Menu
blogid : 5736 postid : 4762

टीम अन्ना से अब दूरी क्यों

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

अन्ना हजारे की टीम को पिछले दिनों सिर्फ चेतावनी देकर संसद ने छोड़ दिया। हालांकि मुलायम सिंह यादव जैसे नेता ने तो उन्हें संसद में मुजरिमों की तरह बुलाए जाने की मांग की। नाराज वह शरद यादव भी कम नहीं रहे, जिनकी दाढ़ी में तिनका वाली कहावत का टीम अन्ना ने इस्तेमाल किया। अन्ना हजारे की टीम के खिलाफ कोरस गान में कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और वामपंथी दलों के नेताओं के अलावा छोटे-बड़े सभी दल शामिल रहे। हालांकि एक दिन पहले यानी 26 मार्च को सुषमा स्वराज, गुरुदास दासगुप्ता और वासुदेव आचार्य भी अन्ना हजारे के खिलाफ विरोध में शामिल रहे और उन्हें चेतावनी देने की मांग करते रहे। उस दिन कांग्रेस मंद मुस्कान के साथ गुस्से के इस गुब्बार को देखती रही। इसकी वजह भी है। आखिर अब तक अन्ना हजारे और उनकी टीम का गुस्सा सिर्फ वही झेलती रही है। अन्ना हजारे की टीम पर अपना गुस्सा निकालकर सांसदों ने उसे चेतावनी दे दी है। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने नई बहस को जन्म दे दिया है। इस बहस में कुछ सवाल भी उठेंगे। सवाल यह है कि क्या जनता द्वारा चुना जाना ही सिर्फ पाक-साफ होने की गारंटी हो जाती है। सवाल यह भी है कि इन दिनों जो 163 सांसद संसद की शोभा बढ़ा रहे हैं और चूंकि वे जनता का भरोसा जीतकर ही संसद में पहुंचे हैं, लिहाजा उनके अपराधों को भी नजरअंदाज कर दिया जाना चाहिए? हालांकि उनके दागी होने का प्रमाण चुनाव आयोग के सामने दाखिल उनके हलफनामे ही हैं। वैसे सांसद खुलकर इसकी मांग तो नहीं करते कि उन्हें जनता ने चुन लिया तो उनके कारनामों को माफ कर दिया जाना चाहिए, लेकिन वे दूसरे तरीकों से कहते रहे हैं कि उन्हें इन मामलों में विशेषाधिकार मिलना ही चाहिए। हकीकत तो यह है कि अन्ना हजारे और उनकी टीम संसद की सर्वोच्चता पर नहीं, बल्कि सांसदों की करतूतों और उनके चरित्र पर सवाल उठा रही है.


राजनीति का शिकार लोकपाल


अगर सांसदों की ही बात मान ली जाए और उन पर सवाल नहीं उठाए जाएं तो यह भी सवाल उठता है कि क्या जनता कुछ भी नहीं है। क्या लोकतंत्र के बुनियादी आधार जनता का कोई अधिकार नहीं है। हकीकत तो यह है कि भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में अब तक लोकतंत्र के बुनियादी आधार जनता के ही अधिकारों की अवहेलना की जाती रही है। भारतीय राजनीति ने भी ऐसी व्यवस्था विकसित कर ली है, जिसमें जनता एक ऐसी सामग्री के तौर पर विकसित कर ली गई है, जिसका काम सिर्फ वोट देना है। फिर उसकी भूमिका खत्म हो जाती है। केरल की समाजवादी सरकार ने पचास के दशक में किसानों पर गोली चलाया तब सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव के नाते डॉक्टर राममनोहर लोहिया ने अपनी ही सरकार को इस्तीफा देने का आदेश सुना दिया था। लोहिया का तर्क था कि जनता की सेवक सरकार किसानों पर गोली कैसे चला सकती है, लेकिन दुर्भाग्यवश लोहिया के ही आदेश को उनकी ही पार्टी के अध्यक्ष पुरुषोत्तम दास टंडन ने नामंजूर कर दिया। अगर लोहिया का आदेश मान लिया गया होता तो आजाद भारत में लोकतंत्र के बुनियादी आधार जनता के अधिकारों की स्थापना की ऐसी परिपाटी शुरू होती, जहां जनता को दिखावे के लिए सर्वोच्च नहीं माना जाता, बल्कि हकीकत में जनता की पूजा होती। तब शायद देश की 83 करोड़ 70 लाख की आबादी को महंगाई और तेज विकास के दावे के दौर में भी बीस रुपये रोज पर गुजारा करने को मजबूर नहीं होना पड़ता, लेकिन दुर्भाग्यवश इस अधिकार की बहाली की राह में बाधा उस समाजवाद ने पैदा की, जिससे आजाद भारत की जनता को ज्यादा उम्मीदें थीं।


अधर में अन्ना का आंदोलन!


