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भ्रूण हत्या का कलंक

जागरण मेहमान कोना
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पिछले सप्ताह आमिर खान के टीवी शो सत्यमेव जयते के प्रसारण के बाद हाशिये पर पड़ा कन्या भ्रूण हत्या का मुद्दा सुर्खियों में आ गया। अफसोस की बात है कि इतनी गंभीर समस्या पर सरकार अभी तक ठोस व कारगर कदम नहीं उठा पाई और समाज भी आंखें मूंदे रहा। सिर्फ बेटे की चाह में अनगिनत मांओं की कोख उजाडी जाती रही। लेकिन सत्यमेव जयते के प्रयास से इस मुद्दे पर पूरे देश में हलचल होने लगी है। सरकार और न्यायपालिका इस जघन्य अपराध पर सख्त होने को मजबूर हो गई हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा राज्य में हर हाल में कन्या भ्रूण हत्या रोकने के निर्देश देना, इलाहाबाद में चिकित्सा विभाग की टीम द्वारा स्टिंग ऑपरेशन करके कन्या भ्रूण हत्या करने वाले नर्सिंग होम पर छापेमारी करना, दोषी डॉक्टर को पकड़ना और पूरे देश में राजनेताओं सहित समाज के प्रबुद्ध वर्ग का आगे आना इसकी प्रतिक्रिया के साक्षी हैं। पिछले दिनों जयपुर हाईकोर्ट ने भ्रूण लिंग परीक्षण और कन्या भ्रूण हत्या पर सख्ती दिखाते हुए जिला न्यायालयों को तीन माह में आरोप तय करने और पुलिस को लंबित मामलों में दो माह में चार्जशीट पेश करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही दोषी डॉक्टरों और जांच केंद्रों पर कार्रवाई करने को कहा है। चलिए सुखद स्थिति है कि राजस्थान में कन्या भ्रूण हत्या की रोकथाम के लिए कड़े कदम उठाए गए हैं, लेकिन इस दिशा में सार्थक परिणाम तब तक हासिल नहीं होगा, जब तक सभी सरकारें एकजुट होकर भ्रूण हत्या पर अंकुश न लगाएं।

 

 सत्यमेव जयते – वास्तविक संवेदनशीलता या बाजारवाद की पराकाष्ठा?

 

पिछले कुछ दशकों से गर्भ में लिंग जांच और कन्या भ्रूण हत्या का चलन तेजी से बढ़ा है। अनुमान है कि पिछले दो दशकों में भारत में करीब सवा करोड़ बच्चियों की भ्रूण हत्या की गई है। कन्या भ्रूण हत्या का सिलसिला तब शुरू हुआ जब देश में अल्ट्रासाउंड मशीन का उपयोग प्रारंभ हुआ। दरअसल इसका अविष्कार गर्भ में पल रहे बच्चे तथा अन्य लोगों के पेट के रोगों की पहचान कर उसका इलाज करने की नीयत से किया गया था। किंतु इस मशीन का सदुपयोग से अधिक लिंग परीक्षण के रूप में दुरुपयोग होने लगा। लिंग अनुपात गड़बड़ाने के खतरनाक नतीजे आ रहे हैं। जितनी संख्या में कन्याओं की भ्रूण हत्या की जा रही है, उतनी ही संख्या अविवाहित युवकों की बढ़ रही है। इस कारण महिलाओं के प्रति अपराधों में भारी वृद्धि हो रही है। भारत सरकार ने 17 साल पहले ही एक कानून पारित किया था, जिसके मुताबिक पैदा होने से पहले बच्चे का लिंग मालूम करना गैरकानूनी है।

 

लेकिन राष्ट्रीय जनसंख्या स्थिरता कोष की पूर्व कार्यकारी निदेशक शैलजा चंद्रा के मुताबिक इस कानून को लागू करना बेहद मुश्किल है। चंद्रा कहती हैं कि कानून को लागू करने वाले जिला स्वास्थ्य अधिकारी के लिए लिंग जांच करने वाले डॉक्टर पर नकेल कसना बहुत मुश्किल है, क्योंकि डॉक्टरों के पास नवीनतम तकनीक उपलब्ध है। लोगों में पुत्र की बढ़ती लालसा और खतरनाक गति से लगातार घटता स्त्री-पुरुष अनुपात समाजशास्ति्रयों, जनसंख्या विशेषज्ञों और योजनाकारों के लिए चिंता का विषय बन गया है। यूनिसेफ के अनुसार दुनिया से दस प्रतिशत महिलाएं लुप्त हो चुकी हैं। स्ति्रयों के इस विलोपन के पीछे कन्या भ्रूण हत्या ही मुख्य कारण है। भ्रूण हत्या का कारण है कि हमारे समाज में व्याप्त रूढि़वादिता और संकीर्ण सोच। लोग बेटा-बेटी में भेद करते हैं। प्रचलित रीति-रिवाजों और सामाजिक व्यवस्था के कारण भी बेटा और बेटी के प्रति लोगों की सोच विकृत हुई है। ज्यादातर मां-बाप सोचते हैं कि बेटा तो जीवन पर्यंत उनके साथ रहेगा और बुढ़ापे में उनका सहारा बनेगा। समाज में वंश परंपरा का पोषक लड़कों को ही माना जाता है। इस पुत्र कामना के चलते ही लोग अपने घर में बेटी के जन्म की कामना नहीं करते और उसके जन्म लेने पर शोक मनाते हैं।

 

 लेखिका प्रियंका द्विवेदी स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

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