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काले धन पर लीपापोती

जागरण मेहमान कोना
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कई देशों में बैंक खुलेआम काला धन जमा करते हैं और गोपनीयता के नियमों की आड़ में जमाकर्ताओं की पहचान गुप्त रखते हैं। ऐसे देशों में स्विट्जरलैंड का नाम शीर्ष पर है। इसी प्रकार यूरोप के एक अन्य छोटे देश लिचटेंस्टीन के बैंक भी काला धन जमा करने में कुख्यात हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार स्विट्जरलैंड के बैंकों में सबसे अधिक काला धन भारतीय जमा करते हैं। स्विस बैंकों में काले धन का मुद्दा मीडिया में तब उछला था, जब बोफोर्स तोप के सौदे में दलाली स्विस बैंक में जमा करने का खुलासा हुआ। दरअसल, विदेशी बैंकों में भारत का इतना काला धन जमा है कि इससे सरकार द्वारा चलाई जा रही सभी कल्याणकारी योजनाओं का वित्त पोषण हो सकता है। कुछ व्यक्ति तथा संगठन भारत सरकार पर चौतरफा दबाव बना रहे हैं कि वह विदेशी बैंकों में काला धन जमा करने वाले भारतीयों का नाम उजागर करे और काला धन वापस लाने के साथ ही जमाकर्ताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी करे। इस संबंध में उच्चतम न्यायालय में भी एक जनहित याचिका दायर की गई है। संयुक्त राष्ट्र संघ का भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक कन्वेंशन बना है।

 

भारत ने भी इस पर हस्ताक्षर किए हैं। इस कन्वेंशन के तहत यह भारत सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह भ्रष्टाचार को रोकने के लिए प्रभावशाली कदम उठाए। लेकिन सरकार काला धन जमा करने वालों का विवरण सार्वजनिक करने में कोई न कोई बहाना बनाकर टालमटोल कर रही है। सरकार की कार्रवाई ढुलमुल, प्रभावहीन और असंतोषजनक है। प्रश्न उठता है कि सरकार और उसके अधिकारी टैक्स चोरों की पहचान को छुपा कर क्यों रखना चाहते हैं, जबकि अन्य अपराधों में अपराधियों की पहचान प्राय: नहीं छिपाई जाती। विदेशों से काला धन वापस लाने और देश में काले धन के श्चोत पर अंकुश लगाने के उपाय सुझाने वाली कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने संसद में 21 मई, 2012 को एक श्वेत पत्र प्रस्तुत किया। श्वेत पत्र कई बिंदुओं पर निराशाजनक लगता है। श्वेत पत्र में ऐसा कोई संकेत नहीं है कि कितने भारतीय नागरिकों ने विदेशी बैंकों में काला धन जमा किया है। इसमें बैंकों में जमा काले धन की अनुमानित राशि या ऐसा धन जो बाजार में प्रयोग में आ रहा है या देश के अंदर बेनामी संपत्तियों में लगे धन के बारे में कुछ नहीं बताया गया है। काले धन का एक महत्वपूर्ण श्चोत ठेकों और आर्थिक लेनदेन में अनधिकृत कमीशन के रूप में होता है। इसके बारे में भी कुछ नहीं कहा गया है। जिन लोगों ने विदेशी बैंकों में काला धन जमा किया है या देश के अंदर अथवा बाहर बेनामी संपत्तियों में लगाया है, उनके नाम उजागर करने की कोई संस्तुति श्वेत पत्र में नहीं मिलती।

 

श्वेत पत्र में काले धन को जब्त करने और दोषी व्यक्तियों को चिह्नित करके उन पर आपराधिक अभियोजन की प्रक्रिया की भी संस्तुति नहीं की गई है। दूसरी ओर इसमें काला धन जमा करने वाले व्यक्तियों द्वारा एकमुश्त टैक्स देकर स्वैच्छिक रूप से ऐसे धन को घोषित करने की संस्तुति की गई है। यहां तक कि ऐसे लोगों पर जुर्माना लगाने का भी प्रावधान नहीं किया गया है। ऐसी संस्तुति यदि क्रियान्वित की जाती है तो इससे और अधिक लोगों का काला धन पैदा करने का हौसला बढ़ेगा। कुछ साल पहले भी भारत सरकार ने एकमुश्त टैक्स अदायगी करके स्वैच्छिक रूप से काले धन को घोषित करने की नीति का निर्णय लिया था, लेकिन ऐसा निर्णय काले धन की बुराई को रोकने में पूर्णतया असफल रहा। श्वेत पत्र में काला धन जमा करने वाले बैंकों और संस्थाओं के विरुद्ध किसी प्रकार की कार्रवाई की बात नहीं की गई है। ऐसे बैंक काला धन बनाने की तथा टैक्स बचाने की गैरकानूनी क्रिया को बढ़ावा देते हैं और इसलिए उनके विरुद्ध भी आपराधिक अभियोजन की प्रक्रिया चलनी चाहिए। श्वेत पत्र काले धन पर अंकुश लगाने की सरकार की प्रतिबद्धता और इच्छाशक्ति के अभाव को ही दर्शाता है। जब तक सरकार द्वारा दोषियों पर जुर्माना और उनके विरुद्ध आपराधिक अभियोजन की प्रक्रिया के तहत कठोर कार्रवाई नहीं की जाती तब तक काले धन को कम करने या समाप्त करने की उम्मीद करना ही व्यर्थ है।

 

काले धन पर रोकथाम लगाने के प्रयास पूरी दुनिया में हो रहे हैं। विशेष तौर पर अमेरिका ने इस संबंध में काफी प्रभावशाली काम किया है। अमेरिका ने स्विट्जरलैंड की सरकार और वहां के यूबीएस बैंक पर दबाव बनाया जिसके फलस्वरूप स्विट्जरलैंड के बैंक को अमेरिका के न्याय विभाग के साथ एक समझौते के तहत 4450 खातेदारों का विवरण देना पड़ा और इस मामले में आपराधिक अभियोजन की प्रक्रिया को टालने के बदले में 78 करोड़ डॉलर का जुर्माना भी देना पड़ा। वहां की सरकार का न्याय विभाग लगभग 11 अन्य स्विस बैंकों जैसे क्रेडिट स्विस, जूलियस बेयर, दि बॉसल कैंटोनल बैंक और ज्यूरिक कैंटोनल बैंक आदि के बारे में छानबीन कर रहा है। अमेरिकी दबाव में स्विस सरकार और वहां के बैंकों ने कुछ विवरण उपलब्ध कराए हैं। लेकिन यह समझा जाता है कि स्विस सरकार ऐसे समझौते की मांग कर रही है जिसमें अमेरिका उसके बैंकों के खिलाफ आपराधिक अभियोजन की प्रक्रिया न करे। अमेरिका इस प्रकार के समझौते के पक्ष में नहीं है। काले धन पर लचर कानून और श्वेत पत्र के अ‌र्द्धसत्य के सहारे पर्दा डालने के बजाय भारत को भी अमेरिका की तरह काला धन जमा करने वालों के खिलाफ कारगर कार्रवाई करनी चाहिए।

 

 लेखक उमाशंकर पांडे ट्रांस्परेंसी इंटरनेशनल इंडिया के सदस्य हैं

 

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