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स्त्रियों के प्रति कब बदलेगा नजरिया

जागरण मेहमान कोना
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Uma Sriramमहिलाएं न सिर्फ अपराध, बल्कि दहेज उत्पीड़न की भी शिकार हो रही हैं। दुनिया में एक तरफ जोर-शोर से अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है तो भारत जैसे तमाम देशों में आज भी महिलाओं की हालत बहुत खराब है। इसमें बहुत सुधार करने की तत्काल आवश्यकता है। महिलाओं की स्थिति पश्चिमी देशों में भी ठीक नहीं है। अरब देशों में तो स्थिति से बद से बदतर है। महिला उत्पीड़न अथवा उनके साथ भेदभाव आम बात है। चाहे शहरी महिलाएं हों या ग्रामीण, सभी के अधिकारों का हनन हो रहा है। भले ही हम चांद और मंगल पर पहुंच गए हैं और दुनिया में तरक्की जोरों पर हो रही हो, लेकिन जब महिला की बात आती है तो देश हो या विदेश लोगों की सोचने की मानसिकता एक जैसी है। कुछ देशों में महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार की कोई सीमा नहीं है। महिलाओं के साथ मार-पीट किया जाना, उनको भूखा रखना, उनको शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताडि़त करना, उन्हें सिर्फ अपनी काम भावना को शांत करने की मशीन समझना आम बात है। कन्या भ्रूणहत्या, दहेज का दानव, बाल विवाह आज महिलाओं के लिए अभिशाप बन गया है। महिलाओं के बीच आज घरेलू हिंसा जोरों पर हावी है।


अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस अब महिलाओं के अपने परिवार, समाज और समूचे देश के संपूर्ण आर्थिक विकास में प्रमुख भूमिका निभा रहा है, लेकिन इन सबके बावजूद महिलाओं की स्थिति में बदलाव नहीं हो रहा है। समाज में जो स्थान महिलाओं को मिलना चाहिए आज वह नहीं मिल रहा है। महिलाओं के संघर्ष की जड़ें सदियों पुरानी हैं। महिलाएं अपने समान अधिकार के लिए लड़ती आ रही हैं। प्राचीन एथेंस व स्पार्टा देशों के बीच जारी युद्ध को खत्म करने के लिए महिलाओं ने पुरुषों के खिलाफ यौन संबंध बंद करने का आंदोलन छेड़ दिया था। फ्रांस की क्रांति के दौरान पर्सियन औरतों ने स्वतंत्रता, समानता, बिरादरी के नारे के साथ महिलाओं के मताधिकार का मोर्चा निकाला था।


तलाक पर नए कानून के खतरे


प्राचीन भारतीय इतिहास में भी औरतों को हर तरह की समानता और आजादी प्राप्त थी, लेकिन बाद में विदेशी आक्रमणों और सत्ता की आंधी में उनकी आजादी छीन ली गई। महिला सशक्तिकरण की बातें जोरों पर होती है। बड़े- बड़े वादे और दावे किए जाते हैं, लेकिन सब कुछ धरा का धरा रह जाता है, क्योंकि हमारी मानसिकता में बदलाव नहीं हो पा रहा है। हमारी मानसिकता एवं महिलाओं के प्रति हमारी सोच में जब तक बदलाव नहीं होगा तब तक महिला सशक्तिकरण की बात कोरी साबित होगी। हमारे देश में महिला प्रताड़ना की बातें किसी से छिपी नहीं हैं। दहेज के लिए महिला को जलाना, उसकी हत्या कर देना आम बात है। ऐसा नहीं है कि महिलाओं के प्रति पुरुषों के ही नजरिये में बदलाव की जरूरत है, बल्कि महिला के प्रति महिला के नजरिये में भी बदलाव की आवश्यकता है। अगर ऐसा होता है तो महिलाओं द्वारा की जाने वाली आत्महत्या की घटनाओं में कमी आ सकती है। महिला एक मां, बेटी, बहन या अर्धागिनी के रूप में देखी जाती है। एक महिला जो मां के रूप में अपनी बेटी को बहुत चाहती है वही मां सास के रूप में अपनी बहू को प्यार नहीं करती है और उसे खरी खोटी सुनाती रहती है। इससे कलह की शुरुआत होती है। ऐसा नहीं है कि महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के लिए पुरुष ही जिम्मेदार हैं, बल्कि कई मायनों में महिला ही महिला की दुश्मन बनती है।


