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अब सुलझेगी ब्रह्मांड की गुत्थी

जागरण मेहमान कोना
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करीब आठ साल पहले 2004 में ब्रिटेन स्थित बुकमेकर लैडब्रुक्स ने पांच भावी आविष्कारों पर अटकलें लगाई थीं। अनुमान था कि 2010 तक उनमें से कुछ या सभी उपलब्धियां हासिल हो जाएंगी। ये पांच संभावित आविष्कार हैं- मंगल के सबसे बड़े चंद्रमा- टाइटन पर जीवन की उपस्थिति, गुरुत्वाकर्षण तरंगों का अस्तित्व, अंतरिक्ष से आती कॉस्मिक किरणों के श्चोत की जानकारी, हिग्स बोसोन कण यानी गॉड पार्टिकल का रहस्य और परमाणु संलयन का व्यावसायिक उपयोग। इनमें से चार के बारे में तो अभी मुकम्मल तौर पर कुछ कहना शेष है, लेकिन गॉड पार्टिकल पर वैज्ञानिकों की एक ठोस राय स्विटजरलैंड के जिनेवा में सीईआरएन के हिग्स सर्च सेमिनार में ऐतिहासिक घोषणा के रूप में सामने आ चुकी है। द यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सीईआरएन) ने द लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर में वषरें तक किए गए प्रयोगों-परीक्षणों के बल पर आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि कर दी है कि उसके वैज्ञानिकों ने गॉड पार्टिकल के नाम से मशहूर हिग्स बोसोन कणों के अस्तित्व का पता लगा लिया है। इस पार्टिकल की खोज के लिए ही फ्रांस और स्विटजरलैंड की सीमा पर 17 मील लंबी सुरंग बनाई गई थी जिसमें स्थित एक खास मशीन द लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर में प्रयोग किए जा रहे थे। सवाल है कि गॉड पार्टिकल की खोज से मानवता को क्या मिलने जा रहा है? कण भौतिकी से जुड़े विज्ञानी मानते हैं कि वे हिग्स बोसोन कण ही हैं, जो सब-एटॉमिक जगत को मास यानी द्रव्यमान देने के लिए जिम्मेदार हैं।


पार्टिकल फिजिक्स के सबसे निचले पायदान पर माने जाने वाले हिग्स बोसोन कणों का महत्व इससे समझा जा सकता है कि अगर ये कण न हों, तो विज्ञान द्रव्य की व्याख्या नहीं कर सकता। हिग्स बोसोन कण यह जानने में हमारी मदद करते हैं कि दूसरे सभी कणों का कुछ द्रव्यमान क्यों होता है। गॉड पार्टिकल की चर्चा इस धारणा के साथ शुरू हुई थी कि किसी भी चीज को भार देने वाले अणुओं में अपना कोई भार नहीं होता, लेकिन यदि कणों में भार नहीं होता तो कोई भी चीज यानी अणु-परमाणु या फिर यह ब्रह्मांड भी नहीं बन सकता था। नियम यह है कि अगर यह द्रव्यमान नहीं होगा तो किसी भी चीज के परमाणु उसके भीतर घूमते रहेंगे और आपस में जुड़ेंगे ही नहीं। इस सिद्धांत के मुताबिक हर खाली जगह में एक फील्ड है। इसे साइंटिस्ट हिग्स फील्ड कहते हैं। इस फील्ड में ही किसी अणु को भार प्रदान करने वाले कण होते हैं जिन्हें हिग्स बोसोन कहा गया है। यह सिद्धांत 1960 के दशक में ब्रिटिश विज्ञानी प्रोफेसर पीटर हिग्स ने दिया था। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि यही वे कण हैं जिनसे हमें अपनी धरती समेत चांद, सितारों, सौरमंडल, निहारिकाओं यानी पूरे ब्रह्मांड में बिखरे पदार्थ (मैटर) की मूलभूत संरचनाओं का हिसाब-किताब मिलता है। इसी महत्ता की वजह से ये कण गॉड पार्टिकल नाम से भी जाने जाते हैं। पिछले 35-40 वषरें से इन कणों के अस्तित्व को लेकर बहस चल रही थी। बीच में यह करीब-करीब मान लिया गया था कि ज्ञात ब्रह्मांड के सृजन में जिन बोसोन कणों का अहम रोल बताया जा रहा था, उनका कोई वजूद ही नहीं है, लेकिन इन्हीं चर्चाओं के बीच सबसे पहले स्विटजरलैंड में जिनेवा स्थित शक्तिशाली इलेक्ट्रॉन पॉजिट्रॉन कोलाइडर (एलईपी) के जरिए यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के विज्ञानियों को कुछ ऐसे संकेत मिले थे कि ये कण होते हैं।