50-55 साल के लंबे अंतराल के बाद संसद में अन्ना हजारे और उनकी टीम को दंडित करने की वकालत भी इन्हीं समाजवादियों की अगली पीढ़ी के नेता बढ़-चढ़कर कर रहे थे। अब जरा शरद यादव के गुस्से की बात करें। अन्ना हजारे ने जब जंतरमंतर पर राजनेताओं को अपने मंच पर बुलाया था, तब भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली, जनता दल-यू के अध्यक्ष शरद यादव, सीपीआइ के एबी वर्धन और सीपीएम नेता सीताराम येचुरी को अन्ना के मंच पर जाने से गुरेज नहीं रहा। सबने तब अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के समर्थन का वादा किया था। उसमें शरद यादव ने तो कुछ ज्यादा ही बढ़-चढ़कर बोला था। उन्होंने जनलोकपाल बिल को कॉमा और फुलस्टॉप के साथ पास कराने का वादा किया था, लेकिन आखिर क्या हुआ कि अब शरद यादव गुस्से में भर उठे हैं और उनके गुस्से को सुषमा स्वराज भी अभिव्यक्ति दे रही हैं। जिस समय कांग्रेस के अलावा दूसरे दलों के नेता अन्ना के जंतर-मंतर स्थित मंच पर चढ़े थे, उस वक्त हिसार उपचुनाव होना था। इस उपचुनाव में अन्ना हजारे और उनकी टीम के विरोधी प्रचार का असर दिखा भी। कांग्रेस के प्रत्याशी जयप्रकाश खेत रहे थे। कम से कम तब यही माना गया कि यह सब टीम अन्ना के कांग्रेस विरोधी प्रचार के चलते संभव हुआ, लेकिन यह भी सच है कि 2009 के चुनाव में जब यहां से भजनलाल जीते थे, तब भी कांग्रेस की स्थिति खराब थी। तब कांग्रेस को भावी विधानसभा चुनावों में हार की घबराहट दिखने लगी तो विपक्षी दलों को अन्ना और उनकी टीम के जरिये चुनावी वैतरणी पार लगने की उम्मीद दिखने लगी, लेकिन उत्तर प्रदेश के चुनावों में ऐसा कुछ नजर नहीं आया।


उत्तराखंड में अन्ना हजारे की कसौटी पर बेहतर लोकायुक्त विधेयक पास कराने का भाजपा को फायदा नहीं हुआ। ऐसे में यह मानने से हर्ज नहीं है कि तब से लेकर राजनीति का अन्ना हजारे से मोहभंग होने लगा। शायद यही वजह है कि अगस्त में सिर्फ अन्ना के लिए बैठने वाली लोकसभा मार्च में उनके खिलाफ ही बोलने लगी। तो क्या यह मान लिया जाए कि अन्ना हजारे और उनकी टीम की चुनावी उपयोगिता नजर न आना भी अन्ना हजारे की टीम के खिलाफ राजनीति के गुस्से की वजह बनता जा रहा है। राजनीति ने जिस तरह अन्ना हजारे की टीम के खिलाफ गुस्सा निकाला है, उसकी हिंदी टीवी चैनलों की प्रवृत्ति से तुलना की जा सकती है। हिंदी के खबरिया चैनलों के कंटेंट को बौद्धिक समाज में जब भी आईना दिखाने की कोशिश की जाती है, उसके संपादक गुस्से से भर उठते हैं। वे मानने से इनकार कर देते हैं कि जनता में उनके कंटेंट के प्रति घोर गुस्सा है, लेकिन इनकार से इस गुस्से को नकारा नहीं जा सकता।


राजनीति को भी मान लेना चाहिए कि उसे लेकर जनता में भारी रोष है। जनता की इस समझ का असर ही है कि हाल ही में बीते विधानसभा चुनावों में अन्ना हजारे की टीम का चुनावी असर नजर नहीं आया, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अन्ना हजारे जैसी टीम के जरिये बढ़ी जागरूकता जब जनता के मन में तह दर दर बैठनी शुरू होती है तो राजनीति के लिए भी गुंजाइश कम होती जाती है। यह फॉर्मूला टेलीविजन या किसी और मीडिया पर भी लागू हो सकता है। ऐसे में बेहतर तो यह होता कि चाहे टीवी के कर्ताधर्ता हों या राजनीति के रहनुमा, उन्हें यह मान लेना चाहिए कि जनता में उन्हें लेकर गुस्सा है। यह गुस्सा उनके कंटेंट और उनके कामों को लेकर है। जिस दिन वे यह मान लेंगे, उसी दिन से नई शुरुआत होगी। बेहतर तो यह होता कि राजनीति भी इसे समझती, लेकिन लगता नहीं कि राजनीति के लिए ऐसी समझ विकसित करने का वक्त अभी आ गया है।


लेखक उमेश चतुर्वेदी स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


अन्ना से उम्मीद अभी बाकी है


Read Hindi News

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh