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बोफोर्स के जिन्न की वापसी

जागरण मेहमान कोना
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A Surya Prakashनए खुलासे के बाद बोफोर्स सौदे में दलाली का मामला कहीं अधिक मजबूती से उभरता देख रहे हैं ए. सूर्यप्रकाश


बोफोर्स तोप सौदा प्रकरण में स्वीडन के पूर्व पुलिस प्रमुख स्टेन लिंडस्ट्रोम के ताजा खुलासे से संप्रग सरकार, कांग्रेस पार्टी और नेहरू-गांधी परिवार की फिर फजीहत हो रही है। ये सभी पक्ष 25 साल पहले बोफोर्स सौदे में ली गई दलाली के आरोपियों को बचाने में दिन-रात जुटे रहे। लिंडस्ट्रोम द्वारा उठाए गए कुछ प्रमुख मुद्दे इस प्रकार हैं। इस बात के कोई साक्ष्य नहीं हैं कि राजीव गांधी ने घूस ली, किंतु इस मामले में भारत और स्वीडन में जो लीपापोती की गई उस सबको वह देखते रहे और रोकने के लिए कुछ नहीं किया। गांधी परिवार के करीबी मित्र अट्टावियो क्वात्रोची को घूस की रकम मिलने के पुख्ता सबूत हैं। बोफोर्स ने तोप सौदे में घूस की रकम उसकी कंपनी ए.ई. सर्विसेज के माध्यम से क्वात्रोची के खाते में हस्तांतरित की। क्वात्रोची को दी गई रकम राजनीतिक भुगतान थी। भारत और स्वीडन में क्वात्रोची से पूछताछ की किसी को इजाजत नहीं दी गई। बोफोर्स के अध्यक्ष मार्टिन अर्डबो इस तथ्य को लेकर सहमे हुए थे कि क्वात्रोची को किए गए भुगतान का सार्वजनिक तौर पर खुलासा हो सकता है। अर्डबो ने अपनी डायरी में लिखा था कि क्यू की पहचान कभी उजागर नहीं होनी चाहिए, क्योंकि उसकी आर के साथ निकटता है। कुछ भारतीय जांचकर्ता अमिताभ बच्चन को गलत ढंग से फंसाने के लिए लिंडस्ट्रोम पर दबाव डाल रहे थे और बोफोर्स मामले की जांच में भारतीय जांचकर्ताओं ने लीपापोती करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जहां तक कांग्रेस पार्टी का संबंध है लिंडस्ट्रोम के इस बयान का वक्त इससे खराब नहीं हो सकता था।


बोफोर्स का जिन्न: आखिर क्यूं करता है यह इतना परेशान


फिलहाल संप्रग राजनीतिक और प्रशासनिक दलदल में धंसा हुआ है और बजट सत्र का दूसरा चरण शुरू ही हुआ है। यह हास्यास्पद है कि कांग्रेस विपक्षी दलों और मीडिया से बोफोर्स मामले को तूल देने के लिए माफी मांगने के लिए कह रही है। इससे बड़ा विरोधाभास और कुछ नहीं हो सकता कि यह मांग तब की जा रही है जब दलाली के सारे तथ्य स्थापित हो चुके हैं और यहां तक कि क्वात्रोची के खाते में 73 लाख डॉलर की रकम जाने के प्रमाण भी हैं। बोफोर्स की कहानी 1980 में शुरू हुई जब सेना ने तोपों की खरीदारी के लिए दबाव बनाया। तोप की आपूर्ति की तीन प्रमुख कंपनियां थीं-फ्रांस की सोफ्मा, स्वीडन की एबी बोफोर्स और ऑस्टि्रया की वोएस्ट अल्पाइन। मूल्यांकन प्रक्रिया के दौरान सोफ्मा सबसे आगे रही, किंतु निर्णायक चरण में बोफोर्स ने सोफ्मा को पछाड़ दिया। सीबीआइ द्वारा स्वीडन और स्विट्जरलैंड से जुटाए गई सामग्री से पुष्टि हो जाती है कि बोफोर्स की सफलता में क्वात्रोची का बड़ा हाथ था। 1985 में बोफोर्स ने ए.ई. सर्विसेज के साथ साथ समझौता कि अगर 31 मार्च, 1986 तक बोफोर्स तोप आपूर्ति का करार हो जाता है तो कंपनी को तीन प्रतिशत कमीशन मिलेगा। हैरत की बात यह है कि राजीव गांधी सरकार ने 24 मार्च, 1986 को बोफोर्स सौदे को हरी झंडी दे दी।


