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अब उपराष्ट्रपति पर अटकलें

जागरण मेहमान कोना
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Gouri Shanakarराष्ट्रपति के निर्वाचन की प्रक्रिया शुरू हो गई है और संकेतों से लगता है कि प्रणब मुखर्जी भारत के अगले राष्ट्रपति बन जाएंगे। इस बीच भारत के उपराष्ट्रपति पद के लिए जोड़-तोड़ शुरू हो गई है। मीडिया में इस बात की चर्चा है कि राष्ट्रपति चुनाव में मुलायम सिंह ने इस आश्वासन के बाद पाला बदला कि उपराष्ट्रपति चुनाव में उनके उम्मीदवार को ही कांग्रेस अपना समर्थन देगी। यह बात कहां तक सही है कहना कठिन है, परंतु इसमें कोई संदेह नहीं कि उपराष्ट्रपति पद के लिए अनेक नाम मीडिया में उछाले जा रहे हैं। यह भी संभव है कि जिन लोगों के नाम उछाले जा रहे हैं उनमें से कोई भी उपराष्ट्रपति न बन पाए और किसी डार्क हॉर्स यानी ऐसा व्यक्ति जो अभी चर्चा में नहीं है, के नाम पर संप्रग और राजग में सहमति बन जाए। भारत के उपराष्ट्रपति का पद निस्संदेह अत्यंत महत्वपूर्ण है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। पूरे विश्व में भारत का उपराष्ट्रपति ही ऐसा है, जिसे कार्यपालिका का भी अंग माना गया है और विधायिका का भी। जब किसी कारण अल्पावधि के लिए राष्ट्रपति का पद खाली होता है तो उपराष्ट्रपति को उस अवधि के लिए राष्ट्रपति की शपथ दिलाई जाती है और उसे राष्ट्रपति के समस्त अधिकार मिल जाते हैं। इस स्थिति में उपराष्ट्रपति अधिक से अधिक छह महीने के लिए राष्ट्रपति का कार्यभार संभाल सकता है। इस बीच नए राष्ट्रपति का चुनाव कराया जाना आवश्यक है। बहुत से लोग उपराष्ट्रपति के पद को महत्व नहीं देते। यह गलत है। भारत की तरह अमेरिका में भी उपराष्ट्रपति के पद को महत्वहीन समझा जाता रहा है, परंतु रिचर्ड निक्सन ने इस परंपरा व धारणा को तोड़ दिया।


राष्ट्रपति आइजनहावर के कार्यकाल में रिचर्ड निक्सन उपराष्ट्रपति थे। निक्सन ने ऐलान किया था कि अमेरिका में उपराष्ट्रपति का पद अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि इस पद पर कौन आसीन है। निक्सन ने उपराष्ट्रपति होते हुए 1959 में इतिहास रचा था जब वह सोवियत संघ गए और एक टीवी पर प्रसारित बहस में सोवियत संघ के प्रधानमंत्री निकिता ºुश्चेव पर भारी पड़े। उन्होंने जोर देकर कहा कि साम्यवाद की तुलना में पूंजीवाद बेहतर है और लोग साम्यवादी देशों से ज्यादा सुखी लोकतंत्र में हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मत है कि निक्सन ने उपराष्ट्रपति पद पर रहते हुए सोवियत संघ के इतिहास को बदलने में बड़ा योगदान दिया। भारत में कुछ उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में चुन लिए गए हैं, जबकि ऐसे भी अनेक उदाहरण हैं जब उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति नहीं बन पाए। लाख योग्यता के बावजूद गोपालस्वरूप पाठक, बीडी जत्ती, कृष्णकांत और भैरो सिंह शेखावत जैसी शख्सियत राष्ट्रपति नहीं बन पाईं। बात जब उपराष्ट्रपति के चुनाव की है तब मैं एक घटना का जिक्र करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं। 1992 के अगस्त महीने में उपराष्ट्रपति का चुनाव होना था। उन दिनों केआर नारायणन सांसद थे। मैं 8वीं लोकसभा में केआर नारायणन का सहयोगी था और हमारी अच्छी मित्रता थी। एक दिन पार्लियामेंट लाइब्रेरी में मैं प्रो. मधु दंडवते और केआर नारायणन के साथ बैठा था।


दिल्ली के समाचारपत्रों में उपराष्ट्रपति को लेकर अटकलें लगाई जा रही थीं। उनमें एक नाम केआर नारायणन का भी था। प्रो. दंडवते ने चुटकी लेते हुए कहा, नारायणन, हमने सुना है कि तुम उपराष्ट्रपति बनने जा रहे हो। इस पर नारायणन ने कहा, प्रोफेसर साहब, मैं एक सामान्य सा सांसद हूं। क्यों मेरी टांग खीचते हैं? मुझे तो इस योग्य भी नहीं समझा गया कि मैं कैबिनेट मिनिस्टर बनाया जाऊं। मैं कई देशों में राजदूत रह चुका हूं। मेरे बार-बार अनुरोध करने के बाद भी मुझे विदेश मंत्रालय में राज्यमंत्री नहीं बनाया गया। केवल साइंस एंड टैक्नोलोजी जैसे मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया, जहां किसी तरह मैंने पांच साल बिताए। ऐसे में भला मुझे कौन राष्ट्रपति बनाएगा। उसी रात पूर्व सांसद एवं पत्रकार विश्वबंधु गुप्ता के घर रात्रिभोज था। अचानक डिनर के बीच में ही 10-12 टीवी चैनल वाले वहां घुस आए और उन्होंने फटाफट केआर नारायणन के फोटो खींचने शुरू कर दिए। पूछने पर पता चला कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी और पार्लियामेंटरी बोर्ड ने उपराष्ट्रपति पद के लिए केआर नारायणन के नाम की मंजूरी दे दी है। दूसरे दिन जब नारायणन पार्लियामेंट के सेंट्रल हॉल पहुंचे, तब उन्होंने अत्यंत सहज रूप से कहा कि उन्हें पत्नी की डांट खानी पड़ी। अनेक लोगों ने घर पर फोन करके कहा कि आरके नारायणन से बात करनी हैं? उनकी पत्नी ने कहा कि यहां आरके नारायणन नाम का कोई व्यक्ति नहीं है। इस पर फोन करने वाले ने कहा- उन्होंने गाइड नाम का एक प्रसिद्ध उपन्यास लिखा है। उपराष्ट्रपति बनने पर हम उन्हें बधाई देना चाहते हैं।


नारायणन की पत्नी भन्ना गईं। बात यह थी कि आरके नारायणन नाम के एक प्रसिद्ध उपन्यासकार हुए हैं। उनके उपन्यास गाइड पर देवानंद अभिनीत फिल्म बनी थी। नारायणन की पत्नी ने उन्हें उलाहना दिया कि तुम्हें तो कोई जानता ही नहीं है। सब लोग उपन्यासकार आरके नारायणन को जानते हैं। ऐसे में भला तुम क्या उपराष्ट्रपति बनोगे? यह प्रसंग सुनकर वहां मौजूद सब लोगों ने जोरदार ठहाका लगाया। देश के राजनीतिक माहौल को देखकर लगता है कि उपराष्ट्रपति के चुनाव में जमकर खींच-तान होगी। देखना यह है कि इस पद को कौन सुशोभित करता है।


पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत हैं


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