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शांति की राह में रोड़े

जागरण मेहमान कोना
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कश्मीर पर दिलीप पडगांवकर की अध्यक्षता वाले केंद्रीय मध्यस्थ दल की रिपोर्ट को छह महीने के इंतजार के बाद भारत सरकार ने वेबसाइट पर डाल दिया है ताकि इसमें दिए गए प्रस्तावों पर जनप्रतिक्रिया जानी जा सके। इस रिपोर्ट को बिना किसी शोर-शराबे के जारी किया गया। शायद सरकार पर्यटन सीजन में राज्य के हालात को बिगाड़ना नहीं चाहती। पिछले अनुभव से आशंका थी कि राज्य में अलगाववादी ताकतें रिपोर्ट के खिलाफ लोगों को भड़काने का प्रयास करेंगे। इन गर्मियों में श्रीनगर और कश्मीर घाटी में व्यस्त पर्यटन सीजन रहा। होटल और हाउसबोट पूरी तरह से भरे थे और अधिकारियों ने नागरिकों को अपने घरों में पर्यटकों को मेहमान के तौर पर रखने का सुझाव दिया था। अमरनाथ यात्रा पूरे जोरो पर है। वैष्णो देवी के लिए यात्रा बदस्तूर जारी है और यात्रियों को जम्मू क्षेत्र में अवकाश बिताने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। लद्दाख में भी एक फिल्म और पर्यटन समारोह आयोजित किया गया। आगा पीर दस्तगीर साहिब दरगाह को पहंुचे नुकसान को छोड़कर यहां कोई हादसा नहीं हुआ। सदियों पुराने लकड़ी के ढांचे में शार्ट सर्किट की वजह से आग लगी थी। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला फौरन श्रीनगर लौटे और उन्होंने इस ढांचे के पुनर्निर्माण के आदेश दिए। पीर दस्तगीर दरगाह में आग लगने से अलगाववादियों को बंद कराने का मौका मिला। आग लगने पर मुफ्ती मोहम्मद बुरहानुद्दीन ने आरोप लगाना शुरू कर दिया कि यह आग एक सोची-समझी साजिश का नतीजा थी।


आरोपों को घाटी में कोई खास समर्थन नहीं मिला और मुख्यमंत्री को कहना पड़ा-मुझे तो यह उम्मीद थी कि मुफ्ती की हैसियत से बेबुनियाद आरोप लगाते समय उन्हें अल्लाह से तो डरना चाहिए था। अब राज्य में स्थिति काफी हद तक स्थिर हो चुकी है, फिर भी शांति भंग करने की कोशिशें जारी हैं। उग्रवादियों ने स्थानीय चुनावों में लोगों के बढ़-चढ़कर भाग लेने से कोई सबक नहीं लिया है। पिछले कुछ सप्ताहों में उन्होंने नवनिर्वाचित पंचों और सरपंचों से इस्तीफा देने या फिर नतीजा भुगतने को तैयार रहने को कहा है और उग्रवादियों ने इस बारे में पोस्टर और पुस्तिकाएं भी बांटी हैं। इस्तीफा देने वालों की संख्या के बारे में अभी तक पता नहीं चला है, लेकिन उनकी सुरक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने जरूरी हैं। मध्यस्थ दल की रिपोर्ट पर राज्य की प्रतिक्रिया अपेक्षा के अनुरूप रही है। अलगाववादियों ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। उनसे सकारात्मक प्रतिक्रिया की उम्मीद करना बेमानी ही थी। पाकिस्तान के उच्चायोग ने उन्हें विदेश सचिव से मिलने के लिए बुलाया था और उम्मीद की जा रही है कि उन्हें हमारे पड़ोसी देश के हालात के बारे में बताया गया होगा। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि राज्य के लोग मिल-जुलकर रहना चाहते हैं।


कश्मीर घाटी में अलगाववादियों को समझना चाहिए कि वे सारी ताकत अपने हाथ में लेकर राज्य पर शासन नहीं कर सकते। 1990 के दशक में उग्रवाद के चरम दौर में प्रधानमंत्री नरसिंहा राव ने संसद में एक प्रस्ताव पारित कराया था, जिसमें पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर सहित पूरे जम्मू-कश्मीर को भारत का अंग घोषित किया गया था। जहां तक स्वायत्तता का सवाल है तो उसकी कोई सीमा नहीं है, लेकिन राज्य के लोगों को एकजुट रहना होगा और अपनी एकता को दर्शाना होगा। अटल बिहारी वाजपेयी विपरीत आशंकाओं के चलते भी अपने पड़ोसी देश के साथ मैत्री संबंध मजबूत करने की भारत की इच्छा व्यक्त करने लाहौर गए थे, लेकिन पाकिस्तान का जवाब कारगिल था। भारतीय संसद पर हमला हुआ जिसने दोनों देशों को युद्ध के कगार पर ला खड़ा किया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी पाकिस्तान के साथ स्थायी शांति का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन सीमापार से जवाब 26/11 का मुंबई हमला है। कुल मिलाकर पाकिस्तान से अच्छे पड़ोसी की उम्मीद करना व्यर्थ है।


गजनफर बट्ट स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

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