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एकल परीक्षा पर अलग-अलग विचार

जागरण मेहमान कोना
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आइआइटी, एनआइटी, ट्रिपल आइटी तथा दूसरे केंद्रीय तकनीकी शिक्षण संस्थानों की हाल ही में हुई बैठक में इंजीनियरिंग संस्थानों में प्रवेश के लिए एक देश-एक टेस्ट पर सहमति बन गई है। 2013 से आइआइटी समेत सभी केंद्रीय इंजीनियरिंग संस्थानों में छात्रों को प्रवेश अब ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जामिनेशन यानी जेईई के माध्यम से ही मिलेगा। ढाई साल के लगातार प्रयासों के बाद इंजीनियरिंग की एकल प्रवेश परीक्षा के संशोधित प्रारूप पर जो सहमति बनी है उससे साफ है कि नए पैटर्न से संपन्न होने वाली इस प्रवेश परीक्षा में अब बारहवीं के बोर्ड के अंकों को भी खास भार प्रदान किया जाएगा। इस नई प्रवेश परीक्षा के फार्मूले को अपनाने के लिए गुजरात, महाराष्ट्र व हरियाणा राज्यों ने पूर्व में ही अपनी सहमति प्रदान कर दी है। नई प्रवेश परीक्षा तीन भागों में विभाजित की जाएगी। इसमें पहले स्तर पर बारहवीं की बोर्ड परीक्षा, दूसरे स्तर पर मेन टेस्ट तथा तीसरे स्तर पर एडवांस टेस्ट आयोजित किया जाएगा। बोर्ड और मेन टेस्ट की परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले पचास हजार प्रतिभागियों के जेईई एडवांस टेस्ट में प्रदर्शन के आधार पर ही आइआइटी में प्रवेश के लिए मेरिट लिस्ट तैयार की जाएगी।


आइआइटी में प्रवेश के लिए बोर्ड परीक्षा के अंक तथा मेन टेस्ट के परिणाम प्रतिभागियों के लिए केवल स्क्रीनिंग का कार्य करेंगे, जबकि एडवांस टेस्ट मेरिट तय करने का कार्य करेगा। इस निर्णय से जुड़ी बैठक के बाद मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि इस नए टेस्ट से न केवल संस्थानों को प्रतिभाशाली छात्र मिलेंगे, बल्कि बारहवीं बोर्ड की पढ़ाई के प्रति भी छात्रों का रुझान बढ़ेगा। उन्होंने यह भी आशा की है कि इससे कोचिंग फैक्टि्रयों पर भी लगाम लगेगी। एकल प्रवेश परीक्षा की घोषणा होते ही इसके पक्ष व विपक्ष में विचार आने शुरू हो गए हैं। इसके पक्षधरों का कहना है कि अभी तक बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात छात्र को कई प्रवेश परीक्षाओं में बैठने का भारी दबाव रहता था।


