- 1877 Posts
- 341 Comments
हमारे शरीर के भीतर एक घड़ी है, जो 24 घंटे टिक-टिक करती है। यह घड़ी लाखों वर्ष पुरानी है और यह शैवाल से लेकर मानव कोशिकाओं तक धरती के हर जीव-जंतु में पाई जाती है। हर व्यक्ति की अंदरूनी घड़ी अलग ढंग से काम करती है। हमारे सोने और जागने के समय, पाचन रियाओं और शरीर की अन्य भीतरी गतिविधियों को इन्ही घडि़यों द्वारा नियंत्रित किता जाता हैं। हाल ही के वर्षो में रिसर्चरों ने पता लगाया है कि शरीर की अंदरूनी घड़ी से मरीजों में दवा की प्रतिरिया भी प्रभावित होती है। मसलन, कैंसर रोगियों की आंतरिक घड़ी और कीमोथिरेपी के कोर्स के समय में तालमेल करने पर इलाज ज्यादा प्रभावी ढंग से हो सकता है और साइड अफेक्ट कम हो सकते हैं। लेकिन डॉक्टर लोग रिसर्चरों के इन निष्कर्षो का बहुत फायदा नहीं उठा पाए हैं क्योंकि अंदरूनी घड़ी का समय निर्धारित करना बहुत ही जटिल काम है और इसमें वक्त भी बहुत बर्बाद होता है। शरीर की घड़ी में समय निर्धारित करने के लिए मरीज के शरीर से हर घंटे रक्त के नमूने लिए जाते हैं और मेलाटोनिन नामक हार्मोन के लेवल पर नजर रखी जाती है। समय निर्धारण के लिए फिलहाल यही विश्वसनीय तरीका माना जाता है। पिछली रिसर्च में मेलाटोनिन को आंतरिक शारीरिक समय के साथ जोड़ा गया था। अब जापानी रिसर्चरों ने आंतरिक समय की गणना करने के लिए वैकल्पिक तरीके के रूप में आणविक टाइम टेबल विकसित किया है। यह रक्त के नमूनों में 50 से अधिक हार्मोन और एमिनो एसिड के लेवल पर आधारित है।
शरीर की जैविक गतिविधियों से यह लेवल घटता-बढ़ता रहता है। इस टाइमटेबल के आधार पर डॉक्टर मरीज को दी जाने वाली दवा का तालमेल उसकी आंतरिक घड़ी के साथ कर सकेंगे। रिसर्चरों ने तीन व्यक्तियों से लिए गए नमूनों के आधार पर आणविक टाइमटेबल को अंतिम रूप दिया और पारंपरिक मेलाटोनिन पद्धति से मिलान कर के उसकी पुष्टि की। उन्होंने दूसरे व्यक्तियों की आंतरिक घड़ी का समय निर्धारित करने के लिए इस टाइमटेबल का इस्तेमाल किया। जापान में कोबे स्थित रिकेन सेंटर के जीव वैज्ञानिक हिरोकी उइडा का कहना है कि आंतरिक घड़ी के हिसाब से दवा देने से व्यक्तिगत चिकित्सा को बढ़ावा मिलेगा। अभी वैज्ञानिक व्यक्तिगत चिकित्सा के लिए आनुवंशिक अंतरों पर ही ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, लेकिन मरीजों के बीच दूसरे अंतर भी होते हैं। जापानी रिसर्चरों ने अभी सिर्फ नौजवान पुरुषों पर ही ये प्रयोग किए हैं। महिलाओं और अन्य आयु वर्ग के लोगों के लिए अलग आणविक टाइमटेबल की जरूरत पड़ेगी। वैज्ञानिकों ने अन्य अध्ययन में समुद्री शैवाल में भी 24 घंटे के चक्र का पता लगाया है। इससे स्पष्ट है कि शरीर की आंतरिक घड़ी जीवन के प्राचीन रूपों में भी महत्वपूर्ण है। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज के एंड्रू मिलर ने इस अध्ययन का नेतृत्व किया था। मिलर के मुताबिक यह आंतरिक घड़ी प्राचीन मेकेनिज्म है, जो जीव-जंतुओं की विकास प्रक्रिया के अरबों वर्षो से हमारे बीच है। यह घड़ी बेहद जटिल है और इसे समझने के लिए अभी और अधिक रिसर्च की आवश्यकता है। हम यह जानना चाहते हैं कि मनुष्यों तथा दूसरे जीव-जंतुओं में ये घडि़यां कैसे और क्यों विकसित हुई और हमारे शरीर को नियंत्रित करने में यह क्या भूमिका अदा करती हैं। यह रिसर्च लोगों की आंतरिक घड़ी के डिस्टर्ब होने से उत्पन्न होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को समझने में मदद करेगी।
आंतरिक घड़ी के डिस्टर्ब होने से डायबीटीज, मनोरोग और यहां तक कि कैंसर जैसे विकार उत्पन्न होते हैं। इन्हें मेटाबोलिक डिस्आर्डर भी कहा जाता है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि कोशिकाओं की आंतरिक घडि़यों की कार्यप्रणाली को समझ कर इन विकारों के लिंक खोजे जा सकते हैं। लंबी अवधि में इस खोज के आधार पर इन विकारों के इलाज के लिए अधिक कारगर थिरेपी विकसित की जा सकेगी।
मुकुल व्यास स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
Issues, Hindi Article in various Issues, Lifestyle in Hindi, Editorial Blogs in Hindi
Read Comments