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भारत और इंडिया का फर्क

जागरण मेहमान कोना
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N.K Singhलगभग 123 करोड़ अभावग्रस्त आबादी वाला एक भारत है। इसी में 81,000 संपन्न लोगों का एक इंडिया भी हैं। दोनों के बीच अद्भुद शांतिपूर्ण सहअस्तित्व है। दोनों फल-फूल रहे हैं यानी अभिजात्यवर्ग और संपन्न हो रहा है और गरीब की गरीबी बढ़ रही है। अर्थशास्त्रीय पैमाना इस बात की तस्दीक करता है। भारत में 26 रुपये से ज्यादा रोजाना खर्च करने वाला अमीर है, वहीं इंडिया में 25 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति वाले लोग आते हैं। गिरती हुई अर्थव्यवस्था के बीच देश में धनकुबेरों की संख्या बढ़ती जा रही है। एफडीआइ के जरिये प्रवेश पाने के लिए वॉलमार्ट सरीखी तमाम कंपनियां बेताब नजर आ रही हैं। 62 फीसदी भारतीय कृषि से जुड़े हैं, लेकिन सरकार को उन दो प्रतिशत इंडियंस की चिंता ज्यादा है जिनकी पूंजी से सेंसेक्स ऊपर-नीचे होता रहता है। इंडिया वह है जिसमें धनकुबेरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, इंडिया वह है जहां पिछले साल के मुकाबले 25 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति वाले अमीर परिवारों की संख्या में 30 फीसदी का इजाफा हो गया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में 25 करोड़ से ज्यादा नेटवर्थ वाले परिवारों की संख्या 62,000 से बढ़कर 81,000 हो गई है और वर्ष 2016-17 तक भारत के अल्ट्रा एचएनएच का कुल नेटवर्थ पांच गुना बढ़कर 318 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच जाने का अनुमान है। वर्तमान में इंडिया के धनकुबेरों के पास 1,200 अरब डॉलर की संपत्ति है जो लगभग भारत के सकल घरेलू उत्पाद के बराबर है। इंडिया के लोग कपड़े, जेवर, बेशकीमती घडि़यों, लग्जरी कारों, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, हॉलिडे पैकेज और होम डेकोरेशन जैसी चीजों पर सबसे ज्यादा खर्च करते हैं।


इन्हीं इंडियंस के लिए भारत में शुरू हुआ है एक नया बिजनेस जिसका नाम है लग्जरी कॉनसीएर्श। एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी ने भारत के इंडियंस के लिए यह बिजनेस लांच किया है। यह बताना जरूरी है कि यह कंपनी केवल इंडियंस के लिए है, भारतीयों के लिए नहीं। दरअसल, यह कंपनी उन लोगों को अपना मेंबर बनाती है जिनके पास कम से कम दो करोड़ का घर हो। इस कंपनी में मेंबरशिप फीस 50 हजार से लेकर पांच लाख रुपये तक है। आइए आपको दिखाते हैं कंपनी इंडियंस को किस तरह की सेवाएं दे रही है। दिल्ली के एक बिजनेसमैन ने अपने बच्चे के स्कूल प्रोजेक्ट के लिए डेड सी के बालू की मांग की थी, जिसे कंपनी ने भारी-भरकम राशि लेकर उपलब्ध करवाया। इसी तरह एक इंडियन कपल को इंडोनेशिया में पालकी से घूमने की ख्वाइश थी, उनकी इच्छा भी पूरी कर दी गई। आइए अब आपको दिखाते हैं गांधी, नेहरू जैसे तमाम युगदृष्टाओं के सपनों के भारत की तस्वीर। भारत में लगभग 37 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करते हैं। यह वही देश है जो भूख सूचकांक में 81 देशों के बीच 67वां स्थान रखता है। असमानता समायोजित मानव विकास सूचकांक में भी देश फिसड्डी है और 187 देशों में इसका 134वां स्थान है। यह वही देश है जहां कुपोषण और स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में प्रति हजार 47 बच्चों की मौत हो जाती है। इतना ही नहीं बैंक के बोझ तले दबे हुए लगभग ढाई लाख किसान पिछले 13 सालों में आत्महत्या कर चुके हैं। भ्रष्टाचार के मामले में भारत 183 देशों में से 95 स्थान पर है। दिनों दिन अमीरी और गरीबी की खाई बढ़ती चली जा रही है और इस खाई के साथ ही बढ़ती चली जा रही है इंडिया और भारत के बीच की दूरी। कहते हैं असल भारत के दर्शन करने हैं तो गांव में जाइए, लेकिन विडंबना देखिए देश की सरकार और उसके बजट को इंडिया की चिंता तो बहुत रहती है पर उसकी सोच या बजट में भारत कहीं नजर नहीं आता।


इंडिया को रेवेन्यू फॉरगॉन के नाम पर साढ़े पांच लाख करोड़ रुपये की टैक्स छूट दी जाती है, लेकिन भारत को जीवनयापन और बुनियादी सुविधाओं के लिए दी जाने वाली सब्सिडी के लायक भी नहीं समझा जा रहा है और उस सब्सिडी में कटौती का दौर लगातार जारी है। इन हालात में भारत का आम आदमी परेशान है, इंडिया शाइनिंग के नारे दिए जा रहे हैं और कल्याणकारी राज्य भारत में फिलहाल जन-कल्याण योजनाओं का हाल खुले में सड़ रहे 2.2 करोड़ टन अनाज की तरह हो गया है। आज नए वित्तमंत्री चिदंबरम के लिए फिर से एक चुनौती है कि जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए यानी भूखे को अनाज देने के लिए अगर खाद्य सुरक्षा कानून बनाते हैं तो भारत तो खुशहाल होगा, लेकिन राजकोषीय घाटा बढ़ जाने से इंडिया को चमकाने वाले विदेशी निवेशकर्ता और एफडीआइ नाराज हो जाएंगे। इंडिया को लुभाने और मनोरंजन कराने की अगर यही हालत रही तो वह दिन दूर नहीं जब मनोरंजन पयर्टन की दिशा में एक नया कदम उठाते हुए इंडिया के लोगों को भारत भ्रमण कराया जाएगा और दूर से गरीब दिखाया जाएगा। उसका खाना, उसका घर, उसकी पत्नी, उसके बच्चे और उसकी झोपड़ी दिखाकर जीडीपी में सेवा क्षेत्र का योगदान बढ़ाया जाएगा।


एनके सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं


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