दो माह बाद सरकार ने करार की कुल राशि के 20 फीसदी का भुगतान कर दिया और बोफोर्स ने 73.43 लाख डॉलर ए.ई. सर्विसेज के स्विट्जरलैंड स्थित नोर्डफाइनेंज बैंक के खाते में हस्तांतरित कर दिए। बाद में यह राशि क्वात्रोची और उसकी पत्नी की दूसरी फर्म कोलबार इंवेस्टमेंट्स में हस्तांतरित कर दी गई। एक इटालियन क्वात्रोची ने करार को अंतिम तिथि से पहले ही कराने में सफलता कैसे हासिल की और इस असाधारण काम में उसे किसने सहयोग दिया? ये सवाल अप्रैल, 1987 में स्वीडिश रेडियो के इस खुलासे के बाद से मथ रहे हैं कि भारत से सौदा हासिल करने के लिए बोफोर्स ने दलाली दी थी। इसके पश्चात, नौवें दशक के मध्य में सीबीआइ स्विट्जरलैंड से कुछ दस्तावेज लेकर आई जिनसे पुष्टि होती थी कि बोफोर्स ने क्वात्रोची को 73 लाख डॉलर की राशि दी थी। जब 2004 में संप्रग सरकार सत्ता में आई तो मनमोहन सिंह सरकार ने सुनियोजित ढंग से क्वात्रोची को बरी करने के उपाय तलाशने शुरू कर दिए। तत्कालीन कानून मंत्री एचआर भारद्वाज ने लीपापोती ऑपरेशन की निगरानी की। क्वात्रोची के खिलाफ इंटरपोल नोटिस जारी होने के बावजूद अजर्ेंटीना में उसकी गिरफ्तारी के बाद भारद्वाज ने सुनिश्चित किया कि उसका भारत में प्रत्यारोपण न हो सके। इसके बाद मनमोहन सिंह सरकार ने नेहरू-गांधी परिवार और क्वात्रोची की दो अन्य असाधारण सेवाएं कीं। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के अनुरोध पर ब्रिटिश सरकार ने क्वात्रोची के इंग्लैंड स्थित खाते को सील कर दिया था। संप्रग सरकार ने एक भारतीय कानून अधिकारी को गोपनीय रूप से इंग्लैंड भेजा, जिसने ब्रिटिश सरकार को सूचित किया कि क्वात्रोची के खाते से सील हटाने पर भारत सरकार को कोई आपत्ति नहीं है।


अनुरोध के तुरंत बाद क्वात्रोची के खाते से रोक हटा दी गई और उसने तुरंत खाते से 73 लाख डॉलर निकालकर दूसरे देश के दूसरे बैंक खाते में हस्तांतरित कर दिए। इसके बाद सरकार ने नेहरू-गांधी परिवार की सेवा करते हुए सीबीआइ के माध्यम से अदालत में क्वात्रोची के खिलाफ आपराधिक मामलों को खत्म करा दिया। लिंडस्ट्रोम के खुलासे पर हमारी जांच एजेंसी, हमारी न्याय व्यवस्था और कांग्रेस के नेताओं को शर्मिदा होना चाहिए। पिछले 25 सालों से देश एक सरल सवाल का जवाब मांग रहा है कि जब बोफोर्स ने सौदा भारत के साथ किया था तो उसने गांधी परिवार के मित्र क्वात्रोची को 73 लाख डॉलर की राशि का भुगतान क्यों किया? मनमोहन सरकार ने इंग्लैंड की सरकार को क्वात्रोची के बैंक खाते पर लगी रोक हटाने को क्यों कहा, ताकि वह लूट की रकम खाते से निकाल सके? क्वात्रोची को रकम मिलने की पुष्टि होने के बावजूद मनमोहन सिंह सरकार ने सीबीआइ से उसके खिलाफ मामले वापस लेने को क्यों कहा? इससे एक और सवाल उठता है-क्या कभी बोफोर्स का भूत शांत हो सकेगा? इसका दो टूक उत्तर है-नहीं।


यह भूत बार-बार नेहरू-गांधी परिवार को सताने के लिए आता रहेगा। इस मामले को खत्म करने की तमाम कोशिशों के बावजूद पिछले साल आयकर अपील ट्रिब्यूनल ने कहा कि बोफोर्स ने क्वात्रोची को कमीशन दिया था। इस प्रकार किसी न किसी कारण से यह मामला बार-बार खुलता रहेगा। 1970 में इंदिरा गांधी ने भारत को अस्थिर और कमजोर करने वाले विदेशी हाथ के बारे में आगाह किया था। अगर हम राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा करना चाहते हैं तो बोफोर्स घोटाले की 25वीं वर्षगांठ पर इंदिरा गांधी की विदेशी हाथ की चेतावनी पर गौर फरमाना होगा।


लेखक ए. सूर्यप्रकाश वरिष्ठ स्तंभकार हैं


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