- 1877 Posts
- 341 Comments
भारतीय वायु सेना का बहुउद्देश्यीय भूमिका वाले 126 लड़ाकू विमान हासिल करने का इंतजार अब और लंबा हो सकता है क्योंकि रक्षामंत्री एके एंटनी ने इस सौदे में सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी का नाम तय करने की प्रक्रिया की समीक्षा करने का फैसला किया है जिसे फ्रांसीसी कंपनी दसाल्ट एविएशन ने यूरोपीय कंपनी ईएडीएस को पछाड़ कर हासिल किया था। रक्षा मंत्रालय ने फ्रांस की इस कंपनी के साथ लड़ाकू विमानों के दामों पर बातचीत की प्रक्रिया फिर से शुरू कर दी है। दरअसल अब तक के सबसे बड़े रक्षा सौदे में गड़बड़ी की शिकायतें मिलने की वजह से ऐसा हुआ है। तभी रक्षामंत्री ने एक लाख करोड़ रुपये से अधिक के इस रक्षा सौदे के लिए चल रही मूल्य निर्धारण प्रक्रिया पूरी होने के बाद इस पर नए सिरे से विचार करने का फैसला किया है। इसके लिए फ्रांसीसी कंपनी दसाल्ट एविएशन से बातचीत जारी रहेगी, जिसमें एक माह का समय और लग सकता है। इस सौदे पर केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा गठित तीन सदस्यों वाली समिति ने जो रिपोर्ट दी थी उसी के बाद रक्षामंत्री ने अधिकारियों से इसे नए सिरे से देखने को कहा था। इस लड़ाकू विमान सौदे में गड़बड़ी की शिकायत पूर्व सांसद एमवी मैसूरा रेड्डी ने भी की थी, जिसके जवाब में रक्षामंत्री ने 3 जुलाई को लिखे पत्र में कहा था कि कांट्रेक्ट नेगोशिएटिंग कमेटी (सीएनसी) की रिपोर्ट अंतिम हो जाने और सौदे पर अगला कदम बढ़ाने से पहले कमेटी सबसे पहले कम बोलीकर्ता के चुनाव में अपनाई गई प्रक्रिया पर रक्षा वित्त विभाग व मंत्रालय पुनर्विचार करेगा जिससे यह पता लगाया जा सके कि खरीद सौदे में सही और तर्कसंगत प्रक्रिया अपनाई गई है या नहीं? इसके साथ ही उनके द्वारा उठाए गए सवालों पर भी गौर किया जाएगा।
रक्षा मंत्री ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई गड़बड़ी या जोड़तोड़ की कोशिश पाई गई तो सरकार इस सौदे को रद करने से नहीं हिचकेगी। इन लड़ाकू विमानों को पाने की वायु सेना की कवायद एक दशक से अधिक की लंबी अवधि से चल रही थी और खरीद के रक्षा सौदे पर इसी वर्ष 31 जनवरी को मुहर लग गई थी। इस रक्षा सौदे का ठेका फ्रांस की विमान निर्माता कंपनी दसाल्ट ने हासिल कर लिया था, क्योंकि यह सबसे कम कीमत पर लड़ाकू विमान देने की पेशकश करने वाली कंपनी थी। अब इस विमान निर्माता कंपनी के साथ आगे की बातचीत शुरू की जाएगी। इस बातचीत का क्या परिणाम होगा यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा लेकिन यह विलंब वायु सेना के लिए चिंतनीय होगा। इन लड़ाकू विमानों के लिए जारी की गई आरएफपी के मुताबिक इस सौदे को हासिल करने वाली कंपनी को 126 में से 18 लड़ाकू विमानों की आपूर्ति हस्ताक्षर होने के बाद तीन वषरें के अंदर करनी होगी अर्थात छह विमान प्रतिवर्ष भारत को मिलेंगे। शेष 108 लड़ाकू विमान हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड बेंगलूर में तैयार किए जाएंगे। इस योजना में 20-22 विमान प्रतिवर्ष तैयार होंगे।
राडार की पकड़ में न आने वाले ये विमान वायु सेना के उम्रदराज मिग-21 विमानों की जगह लेंगे। इन विमानों की खरीद का सौदा लगभग 52,000 करोड़ रुपये का है। इनकी खरीद में ग्रिप्पन विमान, अमेरिकी एफ/ए-18 हार्नेट व एफ-16 विमान, रूस का मिग-35 विमान, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली व स्पेन की कंपनियों द्वारा मिलकर बनाया गया यूरोफाइटर तथा फ्रांस का राफेल विमान था। सभी प्रतिस्पर्धी लड़ाकू विमानों के परीक्षणों के बाद यूरोफाइटर व फ्रांस का राफेल मुकाबले में रह गए। इसके बाद कीमतों का आकलन विमान की प्रति यूनिट कीमत, इंजन की कीमत, तकनीकी हस्तांतरण तथा 40 साल के रखरखाव पर आने वाले खर्च के मद्देनजर किया गया था।
लेखक लक्ष्मी शंकर यादव सैन्य विज्ञान विषय के प्राध्यापक है
Indian Air Force inventory, Indian Air Force, Hindi Articles for Political Issues, Hindi Article in various Issues, Lifestyle in Hindi, Editorial Blogs in Hindi, Entertainment in Hindi, English-Hindi Bilingual Articles, Celebrity Writers Articles in Hindi, Dainik Jagran Editorial Articles in Hindi, Jagran Blogs and Articles, Hindi
Read Comments