Menu
blogid : 5736 postid : 5633

पढ़े-लिखों की नासमझी

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

Pradeep Singhएक समाज के तौर पर हम किधर जा रहे हैं। देश में अशिक्षा बड़ी समस्या है, लेकिन शिक्षित लोग समस्या बनते जा रहे हैं। जनतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी का मामला हो या भ्रूण हत्या, दहेज हत्या जैसी सामाजिक कुरीतियां हों या विरोधी विचारों के प्रति सहिष्णुता, पढ़े-लिखे लोगों का व्यवहार ज्यादा चिंतित करने वाला है। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि इससे कोई चिंतित नहीं है। ऐसे मुद्दों पर जिन्हें मुखर होना चाहिए वे चुप्पी साधे रहते हैं और जिन्हें चुप रहना चाहिए वे संसद से सड़क तक मोर्चा खोले हुए हैं। पहले बात करते हैं सहारनपुर के डीआइजी सतीश कुमार माथुर की। प्रबुद्ध नगर जिले के मोहम्मद शौकीन उनके पास फरियाद लेकर आए कि दो महीने पहले उनकी नाबालिग बेटी को दो युवक उनके घर से उठा ले गए। इन दोनों की आपराधिक पृष्ठभूमि है। बेटी की आबरू और जान दोनों खतरे में हैं। डीआइजी साहब का कहना था कि उनकी बहन के साथ ऐसा हुआ होता तो वह या तो खुद को गोली मार लेते या उसे गोली मार देते। यह कानून के राज के रखवाले का बयान है। देश में इस बात पर चर्चा चल रही है कि कानून में कैसे बदलाव किए जाएं ताकि ऑनर किलिंग रोकी जा सके। ऐसे समय में भारतीय पुलिस सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी का बयान खतरे की घंटी है।


उत्तर प्रदेश के ही एक और जिले के पुलिस अधीक्षक ने ऐसी ही फरियाद लेकर आए एक और व्यक्ति से कहा कि पुलिस अपराधियों के पीछे भागे या लड़कियों के पीछे? फिल्म अभिनेता आमिर खान के कार्यक्रम सत्यमेव जयते में एक महिला ने बताया कि किस तरह उसकी दो बेटियों की पहले भ्रूण हत्या और फिर जन्म के बाद हत्या की कोशिश हुई। ऐसा करने वाले उसके पति डॉक्टर हैं और सास प्राध्यापक। ये घटनाएं हमारे शिक्षित समाज की असलियत का आईना हैं। यह मामला पुरुष या महिला का नहीं है। यह सोच का, मानसिकता का मामला है। ऐसी सोच रखने वाले का पुरुष होना जरूरी नहीं है। वह महिला भी हो सकती है। ऐसी महिला स्त्री होते हुए भी पुरुष की मानसिकता रखती है। वह अपने ही परिवार की महिला पर अत्याचार के लिए पुरुष के साथ खड़ी है। उसे लड़की नहीं लड़का चाहिए। उसके लिए भ्रूण हत्या को वह अपना स्वाभाविक अधिकार मानती है। दुख की बात यह है कि पुरुष मानसिकता वाली महिलाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। कोई महिला यौन शोषण या अत्याचार की शिकायत लेकर पहुंचती है तो केवल पुलिस ही नहीं दूसरे लोग भी पहले यह सवाल करते हैं कि महिला ने कपड़े कैसे पहन रखे हैं या फिर उसका चरित्र कैसा है।


पटना की सड़क पर आधी रात के बाद अर्धनग्न अवस्था में भागती महिला का दृश्य पूरे देश ने देखा। ऐसा क्यों हुआ और इसके लिए जिम्मेदार कौन था इससे ज्यादा चर्चा और उत्सुकता इस बात की थी कि दरअसल उस महिला का व्यवसाय क्या है? वह इतनी रात को होटल के बार में क्यों थी? और फिर चर्चा इस बात की कि उसका चरित्र कैसा है। कुल मिलाकर धारणा यह है कि महिला का पहनावा और चरित्र देखकर तय होगा कि उसे सम्मान और सुरक्षा से जीने का हक है या नहीं। ऐसी हर घटना के बाद एक रस्म अदायगी होती है। जांच और सजा का नाटक खेला जाता है। सहारनपुर की घटना पर राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने डीआइजी का तबादला कर दिया। घर से भाग जाने वाली एक लड़की के मामले में इतने आला अफसर को भला इससे ज्यादा क्या सजा मिलनी चाहिए? सहारनपुर के डीआइजी का बयान हमारी प्रशासनिक सेवाओं के प्रशिक्षण पर भी सवाल उठाता है। क्या हमने ऐसी ही मानसिकता वाले लोगों को कानून व्यवस्था और प्रशासन की जिम्मेदारी सौंप रखी है। कोई वकील या डॉक्टर कानून सम्मत आचरण न करे तो उसका लाइसेंस रद हो सकता है। क्या ऐसे आइपीएस अधिकारी को भारतीय पुलिस सेवा से हटाने पर विचार नहीं होना चाहिए। एसके माथुर एक व्यक्ति या भारतीय पुलिस सेवा का नहीं एक विचार का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसी सोच वाले एसके माथुर अकेले नहीं हैं। वह कैमरे पर दिख गए इसलिए फंस गए। उनके साथी अफसरों ने उनकी निंदा नहीं की है, बल्कि बचाव ही किया है। अपने अधिकारों और सुविधाओं के प्रति सजग रहने वाली आइपीएस एसोसिएशन ने इस मुद्दे को चर्चा के लायक भी नहीं माना है।


सत्ता में बैठे लोग इन सवालों पर कुछ नहीं करने वाले। सत्ता सुविधा और यथास्थिति की भाषा समझती है। पर सवाल है कि देश का बुद्धिजीवी क्यों मौन है? एक कार्टून पर पूरी संसद विरोध में खड़ी हो जाती है। यह सवाल किसी एक पार्टी या नेता का नहीं है। पूरी राजनीतिक जमात में सच के साथ खड़े होने वालों का टोटा पड़ गया है। सबको अपने वोट बैंक की चिंता है। होड़ लगी है कौन ज्यादा असहिष्णु हो सकता है। जाति और धर्म के आइकान ऐसे लोगों का एकमात्र संबल रह गए हैं जिन्हें अपने पर भरोसा नहीं है। उन्हें लगता है कि अकेले न पड़ जाएं इसलिए सहारा चाहिए। किसी को अंबेडकर का किसी को राम का और किसी को अल्लाह का। खुद पर आने वाले किसी संभावित या काल्पनिक खतरे को धर्म या जाति पर खतरा बताकर अपनी राजनीति चमकाओ। गर्भ में पलने वाली कन्या या सरे बाजार बेआबरू होने वाली स्त्री से कोई जाति या धर्म खतरे में नहीं पड़ता और इसलिए वोट बैंक पर कोई खतरा नहीं है। राजनीतिक जमात के मौन का कारण तो वोट बैंक है पर देश का बुद्धजीवी किसलिए चुप है? कौन सा स्वार्थ उसे सच के साथ खड़ा होने से रोक रहा है?


इस आलेख के लेखक प्रदीप सिंह हैं


Read Hindi News


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh