हैं। सब कुछ चुपचाप होता है बगैर किसी शोरशराबे के। कोई बल्लेबाजी की उच्चतम तकनीक आत्मसात कर सकता है, लेकिन 23 साल एक जैसी मनोदशा कायम रखना और शतकों का शतक लगाना कुछ अलग होने की मांग करता है। सचिन ऐसा कर पाए, क्योंकि शायद वह अपने धर्म यानी क्रिकेट और प्रकृति की सबसे सुंदर रचना यानी इंसानियत के सेवक और साधक बनकर जिए।


इस आलेख के लेखक अश्विनी कुमार हैं


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