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आइपीएल खेल भद्रजनों के क्रिकेट को एक अलग पहचान देने में भले ही सफल रहा हो, लेकिन इसमें होने वाली अभद्रता को लेकर भी अब न्यूजरूम से लेकर सड़क तक आम और खास लोगों की दिलचस्पी बढ़ रही है। इस दिलचस्पी की वजह क्रिकेट से कहीं ज्यादा अन्य दूसरी गतिविधियां हैं, जिनमें मैच के दौरान होने वाले विवादों से लेकर मैच के बाद होने वाली रंगीन पार्टियां तक शुमार की जा सकती हैं। मुंबई में वानखेड़े स्टेडियम में शाहरुख प्रकरण भी ऐसा ही मामला है। पूरे मामले को लेकर मीडिया में चर्चा छिड़ी हुई है कि वहां जो कुछ हुआ उसकी वास्तविकता क्या है और दोषी कौन है? फिलहाल स्टेडियम में हुए झगड़े और गाली-गलौज को लेकर महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन ने फिल्म अभिनेता और कोलकाता नाइट राइडर के मालिक शाहरुख खान पर पांच सालों का प्रतिबंध लगा दिया है, जिस वजह से अब वह वहां घरेलू अथवा अंतरराष्ट्रीय मैचों के दौरान उपस्थित नहीं रह सकते, लेकिन यहां सवाल यह भी है कि अनुशासनहीनता का यह कोई पहला मामला नहीं है। इसके पहले भी प्रीति जिंटा के खिलाफ कुछ ऐसे ही आरोप लगे थे। मैं यहां यह नहीं कह रहा कि शाहरुख खान पर प्रतिबंध लगाया जाए अथवा नहीं, क्योंकि यह एक अलग विषय है। यहां सवाल शाहरुख से कहीं ज्यादा क्रिकेट के खेल में आ रही गिरावट और अनुशासनहीनता के बढ़ रहे मामलों का है।
क्रिकेट खेल में खिलाडि़यों से कहीं ज्यादा गैर-खिलाड़ी पृष्ठभूमि वाले लोगों का महत्व और प्रभाव बढ़ रहा है। यही कारण है कि क्रिकेट का खेल अब कई तरह की बुराइयों का भी शिकार हो रहा है। इन बुराइयों में आइपीएल खेलों के दौरान मैच फिक्सिंग और स्पॉट फिक्सिंग जैसे आरोप भी सुनने में आ रहे हैं। हालांकि इसकी वास्तविकता को लेकर कोई पुख्ता प्रमाण शायद ही किसी के पास हो, लेकिन यदि ऐसा कुछ है भी तो यह किसी के लिए भी हितकर नहीं। दर्शक बड़ी संख्या में अधिक पैसा देकर स्टेडियम में इसलिए नहीं पहुंचते कि वह मैच पहले से फिक्स हो। जो भी हो, लेकिन इतना तो तय है कि आइपीएल मैचों को जिस उद्देश्य से शुरू किया गया था उसमें कहीं कोई भटकाव मुझे नजर नहीं आ रहा। दिनोंदिन इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है और ज्यादा से ज्यादा खिलाडि़यों को इसमें बेहतर खेल दिखाने का मौका भी मिल रहा है। इससे युवा खिलाडि़यों की एक नई फौज तैयार हो रही है जिनका परीक्षण और कहीं शायद ही हो पाता। जहां तक क्रि केट में ग्लैमर की बात है तो यह अवश्य ही एक नई परिघटना है, जिसमें चीयरलीडर्स के हाव-भाव और वेशभूषा को लेकर काफी कुछ कहा और लिखा जा चुका है, लेकिन इसे मनोरंजन की दृष्टि तक ही सीमित रखना बेहतर होगा।
नए दिशानिर्देशों के बाद इसमें काफी कुछ बदलाव भी किया गया है जो निश्चित ही स्वागतयोग्य है। परंतु जहां तक देर रात तक चलने वाली रंगीन पार्टियों और रेव पार्टियों की बात है तो यह चिंताजनक है। इससे कुछ युवा क्रि केट खिलाडि़यों पर प्रभाव पड़ रहा है और उनके खेल से इतर बातों में भटकने का खतरा भी है। हालांकि ऐसी पार्टियों के आयोजन को रोकने के आदेश बहुत पहले दिए जा चुके हैं, लेकिन ये अभी भी जारी हैं। यदि इन पार्टियों पर पूरी तरह रोक नहीं लगाई जाती तो कोई आश्चर्य नहीं कि किसी दिन और भी बड़ा विवाद अथवा घटना सुनने को मिले। कुछ पार्टियों में मारपीट और अश्लील हरकतों की शिकायतें भी सुनने को मिल चुकी हैं इसलिए बेहतर यही होगा कि इन पर पूरी तरह से रोक लगाने के पुख्ता इंतजाम किए जाएं। इसमें सबसे बड़ी भूमिका बीसीसीआइ की है, क्योंकि कोई भी बड़ी वारदात होने पर पूरे आइपीएल खेलों पर प्रश्नचिह्न लग जाएगा, जो किसी के भी हित में नहीं होगा।
यदि आइपीएल मैचों को विवादों से बचाया जा सके तो यह न केवल क्रिकेट, बल्कि क्रिकेट खिलाडि़यों और क्रिकेट प्रेमियों के भी हित में होगा। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि क्रिकेट खेल के नए प्रारूप में ग्लैमर के जुड़ने से इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है और इसमें किसी तरह की बुराई भी मैं नहीं देखता। जो लोग क्रिकेट के नए प्रारूप की आलोचना कर रहे हैं उन्हें समझना चाहिए कि क्रिकेट एक खेल है जिसे दर्शकों के मनोरंजन के लिए खेला जाता है और यदि दर्शकों को क्रिकेट का यह प्रारूप पसंद आ रहा है तो इस पर सवाल खड़े करने का अथवा बंद किए जाने की बात कहना किसी भी तरह तर्कसंगत नहीं माना जा सकता। टेस्ट मैचों का अपना महत्व है तो एकदिवसीय मैचों का अलग आनंद। इसी तरह ट्वेंटी-20 का भी अपना ही मजा है। इसलिए खेल के इस प्रारूप पर सवाल नहीं खड़े किए जा सकते। हां, इतना अवश्य है कि इस बारे में संबंधित राज्यों की क्रिकेट एसोसिएशन और बीसीसीआइ को मिल-बैठकर कोई ऐसा रास्ता खोजने की कोशिश करना चाहिए ताकि इस तरह के विवादों को रोका जा सके।
मैच के दौरान उत्तेजना स्वाभाविक है। कई बार खिलाडि़यों के बीच भी कहा-सुनी हो जाती है, लेकिन इस पर मीडिया को अधिक ध्यान नहीं देना चाहिए। किसी बात को तूल देना अलग बात है और उस मुद्दे को उठाना अलग। मुझे नहीं लगता शाहरुख मामले को भी इतना अधिक तूल देना चाहिए जितना कि दिया जा रहा है। क्रिकेट को भद्रजनों का खेल बनाए रखने के लिए न केवल खिलाडि़यों, क्रिकेट प्रेमियों और प्रशंसकों का सहयोग चाहिए, बल्कि बदले प्रारूप में फ्रेंचाइजी मालिकों का भी अपेक्षित सहयोग जरूरी है। इसके लिए अनुशासन और संयम सबसे महत्वपूर्ण मंत्र है जिसका पालन हर एक के लिए जरूरी होना चाहिए, फिर वह चाहे कोई आम हो अथवा खास।
लेखक मदन लाल पूर्व क्रिकेटर हैं
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