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राष्ट्रपति चुनाव का इतिहास

जागरण मेहमान कोना
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Anindya senGuptaइस बार के राष्ट्रपति चुनाव में काफी कुछ तय दिशा पर ही चलता रहा। एक-दो अवसरों को यदि छोड़ दिया जाए तो राष्ट्रपति पद पर कौन निर्वाचित होगा, इसको लेकर रोमांच और उत्सुकता जैसी कोई बात नहीं। ममता बनर्जी और मुलायम सिंह यादव ने एक समय खलबली जरूर मचा दी थी, लेकिन 24 घंटे के भीतर ही यह साफ हो गया कि मामला पेचीदा नहीं है। जब से प्रणब मुखर्जी के नाम की घोषणा हुई है तब से लेकर अब तक यह चुनाव 1969 के तूफानी आइपीएल के बजाय धीमी गति से खेला जाने वाला टेस्ट मैच ही बना हुआ है। 1969 में चुनावी नाटक तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और कांग्रेस के पुरोधाओं के बीच व्यापक मतभेदों की पृष्ठभूमि में हुआ था। इन धुरंधरों-कामराज, अतुल्य घोष, एसके पाटिल और कांग्रेस अध्यक्ष एस. निजलिंगप्पा को सामूहिक रूप से सिंडिकेट के नाम से संबोधित किया जाता था। सिंडिकेट प्रधानमंत्री से बुरी तरह नाराज था। उसे लगता था कि प्रधानमंत्री उनके नियंत्रण से बाहर जा रही हैं। दूसरी तरफ इंदिरा गांधी इस सिंडिकेट के शिकंजे से निकलने के उपयुक्त अवसर की ताक में थीं। उन्हें नई पीढ़ी के नेताओं का समर्थन हासिल था, जिनमें युवा तुर्क कहे जाने वाले चंद्रशेखर और पीएन हक्सर शामिल थे। जब राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की अपने कार्यकाल के बीच ही मृत्यु हो गई तो कांग्रेस ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति पद का अधिकृत उम्मीदवार घोषित कर दिया। इंदिरा गांधी रेड्डी की उम्मीदवारी के विरोध में थीं, लेकिन कार्यकारी समिति ने उनकी आपत्ति को दरकिनार कर दिया। विपक्षी दलों ने सीडी देशमुख को उम्मीदवार बनाया।


अब उपराष्ट्रपति पर अटकलें


नीलम संजीव रेड्डी के राज्य से ही प्रतिष्ठित मजदूर नेता वीवी गिरि ने आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने का फैसला लिया। कांग्रेस अध्यक्ष के बार-बार किए जाने वाले आग्रहों के बावजूद इंदिरा गांधी ने संजीव रेड्डी का समर्थन नहीं किया। मीडिया में खबरें आने लगी थीं कि उनके समर्थक वीवी गिरि के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं। संकट देख निजलिंगप्पा ने जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी से समर्थन लेना चाहा, जिसका प्रधानमंत्री कैंप ने तुरंत विरोध किया। उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का विशेष सत्र बुलाने की मांग की, किंतु यह मांग अस्वीकार कर दी गई। अंतत: 20 अगस्त को प्रधानमंत्री ने अंतररात्मा की आवाज पर मतदान करने का आ ान किया। यह गिरि को समर्थन का स्पष्ट संकेत था। अब तक पुराने कांग्रेसियों का बड़ा हिस्सा अधिकृत उम्मीदवार के पक्ष में था। मतगणना के पहले चरण में किसी भी उम्मीदवार को पर्याप्त वोट नहीं मिले किंतु दूसरे चरण के बाद, जिसमें गणना का आधार दूसरी वरीयता के मत होते हैं, वीवी गिरि चुनाव जीत गए। नवंबर माह में कांग्रेस ने अपनी ही प्रधानमंत्री को पार्टी से निष्कासित करने का फैसला कर लिया। इसी के साथ कांग्रेस दोफाड़ हो गई। पुराने कांग्रेसी कांग्रेस (ओ) में रह गए। ओ का मतलब था ओरिजनल (असली)। प्रधानमंत्री के समर्थकों ने कांग्रेस (आर) का गठन कर लिया।


