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मुठभेड़ पर राजनीति

जागरण मेहमान कोना
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The politics of the encounter

बीजापुर मुठभेड़ पर आरोपों से घिरी सीआरपीएफ का बचाव कर रहे हैं प्रकाश सिंह

छत्तीसगढ़ में 28/29 जून की रात को सुरक्षाबलों की माओवादियों से मुठभेड़ पर अच्छा-खासा विवाद खड़ा हो गया है। आरोप लगाया जा रहा है कि सीआरपीएफ के जवानों ने निर्दोष गांव वालों की बर्बरतापूर्वक हत्या कर दी। मरने वालों में जिनमें औरतें और बच्चे भी शामिल थे। स्वामी अग्निवेश ने मांग की है कि इसके लिए केंद्रीय गृहमंत्री को बर्खास्त किया जाए और प्रधानमंत्री घटना के लिए जनजातियों से क्षमा मांगें। दुर्भाग्य से देश में हर मुद्दे पर राजनीति होने लगी है और इसका स्तर इतना गिर गया है कि आरोप-प्रत्यारोप के बीच सत्य गुम हो जाता है। संदर्भित मुठभेड़ के बारे में भी कुछ ऐसा ही हुआ। घटनाक्रम का संक्षेप में विवेचन सच्चाई पर पहुंचने के लिए आवश्यक होगा। छत्तीसगढ़ पुलिस और सीआरपीएफ को गोपनीय सूचना मिली कि माओवादियों की पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी यानी पीएलजीए की एक टुकड़ी ओडिशा की ओर से छत्तीसगढ़ में प्रवेश कर रही है और वह किसी बड़ी घटना को अंजाम देगी। सूचना मिलने पर राज्य पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल ने संयुक्त योजना बनाई, जिसके अंतर्गत सुरक्षाबलों की तीन टुकडि़यां अलग-अलग स्थानों से 28 जून की रात को निकलीं। इनमें से पहली टुकड़ी जनपद बीजापुर के बासगुडा क्षेत्र से निकली और इसका गंतव्य स्थान सिलगर ग्राम था। इस टुकड़ी पर आधी रात के समय, जब वह ग्राम सारकेगुडा से गुजर रही थी, माओवादियों ने फायरिंग की। जैसा कि बाद में मालूम हुआ, उस रात को सारकेगुडा में तीन अन्य गांवों-कोठगुडा, राजपेटा और कोरसागुडा से ग्रामीण एकत्रित हुए थे। माओवादी भी काफी संख्या में वहां मौजूद थे। फायरिंग में सीआरपीएफ के छह जवान घायल हो गए, जिनमें से दो की हालत नाजुक है। एक जवान के सीने में गोली लगी और दूसरे के जबड़े से गोली पार हो गई। सीआरपीएफ ने जवाबी फायरिंग की। यह इतनी प्रभावी थी कि कुछ ही देर में माओवादी शांत हो गए।


गोलीबारी करीब एक घंटे चली। मुठभेड़ के बाद सीआरपीएफ ने रात को ही एंबुलेंस से घायल सिपाहियों को बीजापुर भेजा, जहां से उन्हें हेलीकॉप्टर द्वारा इलाज के लिए रायपुर ले जाया गया। उल्लेखनीय है कि दो घायल माओवादियों को भी हेलीकॉप्टर से इलाज के लिए भेजा गया। दूसरे दिन पौ फटने के बाद सीआरपीएफ ने घटनास्थल की छानबीन की तो उन्हें 16 संदिग्ध माओवादियों के शव मिले। यानी मुठभेड़ के करीब चार घंटे बाद उन्हें आंशिक सफलता का आभास हुआ। इसके पहले रात में उनका यही ख्याल था कि मुठभेड़ में माओवादियों का पलड़ा भारी रहा। अब सवाल यह उठता है कि जब सीआरपीएफ पर सारकेडा ग्राम से माओवादियों ने गोली चलाई तो सुरक्षाबलों के पास क्या विकल्प था? एक केंद्रीय मंत्री कहते हैं कि सुरक्षाबलों को फायरिंग से पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि ग्रामीणों में औरतें या बच्चे तो नहीं हैं। आधी रात के समय जब एक तरफ से गोली चलनी शुरू हो गई हो तब यह कैसे सुनिश्चित किया जा सकता था, समझ के बाहर है। इस संदर्भ में हमें दो बातें अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए। एक तो यह कि जवाबी कार्रवाई में दुर्भाग्य से कुछ बेगुनाह लोगों के मारे जाने की आशंका बनी रहती है।


