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मनमानी की मानसिकता

जागरण मेहमान कोना
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A Surya Prakashइस बार आइपीएल अनचाही घटनाओं, स्पॉट फिक्सिंग के आरोपों और घोटालों का तमाशा बनकर रह गया है। वानखेडे स्टेडियम में शाहरुख खान की मनमानी, मैचों में स्पॉट फिक्सिंग के आरोप और कुछ टीम मालिकों और खिलाडि़यों के आपत्तिजनक व्यवहार से आइपीएल की साख पर बट्टा लग चुका है और अब यह मांग उठने लगी है कि इस टूर्नामेंट को हमेशा के लिए बंद कर दिया जाए। इसमें संदेह नहीं कि आइपीएल में अनियमितताओं का कैंसर फैल चुका है। आपराधिक कृत्यों से लेकर कर चोरी तथा विदेशी विनिमय कानून के उल्लंघन तक के अनेक मामले उजागर हो रहे हैं। अफसोस की बात यह है कि इस पूरे घटनाक्रम के बीच संप्रग सरकार इस तरह का व्यवहार कर रही है जैसे ये उद्योगपति, खिलाड़ी और फिल्म स्टार कानून से ऊपर हैं। खेलमंत्री अजय माकन और क्रिकेटर से राजनेता बने कीर्ति आजाद ही ऐसे राजनेता हैं, जो इस गैरकानूनी मकड़जाल को काटने का प्रयास कर रहे हैं। आयोजकों में महाराष्ट्र क्रिकेट संघ ही एकमात्र संस्था है जिसने शाहरुख खान के वानखेडे़ स्टेडियम में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने का साहस दिखाया है।

 

संघ का कहना है कि उसने यह कदम इसलिए उठाया है कि फिल्म स्टार ने अपने व्यवहार के लिए माफी मांगने से इन्कार कर दिया था। एमसीए की त्वरित कार्रवाई सराहनीय है। राजनीतिक लाभ उठाने के मकसद से संप्रग सरकार ने तब गैरजरूरी प्रतिक्रिया जताई जब अमेरिकी प्रवर्तन अधिकारियों ने 2009 और 2012 में पूछताछ के लिए शाहरुख खान को कुछ घंटों के लिए रोक लिया था। जैसाकि वानखेडे स्टेडियम की घटना से पता चलता है, भारत के लोगों को अब शाहरुख जैसे फिल्मी हीरो के गैरजिम्मेदार व्यवहार का खामियाजा भुगतना होगा। अमेरिका में पूछताछ के लिए शाहरुख खान को रोकने की पहली घटना 15 अगस्त, 2009 को हुई थी। शाहरुख खान ने सोचा होगा कि अमेरिका के प्रवर्तन अधिकारी भी उन्हें सुपर हीरो मानते हुए उनकी खुशामद में लग जाएंगे, लेकिन अधिकारियों ने उनसे एक आम नागरिक जैसा व्यवहार किया, जिससे उनका गुस्सा फूट पड़ा। ऐसी दूसरी घटना इस साल 13 अप्रैल को हुई, जब वह एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए येल यूनिवर्सिटी जा रहे थे। डेढ़ घंटे की पूछताछ के बाद उन्हें छोड़ दिया गया।

 

