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राजेश खन्ना के आने की आहट तो फिल्मफेअर टैलेंट हंट में चुने जाने के साथ ही मिल गई थी, जिसे देश के कुछ दर्शकों ने पहली बार आखिरी खत में पहचाना। 1969 में आई आराधना से पूरा देश उनका दीवाना हो गया। उसके बाद एक-एक कर उनकी फिल्में गोल्डन जुबली और सुपरहिट होती रहीं। एकाएक हमें देव आनंद, राजेंद्र कुमार और शम्मी कपूर का रोमांस पुराना लगने लगा। तिरछी चाल से पर्दे पर आकर दाएं-बाएं गर्दन झटकते हुए दोनों पलकों को झुकाकर आमंत्रित करती उन आंखों ने दर्शकों पर सीधा जादू किया। देश भर के नौजवान राजेश खन्ना बनने और दिखने को बेताब नजर आए और लड़कियों का तो हसीन ख्वाब बन गए राजेश खन्ना। कहते हैं उनकी सफेद गाड़ी शाम में आशीर्वाद लौटती तो दूर से गुलाबी नजर आती थी। गाड़ी के शीशे, बोनट और डिक्की पर लड़कियों के होंठों की लिपस्टिक उतर आती थी। उनके पहले हिंदी फिल्मों के रूपहले पर्दे पर देव आनंद, राजेंद्र कुमार और शम्मी कपूर की रोमांटिक छवि की धूम थी। तीनों अलग-अलग अंदाज के अभिनेता थे। उन तीनों को पीछे करते हुए राजेश खन्ना अपनी शरारती मुस्कराहट के साथ अवतरित हुए। तब तक हिंदी फिल्मों का हीरो अमर्यादित नहीं हुआ था। वह इशारों और आंखों से ही बातें करता था। झूमते और नाचते समय भी उसकी मर्दानगी साथ रहती थी। साधारण कद-काठी और रूप में दर्शकों को ब्वॉय नेक्स्ट डोर मिला था। ऐसा नवयुवक जो महिला दर्शकों के मन में खुद के लिए पति, प्रेमी और पुत्र की चाहत पैदा करे। हिंदी फिल्मों के इतिहास में लड़कियों की यह दीवानगी केवल देव आनंद को हासिल हुई थी।
आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं…
राजेश खन्ना ने उन्मुक्त नायक के रूप में दो कदम आगे बढ़कर उनका दिल लुभाया और अपना दीवाना बना दिया। जब भी वह गर्दन झटक कर पलकें मटकाते थे तो सिनेमाघर में बैठे दर्शकों की सांसें थम जाती थीं। लड़कियां आहें भरती थीं तो लड़के रश्क करते थे। पहली बार राजेश खन्ना कट हेयर स्टाइल और कुर्ते का चलन हुआ। राजेश खन्ना ने लोकप्रियता की जबरदस्त ऊंचाई हासिल की थी। इस ऊंचाई को छूने के अपने फायदे थे और कुछ निहित नुकसान। नुकसान यह हुआ कि राजेश खन्ना खुद को खुदा समझ बैठे। उनके समकालीन बताते हैं कि वह चापलूस और स्वार्थी निर्माताओं से ऐसा घिर गए थे कि उन्हें अपने अलावा न कुछ सूझता था और न दिखाई पड़ता था। वह श्रेष्ठ गं्रथि के शिकार हो गए थे। तब के एक पत्रकार अली पीटर जॉन ने अपने संस्मरण में एक जगह लिखा है कि अमिताभ बच्चन के आगमन पर राजेश खन्ना की टिप्पणी थी कि ऐसे अटन-बटन आते-जाते रहते हैं। सच या झूठ, लेकिन इस टिप्पणी पर यकीन किया जा सकता है। यह व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं हैं। दरअसल हिंदी फिल्मों का कोई भी स्थापित स्टार किसी नवोदित की धमक को एकबारगी नहीं सुन पाता।
