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क्या आपने कोरो भाषा के बारे में सुना है? भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों के पहाड़ों में बोले जाने वाली इस भाषा को अब बमुश्किल एक से चार हजार लोग बोलते हैं। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में रहने वाले जारवा आदिवासी समूह की भाषा जारवा को बमुश्किल 30-40 लोग जानते हैं। पोइटेविन भाषा को फ्रांस के मध्य भाग में रहने वाले चंद बड़े बुजुर्ग ही बोलते हैं। शोर भाषा को बोलने वाले रूस में दस हजार से भी कम लोग बचे हैं। आस्ट्रेलिया की पुतिजारा भाषा को बोलने वाले तो सिर्फ चार लोग ही शेष हैं, जबकि नेपाल की कुसुंडा भाषा को धाराप्रवाह बोलने वाला दुनिया में अब सिर्फ एक व्यक्ति बचा है। अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रही ऐसी भाषाओं की संख्या हजारों में है और लुप्त होने की आशंका झेल रही इन भाषाओं में आधी एशिया की हैं। यूनेस्को के मुताबिक दुनिया भर में 2473 भाषाएं हैं जिनका अस्तित्व संकट में है। भारत में यह संख्या 197 है, लेकिन इंटरनेट कंपनी गूगल ने मरने की कगार पर खड़ी भाषाओं को बचाने की अनूठी कवायद की है। गूगल ने बीते 21 जून को इनडैंजर्डलैंग्वेजेसडॉटकॉम नाम की साइट शुरू की है। इस प्रोजेक्ट को शुरू हुए अभी एक महीना भी नहीं हुआ है, लेकिन प्रोजेक्ट को लेकर पूरी दुनिया में उत्साह गूगल के लिए कामयाबी की पहली डगर मानी जा रही है।
अस्तित्व के संकट से जूझती भाषाओं को बचाने के गूगल के अभिनव प्रोजेक्ट को 29 संस्थानों का समर्थन है। इस प्रोजेक्ट को आरंभ करने के बाद इसकी तमाम गतिविधियों पर गूगल नजर रखेगा, लेकिन जल्द ही पूरा प्रोजेक्ट फर्स्ट पीपुल्स कल्चरल काउंसिल, द इंस्टीट्यूट ऑफ लैंग्वेज इन्फॉर्मेशन एंड टेक्नोलॉजी और ईस्टर्न मिशिगन यूनिवर्सिटी की देखरेख में संचालित होगा। इनडेंजर्डलैंग्वेजेसडॉटकॉम पर उन सभी 3054 भाषाओं का संक्षिप्त उल्लेख है, जिन्हें बचाने की कवायद शुरू की गई है। इस कार्यक्रम के तहत मृतप्राय भाषाओं को चार श्रेणियों में रखा गया है। जोखिम में, खतरे में, भयंकर खतरे में और पूरी तरह अनजान। गूगल का मानना है कि लुप्त होती भाषाओं को तकनीक की मदद से बचाया जा सकता है, लिहाजा वेबसाइट पर सुविधा दी गई है कि लोग मर रही भाषाओं-बोलियों के बारे में जानकारी पाने के अलावा उनसे जुड़ी पांडुलिपियां, आडियो-वीडियो फाइल आदि शेयर कर सकते हैं अथवा जमा कर सकते हैं। लोगों से अपील की गई है कि वे ऐसी भाषाओं से संबंधित कोई भी जानकारी यहां बांटें। इस साइट के माध्यम से लुप्त होती भाषाओं का संरक्षण, प्रचार और सिखाने की कोशिश है। हालांकि उन भाषाओं की पूरी सूची साइट पर है जो खतरे में हैं, लेकिन इनमें से कई भाषाओं से जुड़ा कोई ऑडियो-वीडियो और यहां तक कि पाठ्य भी उपलब्ध नहीं है।
गूगल ने उपयोक्ताओं से आग्रह किया है कि वे इन भाषाओं के नमूने उपलब्ध कराने में मदद करें। दुनिया के कई देशों में अपनी भाषाओं को बचाने की कवायद चल रही है। निश्चित तौर पर भाषाओं का अपना ऐतिहासिक-सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व है, लेकिन भाषाएं भी बाजार से प्रभावित होती हैं और यही वजह है कि दुनिया में चंद भाषाओं का आधिपत्य है। तो ऐसे में इनडैंजर्डलैंग्वेज प्रोजेक्ट के सामने बड़ी चुनौती उन भाषाओं को बचाने की है जिन्हें बेहद कम लोग जानते-समझते हैं। आखिर कोरो के मरने से भले एक सांस्कृतिक विरासत खत्म हो जाए पर बाजार को कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन सबसे बड़ा सवाल आम लोगों का इस प्रोजेक्ट से जुड़ने का है। सवाल यह भी है कि जिन मृतप्राय भाषाओं को बचाने की कवायद हो रही है, उन भाषाओं को जानने वाले इस प्रोजेक्ट से कैसे और कब जुड़ते हैं? गूगल के पास आधुनिक तकनीक का कोई संकट नहीं है, लेकिन सवाल नीयत और वैश्विक सहयोग का है। फिलहाल उम्मीद की जानी चाहिए कि गूगल के नेतृत्व में यह प्रोजेक्ट कंपनी की तमाम बड़ी परियोजनाओं की तरह सफल होगा।
इस आलेख के लेखक पीयूष पांडे हैं
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