पूर्वी देशों की महिलाएं आज भी अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं। इस समय सबसे महत्वपूर्ण अरब देशों की महिलाओं द्वारा चल रहा आजादी का आंदोलन एक बड़ी घटना है। राष्ट्र की स्वतंत्रता से लेकर मानव अधिकारों की लड़ाई तक में अरब देश की महिलाएं आगे आ रही हैं। अरब महिलाएं शांति और सामाजिक विकास के साथ-साथ आजादी और मूलभूत अधिकारों को पूरी तरह से हासिल कर लेना चाहती हैं। पूरी दुनियां देशों में महिलाओं की तमाम तरक्की के बावजूद अभी भी महिलाओं को समान शिक्षा, समान वेतन देने और गरीबी से निजात पाने की लड़ाई जारी है। महिलाओं को मानव अधिकारों के तहत जब तक समानता के सारे अधिकार नहीं मिल जाते तब तक उन्हें अपना संघर्ष जारी रखना पड़ेगा। दुनियां की महिलाओं को एकजुट होकर पुरुषों को यह बताना होगा कि वे सिर्फ वासना शांत करने के लिए वस्तु नहीं हैं। हमारे देश के अलावा विदेशों में भी महिलाओं के विरुद्ध हो रहे अपराधों की रोकथाम के लिए मौजूदा कानून में बदलाव करने की जरूरत है। हमारे देश में भी राष्ट्रीय महिला आयोग जैसी ताकतवर संवैधानिक संस्था है जो राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं की सुरक्षा और उनके हितों की रक्षा कर रही है, लेकिन बावजूद इसके महिलाओं की स्थिति दिन प्रतिदिन खराब हो रही है। पूरे देश में महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण की बहस चल रही है।


विवाह कानून में अहम सुधार


लोकतंत्र की सफलता के लिए राजनैतिक क्षेत्रों में उच्च पदों पर महिलाओं की नुमाइंदगी एक बड़ी शर्त के रूप में देखी जा रही है। वर्तमान में महिलाओं और बच्चों के प्रति आर्थिक और सामाजिक विकृतियां बढ़ती जा रही हैं जो पुरुष प्रधान समाज की असफलता को दिखाता है। आज हमारे पास ऐसी महिलाएं हैं जो सत्ता के सर्वोच्च पदों पर विराजमान हैं। हमारे देश के शासन की बागडोर 11 सालों तक एक महिला के हाथ में रही है, पर इसके बावजूद हम आज भी संसद में महिला आरक्षण कानून को मंजूर कराने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। महिलाओं की हालत में सुधार के लिए हमारे समाज से दहेज के दानव को भी खत्म करना जरूरी है। यह दानव बुरी तरह से डराता है, गरीब लड़कियों के मां-बाप को भीख मांगकर, उधार लेकर और चोरी तक करके अपनी बेटियों की शादी करनी पड़ती है। यहां तक कि दहेज का दानव शादी के बाद भी उनका पीछा नहीं छोड़ता है। अधिकतर मामलों में शादीशुदा लड़कियों को मायके से और रुपये लाने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताडि़त किया जाता है। इसके बाद उन्हें अनचाही लड़की की समस्या का सामना करना पड़ता है। उन्हें अपने पैतृक संपत्ति में हक लेने से रोका जाता है। शहरों में भी यही समस्या है। यहां शारीरिक शोषण आदि के रूप में महिलाओं का उत्पीड़न किया जाता है। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर तमाम जागरूकता अभियानों के बावजूद उनकी अनदेखी की जाती है। इसमें बहुत सारे काम तो सिर्फ दिखावे के लिए होते हैं। जैसे कोईकानून बना देना या किसी कानून में सुधार कर देना। वैसे ये कानूनी सुधार भी प्राय: आधे-अधूरे और अस्पष्ट होते हैं। इससे कानूनों का खुलकर दुरुपयोग होता है, जिससे महिलाओं की जान पर बन आती है। जब तक इच्छाशक्ति को मजबूत नहीं किया जाएगा, चाहे कोई भी देश हो वहां महिलाओं पर अत्याचार, हिंसा और उनके प्रति उपेक्षा में नहीं आने वाली।


लेखिका उमा श्रीराम स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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