छात्र को पूर्व में अलग-अलग प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करनी होती थी तथा परिणाम भी अलग-अलग समय आते थे। इससे उसके प्रवेश पर अनिश्चितता के बादल मंडराते रहते थे। ऐसा अनुमान है कि इस एक परीक्षा से छात्रों पर कई प्रवेश परीक्षाओं का बोझ स्वत: ही कम हो जाएगा। इस परीक्षा परिणाम के बाद छात्र को यह स्पष्ट हो जाएगा कि उसके पास प्रवेश के कौन-कौन से विकल्प हैं। दूसरी ओर इस एकल प्रवेश परीक्षा के मुद्दे पर कुछ आशंकाएं भी उभर कर सामने आ रही हैं। पहली दलील यह है कि आइआइटी अन्य तकनीकी संस्थानों से अलग है। इसलिए इन संस्थानों में प्रवेश के लिए छात्रों की योग्यता परखने का स्केल भी अलग ही होना चाहिए था। इस परीक्षा के विपक्ष में अपनी राय देने वाले विशेषज्ञों का मत है कि वर्तमान में आइआइटी में तोता रटंत पढ़ाई पर अधिक बल दिया जा रहा है। इससे आइआइटी जैसे संस्थानों में स्वतंत्र चिंतन का निरंतर अभाव हो रहा है। आइआइटी संस्थानों से जुड़ा शिक्षक वर्ग भी अब इस बात को लेकर चिंतित है कि आइआइटी की प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण होने का फार्मूला कोचिंग संस्थानों ने तैयार कर लिया है। इसी कारण आइआइटी का यह शिक्षक वर्ग इस प्रवेश परीक्षा के ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन चाहता है। इन शिक्षकों का यह भी मत है कि इस नई प्रवेश परीक्षा के माध्यम से केवल वे ही छात्र चुने जाएंगे जो इस संयुक्त प्रवेश परीक्षा से गुजर कर आएंगे। एक अन्य आपत्ति बारहवीं कक्षा के अंकों को अधिक भार प्रदान करने को लेकर भी है। सीबीएससी बोर्ड और राज्यों की बोर्ड परीक्षाओं में अंक देने का तरीका अलग-अलग है। सच यह है कि इस एकल प्रवेश परीक्षा से आइआइटी की स्वायत्तता कम होने की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। वह इसलिए, क्योंकि आइआइटी संस्थानों को अब श्रेष्ठ व प्रतिभावान छात्रों के प्रवेश के लिए अब इस प्रवेश परीक्षा के परिणामों पर ही निर्भर रहना पड़ेगा।


विगत एक डेढ़ दशक पूर्व से प्रवेश परीक्षाओं की तैयारियों को लेकर जो कोचिंग व्यवस्था पहले पेशेवर होती थी वह अब धीरे-धीरे एक उद्योग के रूप में बदल गई। पिछले दिनों इंफोसिस जैसी साफ्टवेयर कंपनी के मानद चेयरमैन एनआर नारायणमूर्ति ने साफ कहा था कि देश में इंजीनियरिंग शिक्षा के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों में प्रवेश पाने वाले छात्रों का स्तर लगातार गिर रहा है। छह दशक पूर्व जब खड़गपुर में देश के पहले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान की नींव रखी गई थी तब प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि यह संस्थान आधुनिक भारत की बुनियाद रखेगा। उसके बाद इन संस्थानों ने अपनी काबिलियत सिद्ध भी की, परंतु बाद में प्रवेश परीक्षा तथा अध्ययन स्तर में परंपरागत ढर्रे पर चलने के कारण आज वैश्विक स्तर की उच्च शिक्षा से जुड़ी रपट में ये संस्थान कुछ विदेशी संस्थानों के आगे नहीं ठहर पाते। कुछ महीने पहले केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने भी आइआइटी शिक्षकों के स्तर पर सवाल उठाते हुए कहा था कि ये संस्थान विश्व स्तरीय नहीं हैं। एकल प्रवेश परीक्षा को स्वीकृति के बाद इन संस्थानों से जुड़े अनेक विशेषज्ञ स्वयं को अलग-थलग व ठगा सा महसूस कर रहे हैं। आइआइटी के पूर्व छात्र व लेखक चेतन भगत से लेकर इन संस्थानों की एल्यूमिनी एसोसिएशन, फैकेल्टी फेडरेशन तथा इनके निदेशकों का स्पष्ट मत है कि प्रवेश परीक्षा के इस नए प्रारूप से छात्रों की कोचिंग संस्थानों पर निर्भरता और बढ़ेगी। लिहाजा इन सभी ने इस नए प्रारूप के खिलाफ विधिक कार्यवाही करने का मन बनाया है। पुरानी प्रवेश परीक्षा की तुलना में इस एकल परीक्षा से कितनी गुणवत्ता बढ़ेगी, यह तो अभी भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इतना जरूर है कि प्रवेश परीक्षा का यह नया प्रारूप कई आशंकाओं के बीच जरूर घिर गया है।


डॉ. विशेष गुप्ता स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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