येल यूनिवर्सिटी पहुंच कर शाहरुख खान ने अमेरिकी प्रतिष्ठान पर कटाक्ष करते हुए कहा, हमेशा की तरह मुझे हवाई अड्डे पर रोक लिया गया। करीब डेढ़ घंटे तक। मैं जब भी अमेरिका आता हूं, मेरे साथ ऐसा ही होता है। मुझे जब भी लगता है कि मैं अहंकारी हो रहा हूं, तो मैं अमेरिका आ जाता हूं। इस घटना पर भारत के विदेशमंत्री एसएम कृष्णा ने कहा कि पूछताछ और माफी अमेरिका की आदत बन गई है। भारत माफी से अधिक चाहता है। इस घटना को इतना तूल देने की क्या आवश्यकता थी, जब अमेरिका जाने वाले सभी भारतीयों को इस प्रकार की संक्षिप्त पूछताछ से गुजरना पड़ता है। अच्छा होता अगर डॉ. एपीजे कलाम, जॉर्ज फर्नाडीज और अंबिका सोनी जैसे लोगों की अमेरिकी हवाई अड्डे पर होने वाली तलाशी पर सरकार की ओर से इस प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त की जाती। फिल्म स्टारों द्वारा किए जाने वाले दु‌र्व्यवहार का एक कारण और है। सरकार के रवैये के अलावा, जो उन्हें यह विश्वास दिलाती है कि वे कानून से ऊपर हैं, कुछ फिल्म स्टारों की दबंगई का कारण उनके साथ चलने वाले बाउंसर या बॉडी गा‌र्ड्स हैं। इन बॉडीगार्ड की उपस्थिति से फिल्म स्टारों का अहंकार इतना बढ़ जाता है कि वे आपे से बाहर हो जाते हैं। अन्य नागरिकों की सुरक्षा के हित में पुलिस को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि फिल्म स्टार अपने बॉडी गार्ड के साथ सार्वजनिक स्थान पर न घूमें।

 

अगर किसी स्टार को लगता है कि इस प्रकार के तामझाम के बिना वह लोगों के बीच नहीं जा सकता तो उसे खुद को घर, कार्यालय या कामकाज की जगह तक सीमित रखना चाहिए। असल में, फिल्म स्टारों को लोकतांत्रिक जीवन में कुछ मूलभूत सलीके सीख लेने चाहिए। मैंने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद जॉर्ज फर्नाडीज को प्रधानमंत्री निवास से कृष्णा मेनन मार्ग स्थित अपने घर पैदल जाते देखा है। उस समय फर्नाडीज रक्षामंत्री थे। इसी प्रकार रेलमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मधु दंडवते एक पत्रकार के स्कूटर के पीछे बैठकर राष्ट्रपति भवन गए थे। संसद से रायसीना रोड स्थित अपने निवास जाने के लिए सांसद अटल बिहारी वाजपेयी पैदल निकल पड़ते थे। यहां तक कि वर्तमान सरकार में भी कई मंत्री ऐसे हैं जो सादा जीवन में यकीन रखते हैं। आप उन्हें किताबों की दुकान, रेस्त्रां या फिर किसी शॉपिंग कांप्लेक्स में देख सकते हैं।

 

जो फिल्म स्टार बॉडी गार्ड को लेकर भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाया करते हैं उन्हें यह भी देखना चाहिए कि ब्लैक कैट कमांडो के सुरक्षा घेरे में चलने वाले केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री आदि भी संसद या विधानसभा में सुरक्षाकर्मियों के बिना ही जाते हैं, क्योंकि इनके कारण अन्य सांसदों या आगंतुकों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। यही नियम इन सुपर स्टारों पर भी लागू होना चाहिए, जब वे सार्वजनिक स्थानों पर जाएं। अगर शाहरुख खान के साथ बॉडी गार्ड नहीं होते तो वह एमसीए अधिकारियों के साथ दु‌र्व्यवहार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।  वानखेडे में शाहरुख खान ने जो दंभ और दबंगई दिखाई उसके बाद उन्हें येल यूनिवर्सिटी में दिए गए वचन को पूरा करना चाहिए कि उनमें जब भी अहंकार बढ़ जाता है, वह अमेरिका चले जाते हैं। अब फिर उनके लिए अमेरिका जाने का सही समय है।

 

 लेखक ए सूर्यप्रकाश वरिष्ठ स्तंभकार हैं

 

 अपनी पहचान के साथ क्यों खिलवाड़ कर रहे हैं शाहरुख खान !!

 

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