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सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह द्वारा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखे गए पत्र का असर अब दिखाई देने लगा है और रक्षा मंत्रालय सेना के आधुनिकीकरण की तैयारी में लग गया है। 11 मई को रक्षा मंत्रालय ने अमेरिका से लगभग 3000 करोड़ रुपये की लागत से 145 अल्ट्रा लाइट हॉवित्जर तोपें खरीदने का फैसला किया है। रक्षामंत्री एके एंटनी की अध्यक्षता में हुई सैन्य अधिग्रहण परिशद (डीएसी) की बैठक में विदेशी सैन्य खरीद (एफएमएस) मार्ग से 145 एम-777 हॉवित्जर तोपों तथा अन्य कई रक्षा उपकरणों की खरीद को हरी झंडी देने का निर्णय लिया गया। इससे पहले इस तरह की तोपों को खरीदने की सिफारिश रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के प्रमुख वीके सारस्वत की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति ने की थी। सैन्य अधिग्रहण परिषद की इस स्वीकृति के बाद अब इसे रक्षा मंत्रालय के समक्ष मंजूरी के लिए भेजा जाएगा और जब वहां से मंजूरी मिल जाएगी तब इसे संसद की सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीएस) के सामने अंतिम मंजूरी के लिए रखा जाएगा। इस समिति से मंजूरी हासिल होने के बाद ये तोपें सेना को प्राप्त होंगी। इस तरह करीब 26 वषरें के बाद सेना हॉवित्जर तोपों को प्राप्त करेगी।
सन 1986 में बोफोर्स तोप सौदे के विवाद के बाद सेना के तोपखाना भंडार को किसी प्रकार की नई तोपें प्राप्त नहीं हुई हैं। उस समय बोफोर्स तोप सौदे में दलाली को लेकर बड़ा विवाद हुआ था। इस विलंब से सेना की तैयारियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था और भारतीय सेना का तोपखाना पूरी दनिया में इस्तेमाल हो रही आधुनिकतम तोपों से वंचित था। अब सेना 1970 के दशक वाली तोपों को हटाकर आधुनिक तकनीक वाली तोपों से लैस हो जाएगी। सेना पिछले लगभग 16 वषरें से 155 मिलीमीटर और 52 कैलिबर की खींच कर ले जाई जा सकने वाली 400 तोपें, 145 बेहद हल्की तोपें तथा पहियों वाली खुद चलने में सक्षम 140 तोपें खरीदने की कोशिश कर रही थी। अब इनके प्राप्त होने की उम्मीद बढ़ गई है। यह सौदा दोनों देशों के बीच विदेशी सैन्य विक्रय के जरिए हुआ है। यह खरीद प्रक्रिया पिछले काफी दिनों से चल रही थी। अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा कांग्रेस को 145 एम-777 हॉवित्जर तोपों सहित अन्य हथियारों को बेचने संबंधी अधिसूचना वर्ष 2011 में दी गई थी।
एम-777 तोपें अमेरिका के बीएई सिस्टम द्वारा निर्मित हैं और भारत की आवश्यकताओं के हिसाब से भरोसेमंद एवं अत्यन्त उपयोगी हैं। इन तोपों को सरलता के साथ हवाई जहाज के द्वारा इधर-उधर लाया व ले जाया जा सकता है। इस कारण इन्हें पर्वतीय क्षेत्रों में तेजी से तैनात करने के प्रयोग में लाया जा सकेगा। ये काफी अत्याधुनिक किस्म की तोपें हैं। भारतीय सेना की योजना के मुताबिक इन हॉवित्जर तोपों को लद्दाख तथा अरुणाचल प्रदेश के अधिक उंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात किया जाएगा। इनकी तैनाती के बाद ऊंचाई पर स्थित चौकियां युद्ध के लिए सक्षम हो जाएंगी। उत्तरी मोर्चे पर यही चौकियां युद्ध का मुख्य मैदान होंगी। इस तरह भारत की तोपखाना ताकत अत्यन्त बढ़ जाएगी।
सैन्य अधिग्रहण परिषद की इस मंजूरी के साथ ही 7000 करोड़ रुपये से अधिक की खरीद परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान कर दी गई है। इसमें एल-70 हवाई रक्षा तोपों के लिए 65 से अधिक की संख्या में राडारों की खरीद की मंजूरी भी है। इस सौदे में लगभग 3000 करोड़ रुपये की लागत आने की उम्मीद है। अन्य जिन परियोजनाओं को हरी झंडी प्रदान की गई है उनमें 300 करोड़ रुपये से अधिक की लागत के सिमुलेटर खरीदे जाएंगे जिनका उपयोग टी-90 टैंकों में किया जाएगा। इसी तरह 90 करोड़ रुपये की लागत से 300 पानी वाले टैंकरों की खरीद भी शामिल है।
लेखक डॉ. लक्ष्मीशंकर यादव सैन्य विज्ञान विषय के प्राध्यापक हैं
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