राजेश खन्ना के समय का यह सच आज की तीनों खानों के समय भी सुना जा सकता है। उत्कर्ष के दिनों में राजेश खन्ना पर बीबीसी के संवाददाता जैक पिजे ने बांबे सुपरस्टार नामक शॉर्ट फिल्म बनाई थी। पिछले साल इस फिल्म का ऑडियो इंटरनेट पर लीक हुआ था। उसमें राजेश खन्ना का परिचय देते हुए जैक पिजे ने कहा था कि उनमें एक साथ रूडोल्फ वैलेंटिनों का करिश्मा और नेपोलियन की अकड़ है। यहां तक कि उसी इंटरव्यू में उन्हें सुपरस्टार का खिताब देने वाली देवयानी चौबल ने स्वीकार किया था कि राजेश खन्ना निहायत तनहा और असुरक्षित व्यक्ति हैं। तनहाई और असुरक्षा ने ही उन्हें आक्रामक बनाया। सुपरस्टार राजेश खन्ना की लोकप्रियता अभूतपूर्व रही, लेकिन उसे लंबी उम्र नहीं मिल सकी। कुछ राजेश खन्ना की भूलें और कुछ बदलते माहौल की जरूरतों ने दर्शकों की पसंद बदल दी। रोमांस के राजा के नाम से मशहूर राजेश खन्ना की रोमांटिक फिल्मों ने नया अध्याय लिखा। निश्छल प्रेम और मासूम रोमांस के लिए हिंदी फिल्मों को राजेश खन्ना जैसे व्यक्तित्व की जरूरत थी। वक्त अपनी जरूरत के हिसाब से नायक ईजाद कर लेता है। राजेश खन्ना ने स्टारडम के चंद सालों में कामयाबी का कीर्तिमान स्थापित किया। दो साल में 14 हिट गोल्डन जुबली फिल्में देने का रेकॉर्ड उन्हीं के नाम है। दुर्भाग्य यह रहा कि राजेश खन्ना अपने स्टारडम की छवि से कभी बाहर नहीं निकल सके। उनकी व्यक्तिगत जिंदगी पर यह स्टारडम हावी रही और इसी ने उनकी जिंदगी को तनहा और एकाकी बना दिया। वह आत्ममुग्ध और आत्मकेंद्रित होते चले गए।
स्टारडम का नशा बरकारार रखने के लिए दूसरे नशों की लत पड़ी। अपने भी पराए लगे। उन्हें कुछ समय के बाद दर्शकों की बदली पसंद का एहसास तो हुआ, लेकिन तब तक फिल्म इंडस्ट्री का रवैया उनके प्रति बदल चुका था। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि सलीम-जावेद से हुई अनबन की वजह से यश चोपड़ा ने दीवार में उन्हें चुनने का फैसला लेने के बाद इरादा बदल दिया था। एक अंतराल के बाद नौवें दशक के आरंभिक सालों में बदली और मैच्योर भूमिकाओं में उनकी कुछ फिल्में दर्शकों ने पसंद कीं, लेकिन वह सिलसिला लंबा नहीं चला। ऋषि कपूर के निर्देशन में बनी आ अब लौट चलें में उनकी वापसी असफल रही। उनकी आखिरी फिल्म वफा बिल्कुल साधारण फिल्म थी। आखिरी दिनों में वह जीर्ण-शीर्ण दिखने लगे थे। गंभीर बीमारी ने उन्हें तोड़ दिया था। आईफा में अमिताभ बच्चन के हाथों लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड लेते समय उन्होंने अपना दर्द और द्वंद्व पूरी दुनिया के सामने जाहिर किया था। आखिरी दिनों में तनहाई और बढ़ी, लेकिन ऐसे वक्त में उनकी पत्नी डिंपल कपाडि़या उनके साथ आईं। पारिवारिक मूल्यों और प्रेम का महत्व दिखा।
अजय ब्रह्मात्मज हैं
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