आर से अभिप्राय था रिक्विजिसनिस्ट। एक अन्य व्याख्या के अनुसार इसका मतलब था रिफॉर्म यानी सुधार। यह सर्वविदित है कि जवाहरलाल नेहरू भारत के पहले गवर्नर जनरल सी. राजागोपालाचारी को भारत का प्रथम राष्ट्रपति बनाना चाहते थे, किंतु सरदार पटेल और उनके पीछे खड़ी कांग्रेस के कारण राजेंद्र प्रसाद उम्मीदवार बन पाए। राष्ट्रपति के पहले तीन चुनाव सुगमता से हो गए, क्योंकि कांग्रेस को केंद्र और राज्यों में स्पष्ट बहुमत हासिल था। कुछ राज्यों में कांग्रेस की हार के बाद 1969 में चुनाव हुआ। 1974 में भी कांग्रेस के लिए आसानी रही। फखरुद्दीन अली अहमद की मृत्यु के कारण 1977 में फिर से चुनाव हुआ। इस बार केंद्र में पहली गैरकांग्रेसी सरकार के उम्मीदवार के तौर पर नीलम संजीव रेड्डी उम्मीदवार बनाए गए तथा पहले और अब तक के आखिरी निर्विरोध राष्ट्रपति चुन लिए गए। राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल करने की स्थिति में प्रणब मुखर्जी तीसरे ऐसे व्यक्ति बन जाएंगे, जो केंद्रीय मंत्री से सीधे राष्ट्रपति भवन जाएंगे। इससे पहले फखरुद्दीन अली अहमद और ज्ञानी जैलसिंह मंत्री से सीधे राष्ट्रपति बने थे। प्रणब यदि जीतते हैं तो वह राष्ट्रपति बनने वाले पहले बंगाली होंगे। अब तक तमिलनाडु से तीन-राधाकृष्णन, वेंकटरमण और एपीजे कलाम, आंध्र प्रदेश से दो-वीवी गिरि और नीलम संजीव रेड्डी, बिहार से राजेंद्र प्रसाद, उत्तर प्रदेश से जाकिर हुसैन, असम से फखरुद्दीन अली अहमद, पंजाब से ज्ञानी जैल सिंह, मध्य प्रदेश से शंकर दयाल शर्मा, केरल से केआर नारायणन और महाराष्ट्र से प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति चुने जा चुके हैं।


प्रणब मुखर्जी के पिता कांग्रेस से विधायक थे और उनका बेटा भी बंगाल में विधायक है। इसी प्रकार प्रतिभा पाटिल का बेटा भी महाराष्ट्र में विधायक है। वर्तमान नेताओं में सलमान खुर्शीद जाकिर हुसैन के पोते हैं और अजय माकन का संबंध शंकर दयाल शर्मा से है। पहले तीन उपराष्ट्रपति राधाकृष्णन, जाकिर हुसैन और वीवी गिरि राष्ट्रपति बन गए, जबकि अगले तीन जीएस पाठक, बीडी जत्ती और एम. हिदायतुल्ला के हाथ से यह अवसर निकल गया। इसके बाद फिर से तीन उपराष्ट्रपति-वेंकटरमन, शंकर दयाल शर्मा और केआर नारायणन प्रोन्नत हुए। इसके बाद के तीन उपराष्ट्रपति-कृष्णकांत, भैरोसिंह शेखावत और अब अंसारी राष्ट्रपति नहीं बन पाए। सबसे अद्भुत सम्मान मिला जस्टिस मोहम्मद हिदायतुल्ला को। उन्होंने भारत के तीन सर्वोच्च संवैधानिक पदों-राष्ट्रपति (कार्यकारी), मुख्य न्यायाधीश और उपराष्ट्रपति को सुशोभित किया।


राजनीति का नाजुक दौर


अनिंद्य सेनगुप्ता भारतीय सूचना सेवा के अधिकारी हैं


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