सुरक्षाबलों का प्रयास होना चाहिए कि ऐसा यथासंभव न हो और यदि होता है तो कम से कम लोगों की जान जाए। दूसरी बात, जो अकाट्य तथ्य है कि माओवादियों में बड़ी संख्या में महिलाएं और लड़कियां भी शामिल हैं। इसके अलावा जैसा कि संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट में भी उल्लखित है, माओवादी जबरन नाबालिग लड़कों को अपनी वाहिनी में भर्ती करते हैं। आरोप लगाया जा रहा है कि सीआरपीएफ ने कुछ मृतकों का गला धारदार हथियार से रेता और महिलाओं के साथ दु‌र्व्यवहार और दुष्कर्म भी किया। यह आरोप सरासर बेबुनियाद है। मुठभेड़ में जितने भी व्यक्ति मारे गए उन सभी का बीजापुर सिविल अस्पताल के मेडिकल ऑफिसर के नेतृत्व में चार डॉक्टरों की एक टीम ने पोस्टमार्टम किया। किसी भी शव पर धारदार हथियार से रेतने या काटने के निशान नहीं हैं। महिलाओं के साथ दु‌र्व्यवहार की बात सुरक्षाबलों को केवल बदनाम करने की नीयत से कही जा रही है। सच तो यह है कि सबेरा होने तक सुरक्षाबल रक्षात्मक मानसिकता में ही थे। सीआरपीएफ की तीनों टुकडि़यों द्वारा मारे गए 20 संदिग्ध माओवादियों में से सात का आपराधिक इतिहास मालूम हो चुका है, शेष के बारे में अभी छानबीन की जा रही है। फिर भी यह बात भी अपनी जगह सही है कि एक युवती और दो लड़के और संभवत: कुछ बेगुनाह ग्रामीण भी मारे गए। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जा सकता है।


सीआरपीएफ की जवाबी कार्रवाई में कोई विद्वेष या बदनीयती की भावना नहीं थी। अगर सुरक्षाबलों द्वारा बर्बरता की गई होती तो दो माओवादियों को इलाज के लिए रायपुर भेजने की बजाय उन्हें गोली से उड़ा दिया गया होता। यह भी उल्लेखनीय है कि सीआरपीएफ के पास रॉकेट और मोर्टार भी थे, परंतु उन्होंने मुठभेड़ में इनका प्रयोग नहीं किया। शायद इसकी आवश्यकता नहीं समझी गई। इससे पता चलता है कि सीआरपीएफ की तरफ से फायरिंग में संयम बरता गया। कांग्रेस में अंतर्विरोध के कारण घटना ने ज्यादा तूल पकड़ा। अलग-अलग मंत्री अलग- अलग राग अलाप रहे हैं। छत्तीसगढ़ राज्य के कांग्रेसियों को तो भाजपा की खिलाफत के लिए नक्सलियों की वकालत से भी परहेज नहीं है। उनका अंतिम लक्ष्य भाजपा को बेदखल करके सत्ता हथियाना है। धीरे-धीरे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि कांग्रेस का एक वर्ग चिदंबरम को गृहमंत्री के रूप में सफल होते नहीं देखना चाहता। प्रधानमंत्री को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नीति संबंधी विषयों पर पार्टी के सभी प्रतिनिधि एक सुर में बोलें, परंतु ऐसा करने में वह अपने आपको अक्षम पाते हैं। कांग्रेस की यह अंदरूनी राजनीति देश के लिए अत्यंत अशुभ है। संप्रग सरकार माओवादी समस्या का समाधान चाहते हुए भी इस दिशा में कोई प्रभावी कदम नहीं उठाना चाहती। यह स्थिति देश के लिए बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण है।

लेखक प्रकाश सिंह उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक हैं


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