Menu
blogid : 5736 postid : 5383

शिक्षा का अधिकार

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

सामाजिक रूप से कमजोर वर्गो को निजी स्कूलों में प्रवेश दिए जाने के मामलों में 25 प्रतिशत आरक्षण के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह निजी स्कूलों में इसे लागू करवाए। इस पहल को आरक्षण के बजाय 25 प्रतिशत समावेशी सीटें या 25 प्रतिशत अवसर या राज्य संचालित सीटें कहा जा सकता है। एक अनुमान है कि इससे पहले वर्ष में ही 25 से 70 लाख गरीब बच्चों को लाभ मिलेगा। बाद के आठ वषों में यह आंकड़ा बढ़कर दोगुना हो जाएगा। जाहिर है कि इससे गरीब छात्रों की एक बड़ी संख्या का भविष्य दांव पर लगा हुआ है। पिछले दो वर्षो में इस प्रावधान पर काफी चर्चाएं हुई हैं। इनमें एक चर्चा यह रही कि केंद्र सरकार भुगतान के लिए राज्य सरकारों पर निर्भर रहने की बजाय इन 25 प्रतिशत अवसर सीटों के लिए संबंधित स्कूलों को सीधे भुगतान करे, क्योंकि राज्य सरकारों का तर्क है कि उन्हें सर्वशिक्षा अभियान के लिए केंद्र से मिल रही आर्थिक मदद में निजी स्कूलों को भुगतान का लागत शामिल नहीं है। इस लागत को सर्वशिक्षा अभियान के बजट में शामिल करने के बजाय अधिक सुविधाजनक यह होगा कि वह सीधे-सीधे यह जिम्मेदारी अपने ऊपर ले। कितनी राशि अदा की जाए इसे संबंधित राज्य सरकारें खुद तय करें। केंद्र सरकार को भी चाहिए कि हर वर्ष अदायगी की रकम को समायोजित करने के लिए एकसमान मापदंड अपनाए।


राशि गणना के संदर्भ में अलग-अलग राज्यों में शिक्षा अधिकार कानून के तहत बने नियम भी अलग-अलग हैं। कुछ राज्यों में दो वर्ष में खर्च की समीक्षा करने की बात कही गई है और भुगतान की रकम की पुनर्गणना की बात कही गई है। जबकि अन्य राज्यों का प्रस्ताव है कि भविष्य के वर्षो के लिए पहले वर्ष की खर्च की राशि को महंगाई दर के साथ समायोजित किया जाए। केंद्र को चाहिए कि वह भुगतान प्रबंधन के लिए विशेष रूप से बने स्वतंत्र संगठनों का इस्तेमाल करे जिसे भारत समावेशी शिक्षा कोष कहा जा सकता है। इसमें केंद्र सरकार तो योगदान देगी ही कंपनियों, फाउंडेशनों और व्यक्तियों से भी धन जुटाए जा सकते हैं। इस गैर सरकारी कोष का उपयोग सरकारी स्कूलों की प्रति व्यक्ति लागत और निजी स्कूलों की फीस के बीच के अंतराल के आधार पर हो सकता है। दूसरी बात यह है कि केंद्र को प्रतिपूर्ति प्रबंधन के लिए स्वतंत्र रूप से एक ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिसे समावेशी शिक्षा फंड कहा जा सकता है। केंद्र सरकार अपना योगदान देने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस काम के लिए वह निगमों, संस्थाओं और व्यक्तियों से अतिरिक्त पैसा जुटाए। इस गैर सरकारी धन का इस्तेमाल सरकारी स्कूलों में आने वाली प्रति छात्र वास्तविक लागत और निजी स्कूलों की फीस के बीच की खाई पाटने के लिए की जा सकती है। निजी स्कूल इस खाई को पाटने और अपने लिए धन जुटाने के लिए दानराशि स्वीकार सकते हैं, संगीत समारोह, सांस्कृतिक मेलों और अन्य वार्षिक कार्यक्रमों का आयोजन कर सकते हैं। इसके अलावा साथ में उन्हें सरकारी निधि भी मिलती रहेगी। गरीब वर्ग के 25 प्रतिशत छात्रों को शिक्षा उपलब्ध कराने की इस योजना पर बेहतर तरीके से अमल करने के लिए स्कूलों को पुरस्कार भी दिए जा सकते हैं। स्कूलों को प्रोत्साहित करने के लिए कारपोरेट स्तर पर भी कई कदम उठाए जा सकते हैं। प्रतिपूर्ति की राशि पूरी तरह और सही समय पर सुनिश्चित किया जाना आवश्यक होगा।


स्कूलों को आश्वस्त करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा अपना योगदान वार्षिक केंद्रीय शिक्षा बजट में शामिल करके निर्धारित राशि को पहली अप्रैल को ही स्कूलों के खातों में डाल सकती है। अगस्त तक वर्तमान शैक्षिक वर्ष के लिए राशि का समायोजन कर दिया जाए और पिछले वर्ष अदा की गई राशि को इसका आधार माना जाए। इसके अलावा 25 प्रतिशत गरीब बच्चों की पहचान करने और उनको चुनने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर छोड़ दी जाए। योग्य उम्मीदवारों का सत्यापन राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की राज्य शाखाओं और उससे जुड़े गैर-सरकारी संगठनों को करना चाहिए।


लेखक पार्थ जे शाह स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


Read Hindi News


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh