Menu
blogid : 5736 postid : 6183

कितना कारगर होगा कानून में संशोधन

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

Alaka Aryaपिछले दिनों केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बालश्रम (प्रतिबंध एवं विनियमन) कानून-1986 में संशोधन करने को मंजूरी दे दी है। बेशक, केंद्र सरकार का यह एक सराहनीय फैसला है, मगर असली चुनौती कानून को कारगर तरीके से लागू करने की होगी। यहां एक बात यह भी महत्वपूर्ण है कि क्या मौजूदा आर्थिक हालात के दौर में हमारे देश में बाल मजूदरी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाली कानूनी पहल अपने मकसद में कामयाब हो सकेगी? इस तरह के गई सवाल हमारे सामने हैं। बहरहाल, मौजूदा बालश्रम (प्रतिबंध एवं विनियमन) कानून-1986 के तहत 14 साल से कम उम्र के बच्चों को उन्हीं उद्योगों में काम पर रखने की मनाही है, जो खतरनाक माने जाते हैं। लेकिन इस कानून में संशोधन के बाद गैर-खतरनाक कामों में भी 14 साल से कम उम्र के बच्चों को लगाने पर पूरी पाबंदी होगी। इसके साथ ही मौजूदा बालश्रम कानून में संशोधन के बाद 14 से 18 साल के बच्चों को किशोरवय श्रेणी में रखा जाएगा, जिन्हें खदान, विस्फोटकों के इस्तेमाल वाले उद्योगों तथा केमिकल, पेंट एवं अन्य खतरनाक कारखानों में काम पर लगाना प्रतिबंधित हो जाएगा। घर के काम को इसमें छूट दी गई है। इसके अलावा माता-पिता या अभिभावक द्वारा बच्चों से स्कूल के बाद खेतों और घर से संचालित कार्यो में मदद लेने पर कोई रोक नहीं लगाई गई है। हां, माता-पिता या अभिभावक को तभी दंडित किया जा सकता है, अगर वे अपने बच्चों को व्यावसायिक गतिविधियों में शमिल होने की इजाजत देंगे।

बाल श्रम (प्रतिबंध एवं विनियमन) कानून-1986 में संशोधित ये सभी प्रावधान शमिल किए जाएंगे और कानून का नया नाम बाल व किशोर श्रम (रोकथाम) विधेयक होगा। इस विधेयक को ज्यादा असरदार बनाने के लिए बालश्रम को संज्ञेय अपराध घोषित किया गया है और सजा भी बढ़ा दी गई है। सराहनीय पहल मौजूदा बालश्रम कानून का उल्लंघन करने पर दोषी को 20 हजार रुपये का जुर्माना या एक साल की सजा अथवा दोनों हो सकते हैं, लेकिन प्रस्तावित विधेयक में जुर्माने की रकम 50 हजार और सजा दो साल कर दी गई है। अगर कोई यह अपराध बार-बार करता है तो उसे तीन साल की भी सजा हो सकती है। दरअसल, सरकार की इस पहल को शिक्षा के अधिकार (आरटीई) और श्रम कानून में उम्र एक समान करने के तौर पर देखा जा रहा है। निस्संदेह सरकार का यह सराहनीय फैसला अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की संधि और मुफ्त एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार कानून के अनुरूप है, जिनके तहत 14 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी नहीं कराई जा सकती। अब अहम सवाल यह है कि बचपन को बचाने की नीयत से बनाए गए कानून हमारे देश में हैं और उन पर सख्ती से अमल नहीं हो रहा है, ऐसे में यह समस्या इस कानून को लागू करने में भी सामने आएगी। असल चुनौती प्रशासन और समाज की मानसिकता बदलने की है और सामाजिक-आर्थिक हालात को सुधारने की भी है। वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक देश में पांच से 14 साल की उम्र के बाल मजूदरों की संख्या 1.26 करोड़ है। इसमें से एक लाख बीस हजार बच्चे खतरनाक उद्योग धंधों में लगे हैं। यह बात दीगर है कि बाल अधिकार व मानवाधिकार संगठनों का दावा है कि बाल मजदूरों की असली संख्या इससे बहुत ज्यादा है। संख्या ज्यादा हो सकती है। इस बात के प्रमाण हमारे आसपास ही मौजूद हैं। मसलन, 2006 में श्रम मंत्रालय ने अधिसूचना जारी की कि 14 साल से कम आयु के बच्चों से बतौर घरेलू नौकर, रेस्त्रां, ढाबों आदि पर काम नहीं लिया जा सकता।