90 के दशक में साइंस पत्रिका नेचर के हवाले से शोध के मुखिया पीटर रेंटन ने यह खुलासा किया था कि मूलभूत कणों की करीब 10 खरब टक्करों में कोई एक मौका ऐसा आता है, जब बोसोन कणों की प्रतिच्छाया को पकड़ा जा सकता है। यह काम भी इतना आसान नहीं है, क्योंकि इस प्रक्रिया में बहुत बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकलती है। इसके अलावा, चूंकि ये कण अत्यधिक क्षणभंगुर होते हैं और पैदा होने के कुछ ही क्षणों में नष्ट हो जाते हैं, इसलिए इन्हें पकड़ पाना बेहद मुश्किल काम है। और तब सिर्फ इनके मलबे से ही इनका पता चल पाता है। फिर भी, विज्ञानियों का मानना है कि कणों की टकराहट के दौरान कम से कम नौ प्रतिशत मौके ऐसे आते हैं, जब कोई असामान्य शोर या ध्वनि उत्पन्न होती है, जिससे बोसोन कणों की मौजूदगी का पता चलता है। पर बात सिर्फ एलईपी के खुलासों तक सीमित होकर नहीं रह जाए, इसलिए पहले तो एटम स्मैशिंग मशीन- इंटरनेशनल लीनियर कोलाइडर से और फिर कोलाइडर- लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (एलएचसी) से परीक्षण शुरू किए गए, जिसने 2007 में काम करना शुरू कर दिया था।


जमीन में गहरे दबी सुरंग के आकार में बने इस तरह के विशालकाय कोलाइडर में लगभग प्रकाश की गति से भागते इलेक्ट्रॉन-पॉजिट्रॉन कणों के बीच उच्च आवेशित टकराहट संभव है और इसके फलस्वरूप ऊर्जा, प्रकाश तथा विकिरण का ऐसा जबर्दस्त विस्फोट संभव है, जो महाविस्फोट के ठीक बाद के क्षण (सेकेंड) के कुछ लाखवें हिस्से तक की स्थितियों का पुन: सृजन कर सकता है। ऐसी ही अवस्था में वह गॉड पार्टिकल यानी हिग्स बोसोन कण उत्पन्न हो सकता है, जिसमें डार्क मैटर, डार्क एनर्जी, एक्सट्रा डायमेंशंस, पदार्थ की मूलभूत प्रकृति, स्पेस और टाइम से लेकर उन सभी गुत्थियों का रहस्य छिपा है, जो अभी तक अनसुलझी हैं। चूंकि हिग्स कणों की थ्योरी को भारतीय मूल के भौतिकविद् सत्येंद्र बोस ने अपने अनुसंधानों के सहारे आगे बढ़ाया था, इसलिए इन्हें बोसोन नाम से भी जाना गया। हिग्स बोसोन कणों के अस्तित्व के प्रमाणों की जरूरत इसलिए भी थी, क्योंकि इससे महाविस्फोट यानी बिगबैंग और ब्रह्मांड के जन्म से लेकर कण भौतिकी के अनेक रहस्यों का खुलासा हो सकेगा।


अभिषेक कुमार सिंह स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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