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भ्रूण का जीन-नक्शा

जागरण मेहमान कोना
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भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक जय शेंदुरे के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम ने एक अजन्मे बच्चे का संपूर्ण जीन-नक्शा तैयार करने में सफलता प्राप्त की है। वैज्ञानिक दृष्टि से यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। इससे शिशु के जन्म से पूर्व ही हजारों आनुवंशिक बीमारियों का पता लग सकता है, लेकिन एक अजन्मे बच्चे के बारे में बहुत कुछ जानने की क्षमता से कई बड़े नैतिक सवाल भी खड़े हो सकते हैं क्योंकि इसके दुरुपयोग का खतरा है। सबसे बड़ा डर यह है कि इस तकनीक की आड़ में गर्भपात के ऐसे मामले बढ़ सकते हैं। परफेक्ट जीनों की चाह रखने वाले माता-पिता दोषपूर्ण जीनों वाले बच्चे का जन्म रुकवा सकते हैं। शेंदुरे के नेतृत्व में यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के जीन-वैज्ञानिकों ने भ्रूण का डीएनए ब्लूप्रिंट तैयार करने के लिए गर्भवती महिला के रक्त से लिए गए नमूने और पिता के थूक से लिए गए नमूने का इस्तेमाल किया। उन्होंने जीनों को तेजी से सिलसिलेवार करने वाली नवीनतम डीएनए सिक्वेंसिंग तकनीक और कंप्यूटरी गणनाओं के आधार पर 98 प्रतिशत की सटीकता के साथ भ्रूण का जीन-नक्शा तैयार किया। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्ररिया अभी व्यावहारिक और किफायती नहीं है। इसे बहुत सटीक भी नहीं कहा जा सकता। यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के रिसर्चरों का कहना है कि आज एक अजन्मे बच्चे का जीन नक्शा तैयार करने के लिए 20,000 डॉलर से 50,000 डॉलर का खर्चा आएगा। लेकिन उनका यह भी कहना है कि डीएनए सिक्वेंसिंग की लागत तेजी से गिर रही है और उसकी सटीकता में भी सुधार हो रहा है।


भ्रूण कोशिकाओं के आधार पर इस समय भी अजन्मे बच्चे का जीन-विश्लेषण किया जा सकता है, लेकिन इन विधियों में मिस्कैरिज का खतरा रहता है। आनुवंशिक बीमारियों से चिंतित माता-पिता परखनली निषेचन प्रक्रिया अपना कर भ्रूण के गर्भाशय में प्रत्यारोपण से पहले उसकी आनुवंशिक जांच करवा सकते हैं। शेंदुरे की टीम द्वारा अपनाई गई तकनीक में शल्य-प्रक्रिया से भ्रूण से संपूर्ण कोशिकाएं लेने की जरूरत नहीं है। इस तकनीक में शल्य-प्रक्रिया जैसा कोई जोखिम नहीं है और इससे डीएनए का परीक्षण करना भी आसान है। रिसर्चरों ने जीन-नक्शे का निर्धारण करने के लिए 18.5 हफ्ते की गर्भवस्था से रक्त के नमूने लिए थे। रिसर्चरों का कहना है कि ये नमूने शुरुआती दिनों में भी लिए जा सकते हैं। रिसर्चरों ने अपनी तकनीक में नब्बे के दशक में हुई एक खोज का फायदा उठाया। वैज्ञानिकों ने तब पता लगाया था कि भ्रूण के डीएनए के अवशेष गर्भवती महिला के रक्त में भी पाए जाते हैं। इस बचे-खुचे डीएनए का आनुवंशिक विश्लेषण किया जा सकता है।


फिलहाल गर्भवती महिला के रक्त में विद्यमान भ्रूण के डीएनए अवशेषों के विश्लेषण का इस्तेमाल भ्रूण के लिंग निर्धारण या उसका पितृत्व तय करने के लिए किया जा रहा है, लेकिन इसके आधार पर अजन्मे बच्चे की संपूर्ण जीन-कुंडली तैयार करना एक बड़ी चुनौती है क्योंकि मां के डीएनए से भ्रूण के डीएनए को अलग करना बहुत ही कठिन है। संपूर्ण भ्रूण जीन-नक्शे के निर्धारण की काबिलियत से कुछ विचलित करने वाले मुद्दे सामने आएंगे। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ वेरमोंट के प्रमुख प्रोफेसर स्टीफन ब्राउन का कहना है कि इस तरह के टेस्ट से माता-पिता मनमाफिक तरीके से या चुनिंदा आधार पर शिशु जन्म का रास्ता चुन सकते हैं। हो सकता है कि बच्चे में अनुकूल गुण नहीं होने पर माता-पिता उसका जन्म ही न होने दें। कुछ माता-पिता चाहेंगे कि उनका बच्चा एथलीट जैसा बलशाली हो। यह गुण नहीं मिलने पर वे अपने बच्चे का जन्म रुकवा सकते हैं। अजन्मे शिशु के जीन-विश्लेषण से जीनो में होने वाले अनगिनत आकस्मिक परिवर्तन अथवा म्युटेशन हमारे सामने आएंगे। इनके बारे में हमारे पास यह पर्याप्त जानकारी नहीं है कि इनसे कौन सी बीमारियां पैदा होती हैं। इससे शिशु चाहने वाले अभिभावकों और उनके डाक्टरों के सामने दुविधाजनक स्थिति पैदा हो सकती है।


लेखक मुकुल व्यास स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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