कृषि के बाद इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा बाल मजदूर हैं, लेकिन पांच साल गुजर जाने के बाद भी हम ऐसे हजारों बच्चों को ऐसी जगहों पर काम करते देखते हैं। छोटू की छवि हमारे जेहन में कितनी रची-बसी है, इसका उदाहरण देश के हर कोने में मिल जाएगा। वर्ष 2006 में जब इस तरह के बालश्रम पर प्रतिबंध की घोषणा हुई तो एक उम्मीद जगी कि कम से कम घरों और ढाबों में बच्चे काम करते नजर नहीं आएंगे, लेकिन प्रशासन की मिलीभगत से वहां भी बच्चे काम कर रहे हैं। यों तो भारत सरकार समय-समय पर बाल मजदूरी के खिलाफ अपनी प्रतिबद्धता कानून बनाकर और परियोजनाओं के जरिये जाहिर करती रही है। राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना के तहत बाल मजदूरी से मुक्त कराए गए बच्चों को विशेष स्कूलों में भर्ती कराया जाता है, जहां उन्हें औपचारिक शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने से पहले संपर्क शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, पोषण भत्ता और स्वास्थ्य देखभाल आदि सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। इस समय देश में 7,311 विशेष स्कूल हैं, जिनमें करीब 3.2 लाख बच्चे हैं। कुछ सवाल भी राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना का मकसद बाल मजदूरों को काम से बाहर निकाल उन्हें उनका बचपन लौटाना और शिक्षित बनाना है। सरकार यह परियोजना गैर-सरकारी संगठनों और स्वयंसेवी संगठनों की मदद से चला रही है। लेकिन इस परियोजना पर भी सवाल उठे हैं।


उत्तर प्रदेश के बांदा जनपद में वर्ष 2006 में इस परियोजना के तहत सर्वे करके करीब 2000 बाल मजदूरों को चिह्नित किया गया व सरकार ने 1.5 करोड़ रुपये अवंाटित किए। वहां यह काम स्वयंसेवी संगठनों को दिया गया। लेकिन विशेष स्कूलों में फर्जी दाखिले किए गए। कई ऐसे बच्चे थे, जो बाल मजदूरी करते थे, मगर स्कूलों के रजिस्टरों में भी उनका नाम दर्ज था। 2007 तक आते-आते सब कुछ खत्म हो गया। सूचना के अधिकार के तहत खुलासा हुआ कि सरकार ने बांदा में करीब 85 लाख रुपये इस कार्यक्रम पर खर्च किए। जब जिला प्रशासन को पता चला कि योजना चलाने वाली संस्थाएं वहां धंाधलियां कर रही हैं तो जिला प्रशासन ने योजना को बंद कर दिया। खामियाजा बाल मजदूरों को भुगतना पड़ा। बार-बार यही सवाल उठता है कि कानून बनाने और तमाम कल्याणकारी कार्यक्रमों के बावजूद सामाजिक बुराइयों से निजात क्यों नहीं मिलती। एक प्रमुख कारण प्रशासन और समाज का ऐसे मुद्दों के प्रति कम संवेदनशील होना और सख्ती से अमल करने वाली प्रतिबद्धता का अभाव है।


अमल कराए जाने वाले कारगर तंत्र को भी अधिक मजबूत बनाना होगा। मौजूदा बाल श्रम (प्रतिबंध एवं विनियमन) कानून-1986 के तहत कानून का उल्लंघन करने पर सजा का प्रावधान है, मगर इस मामले में सजा की दर बहुत ही मामूली है। लिहाजा, कानून का उल्लंघन करने वालों के मन में कानून के प्रति कोई खौफ दिखाई नहीं देता। बाल मजदूरी के लिए प्रतिबंधित कामों की सूची में एक और नाम जोड़ने से या सूची का दायरा बढ़ाने से या हर काम पर पांबदी लगाने के सार्थक नतीजे तभी आएंगे, जब चौतरफा एक साथ रणनीतियां बनाई जाएं। बाल मजदूरी की समस्या का एक मजबूत आर्थिक पहलू भी है। कोई भी अपने बच्चे से मजदूरी नहीं कराना चाहता, मगर उसके आर्थिक हालात उसे मजबूर करते होंगे। ऐसे में गरीबी को दूर करने पर सरकार को अधिक फोकस करना होगा। ढांचागत परिस्थितियों को बदलना एक बहुत बड़ी चुनौती है। इन्हें बदले बिना बहुत सार्थक नतीजों के प्रति आश्वस्त होना मुश्किल दिखता है। मनरेगा के तहत रोजगार और उसके भुगतान में धांधलियां जगजाहिर हैं। इन्हें खत्म करने का मतलब एक गरीब परिवार को उसकी मजदूरी का उचित समय पर उचित भुगतान है और ऐसे भुगतान की परपंरा बाल मजदूरी की श्रृंखला को तोड़ने में अपनी भूमिका निभाएगी। दरअसल, ऐसे ढेरों छेदों को बंद करके हमारा देश बाल मजदूरी के कलंक से मुक्त हो सकता है।


अलका आर्य स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


Child labour, child labour in india, Agriculture in india 2012, agriculture in india, agriculture jobs , Hindi Articles for Political Issues, Hindi Article in various Issues.


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh